सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। एयर इंडिया के विमानों में अब उड़ानों के प्रमुख यानि इन-फ्लाइट सुपरवाइज़र का पद यह देख कर नहीं किया जाएगा कि वो पुरुष है या महिला। बल्कि 'केबिन क्रू' यानि फ्लाइट में कर्मचारियों की योग्यता और वरिष्ठता तय करेगी कि 'इन-फ्लाइट सुपरवाइज़र' कौन होगा।

इससे पहले केवल पुरुष ही इस पद पर तैनात किए जाते थे भले ही उड़ान में साथ जाने वाली महिला एयर होस्टेस उनसे वरिष्ठ हों। एयर इंडिया एयर होस्टेसिस एसोसिएशन के वकील जवाहर राजा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अल्तमस कबीर और न्यायाधीश सी जोसेफ ने आदेश दिया है कि एयर इंडिया का साल 2005 में अपनी नीति में बदलाव का फ़ैसला बिल्कुल सही था। उन्होंने कहा कि इस फैसले से एयर इंडिया में काम कर रही महिलाओं को बहुत राहत मिली है।

छह साल किया था फ़ैसला

साल 2005 के दिसंबर माह में एयर इंडिया ने इस पक्षपात को समाप्त करते हुए 10 महिला वरिष्ठ मैनेजरों को 'इन-फ्लाइट सुपरवाइज़र' के पद पर तैनात कर दिया। इन सभी मैनेजरों के पास 30 साल से अधिक का अनुभव था। लेकिन एयर इंडिया के इस फ़ैसले को पुरुष फ्लाइट परसरों ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दे दी।

उनकी दलील थी कि उनकी यूनियन और एयर इंडिया के बीच हुए समझौते के तहत यह पद केवल पुरुषों के लिए था। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी अर्ज़ी खारिज़ कर दी। पुरुष फ्लाइट परसर मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए जहां न्यायाधीशों ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए इसमें दख़ल देने की जरुरत नहीं समझी।

एक एयर होस्टेस ने कहा कि इस फैसले से न केवल एयर इंडिया में महिला कर्मचारियों के साथ पक्षपात समाप्त होगा बल्कि आज के दौर में यह बेहतर व्यापारिक समझ भी है कि योग्य लोग वरिष्ठ पदों पर बैठें।

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