-पहला दिन सोमवार पड़ने से और महत्वपूर्ण हो गया सावन

-नगर निगम ने की मंदिरों की सफाई, पुलिस ने लिया सुरक्षा का जायजा

GORAKHPUR: सावन का पहला सोमवार होने के कारण इस साल के सावन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इसकी तैयारी का जायजा पुलिस प्रशासन ने लिया। वहीं, निगम ने मंदिरों की सफाई का कार्य अभियान चलाकर किया। शहर के सबसे अधिक भीड़ वाले शिवालय महादेव झारखंडी और राजघाट मुक्तेश्वरनाथ मंदिर में सुरक्षा की व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो इसके लिए सीसीटीवी कैमरे और वीडियोग्राफी कराने का निर्णय लिया गया है।

मंदिर में हुई तैयारी

नगर निगम ने रविवार को सभी मंदिरों में सफाई-धुलाई का काम दिनभर किया। झारखंडी शिव मंदिर, मुक्तेश्वर नाथ शिव मंदिर, मानसरोवर शिव मंदिर, गोरखनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए विशेष तैयारी की गई। वहीं, शिव मंदिर की सफाई में स्थानीय लोगों ने भी सहयोग किया। मुक्तेश्वरनाथ मंदिर की सजावट फूल-मालाओं व रंग-बिरंगी झालरों से की गई है। झारखंडी स्थित शिव मंदिर में देर शाम तक तैयारी को अंतिम रूप दिया गया। वहीं, मदिरों में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो इसके लिए शिव मंदिरों पर दारोगा के साथ ही सिपाहियों की ड्यूटी लगाई गई है। 10 दारोगा की ड्यूटी कैंट के महादेव झारखंडी, राजघाट के मुक्तेश्वरनाथ, तिवारीपुर के बसियाडीह और गोरखनाथ मंदिर में लगी है।

महादेव झारखंड़ी शिवमंदिर

स्वप्न में आए थे भगवान

शहर के पूरब में कूड़ाघाट आवास विकास कॉलोनी से एक किमी दूर महादेव झारखंडी शिव मंदिर है। शहर के यह प्रमुख शिव मंदिरों में से है। इस मंदिर में सावन के दिन ही नहीं, बल्कि साल भर सोमवार को भगवान शंकर की पूजा करने वालों की भीड़ जुटती है। मंदिर के बारे में किवदंतिया है कि यहां एक पुरुषोत्तम दास नामक एक व्यक्ति रहते थे, उनको एक बार स्वप्न आया कि यहां पर शिवलिंग है। उसके बाद बाबू पुरुषोत्तम दास अपने साथियों के साथ मिलकर 1928 में अरघा बनाकर भगवान शिव की पूजा करने लगे। उसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण हुआ।

मुक्तेश्वरनाथ मंदिर

राजघाट के जिस हिस्से में मुक्तेश्वरनाथ मंदिर है, उस समय यहां जंगल हुआ करता था। बहुत कम लोग यहां आते-जाते थे। लोग बताते हैं कि उस समय यहां एक महाराष्ट्र के ब्राहाण पंडित काशीनाथ आए और उनको सपना दिखा, फिर वह यहां पर घंटा और छत्र लगाकर पूजा करने लगे। फिर यहां मंदिर का निर्माण स्थानीय लोगों के सहयोग से किया गया। यह मंदिर कब बना था, आज भी इसके बारे में कोई बता नहीं पाता है। लोगों का कहना है कि मंदिर का कोई लिखित इतिहास नहीं है।