एमनेस्टी की ओर से बीबीसी को इस विधेयक का एक प्रारुप दिखाया गया है। एमनेस्टी के मुताबिक यह कानून पारित हुआ तो इसके कई प्रावधानों से मानवाधिकारों का हनन संभव है।

एमनेस्टी को इस विधेयक में शामिल कई चीज़ों पर आपत्ति है, जैसे बिना न्यायिक कार्रवाई के लंबे समय तक किसी को भी हिरासत में रखने का अधिकार, कैदियों के लिए सीमित क़ानूनी अधिकार और ज़्यादा से ज़्यादा मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान।

इस विधेयक में एक ऐसा प्रावधान भी शामिल है जिसके तहत ‘चरमपंथ जनित अपराधों’ की परिभाषा का दायरा बढ़ाकर उसमें ‘राज्य की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना’ और ‘राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाना’ भी अपराध के रुप में शामिल किया गया है।

बदली चरमपंथी की परिभाषा

हालांकि सऊदी सरकार का कहना है कि यह कानून ‘चरमपंथियों’ पर शिकंजा कसने के लिए बनाया जा रहा है न कि प्रदर्शनकारियों और सरकार के आलोचकों के लिए। सरकारी अधिकारियों ने इस विधेयक पर आधिकारिक रुप से कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया लेकिन एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर स्वीकारा है कि इस तरह का क़ानून बनाया जा रहा है।

संस्था के मध्यपूर्व प्रेस अधिकारी जेम्स लिंच ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा, ''एमनेस्टी की ओर से अब तक जुटाए गए साक्ष्यों की ओर से देखें तो हम पाएंगे कि इस विधेयक में शामिल प्रावधान अब तक सामने आए सबसे कठोर नियमों में से एक साबित होंगे.''

बीबीसी संवाददाता फ्रेंक गार्डनर के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो सऊदी अरब को अल कायदा के खिलाफ अपनी मुहिम के लिए काफी सराहना मिली है.लेकिन यह एक ऐसा देश है जहां राजनीतिक पार्टियों पर प्रतिबंध है और देश की आधी जनसंख्या यानी महिलाओं को वाहन चलाने का अधिकार नहीं.ऐसे में अरब देशों में हुए हाल ही के आंदोलनों ने सत्तारुढ़ सरकार को भयभीत किया है।

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