हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से 'हमारे समय में व्यंग्य' विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

ALLAHABAD: व्यंग्य अव्यवस्था के खिलाफ लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार है। आज जिस तेजी से विद्रूप व विसंगतियां सर उठा रही हैं उसमें आपको व्यंग्य के सहारे की जरुरत पड़ेगी ही, लेकिन सच ये भी है कि बदलती चुनौतियों के साथ व्यंग्य को भी बदलना पड़ेगा। वरना व्यंग्य पिछड़ जाएगा। यह बातें हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से रविवार को एकेडमी सभागार में 'हमारे समय में व्यंग्य' विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर सुभाष चंदर ने कही।

हर दौर रही सशक्त भूमिका

उन्होंने कहा कि व्यंग्य हर दौर में समाज में एक सशक्त भूमिका का निवर्हन करता है। अशोक संड ने कहा कि जिन परिस्थितियों, ताकतवर शक्तियों व सामाजिक विसंगतियों को गहराई से पकड़ कर व्यंग्यात्मक हमला किया जाता है वही स्थितियां और ताकतवर लोग हमें अपने इर्द-गिर्द मुंह चिढ़ाते हैं। इसके बावजूद इस आयरनी के समाज में लगातार बढ़ रही विद्रूपताओं को उजागर करने में व्यंग्य की भूमिका महत्वपूर्ण थी और आगे भी बनी रहेगी।

कम हुई व्यंग्य सहने की शक्ति

वरिष्ठ कवि यश मालवीय ने कहा कि व्यंग्य ऐसा होना चाहिए जैसे खादी आश्रम का कंबल जो चुभता तो है लेकिन गर्म करता है। व्यंग्यकार दामोदर दीक्षित ने अपनी व्यंग्य रचना 'तो तुम एंकर बनोगे' का पाठ किया। व्यंग्यकार धनंजय चोपड़ा ने कहा कि यह समय व्यंग्य के लिए बेहतरीन समय है लेकिन इस सच से भी मुंह नहीं छिपाया जा सकता कि समाज में धैर्य और अपने ऊपर हुए व्यंग्य को सहने की शक्ति भी कम हुई है। संचालन करते हुए एकेडेमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने कहा कि व्यंग्य वर्तमान समय में सशक्त विधा ही नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है। एकेडेमी के सचिव रवीन्द्र कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी में प्रो। योगेन्द्र प्रताप सिंह, पीयूष कुमार दीक्षित, हरि मोहन मालवीय, दीनानाथ शुक्ला, नंदल हितैषी, डॉ। दया शंकर तिवारी आदि मौजूद रहे।