PATNA : भारतीय घडि़याल खतरे में हैं। आंकड़ों के मुताबिक नॉर्दर्न इंडियन सब कॉन्टिनेंट में बहुतायत में पाए जाने वाले घडि़याल अब महज ख्00 के आसपास ही रह गए हैं। इसे देखते हुए वर्ष ख्007 में इन्हें ढ्ढठ्ठह्लद्गह्मठ्ठड्डह्लद्बश्रठ्ठड्डद्य ठ्ठद्बश्रठ्ठ द्घश्रह्म ष्टश्रठ्ठह्यद्गह्मक्ड्डह्लद्बश्रठ्ठ श्रद्घ हृड्डह्लह्वह्मद्ग (ढ्ढष्टहृ) के रेड लिस्ट में एनडेंजर्ड (विलुप्त प्रजाति) प्राणियों में शामिल किया गया। भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान में ये पाए जाते हैं। वर्ष क्9भ्0 से पहले भारतीय घडि़याल पाकिस्तान की सिंध नदी, नेपाल के गंडक नदी, यूपी की यमुना और बिहार की कोसी नदी में मिलते थे। वर्ष क्9भ्0 में इनकी संख्या करीब ख्फ्भ् थी जो वर्ष ख्00म् में घटकर ख्00 रह गई। हाल के अध्ययन के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान में लगभग विलुप्त हो चुके हैं।

क्यों हुई ये हालत?

भारतीय घडि़यालों की संख्या पिछले कुछ वर्षो में लगातार घटी है। विशेषज्ञों की मानें तो नदियों पर डैम बनने, घडि़यालों का नेचुरल हैबिटेट खत्म होने, बाढ़ के कारण और भोजन की कमी से इनकी संख्या में लगातार कमी आती गई। घडि़यालों की प्रवृति होती है कि वे पानी से दूर जाकर मिट्टी में अंडे देते हैं। जब अंडों से बच्चे निकलते हैं तो फिर ये उन्हें खींचकर पानी में लाते हैं। लेकिन नदी बेसिन के पास इंसानी आबादी बढ़ने के कारण इन्हें ब्रीडिंग के लिए उपयुक्त जगह नहीं मिल पाती। जिसका असर इनकी जनसंख्या पर पड़ा। इसके अलावा नदियों में जरुरत से ज्यादा फिसिंग और नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने का असर भी घडि़यालों पर पड़ा।

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व ही क्यों?

एक रिसर्च के मुताबिक वाल्मीकि नगर और इसके आसपास के लैंड और वाटर स्केप में कई प्रकार के विलुप्तप्राय रेप्टाइल्स पाए जाते हैं जिनमें इंडियन घडि़याल और मगरमच्छ और कई प्रकार के टर्टल्स शामिल हैं। पिछले कुछ सालों में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वेस्टर्न बाउंड्री से होकर गुजरने वाली गंडक नदी में घडि़यालों की संख्या बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान में भी घडि़यालों की ब्रीडिंग तेजी से हुई है। लेकिन इनकी प्रजाति को बचाने के लिए और इन्हें नेचुरल हैबिटेट प्रदान करने के लिए गंडक नदी के पास एक कंजरवेशन सेन्टर जरूरी है।

घडि़याल और मगरमच्छ में अंतर

दोनों के फिजिकल अपीयरेंस में बड़ा फर्क होता है। मगरमच्छ के मुंह का हिस्सा बड़ा और चौड़ा होता है जबकि घडि़याल के मुंह का हिस्सा लंबा और पतला होता है जिस पर छोटे घड़े जैसी आकृति होती है। मगरमच्छ दुनिया भर में कई जगहों पर पाए जाते हैं जबकि घडि़याल भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में कुछ चुनिंदा नदियों में पाए जाते हैं।

वाल्मीकि नगर के मदनपुर में बनने वाले कंजरवेशन सेन्टर पर अनुमानित खर्च

-ख्9क्.फ्भ् लाख रुपए

घडियालों का जलीय जीवों में विशेष महत्व है। इनकी संख्या घटने से जाहिर तौर पर जलीय इको सिस्टम पर असर पड़ेगा। इसलिए इन्हें बचाना जरूरी है। पानी से दूर अंडे देने की इनकी खास प्रकृति के कारण इनपर खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि अब नदियों के किनारे ऐसी जगहें कम ही बची हैं जहां इंसानी आबादी ना हो।

प्रोफेसर अरुण कुमार सिन्हा, विशेषज्ञ, प्राणी विज्ञान