नाकामी और हताशा की कहानी
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बुधवार को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगाई है. कोर्ट का कहना है कि गंगा मैली करने वालों पर कार्रवाई न करना एक बड़ी नाकामी है. पीठ ने तीन दशक के प्रयासों और कोर्ट के आदेशों के बावजूद गंगा के दिन प्रतिदिन प्रदूषित होते जाने पर अफसोस जताया. इसके साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा कि ये पूरी तरह से आपकी नाकामी और हताशा की कहानी है. बोर्डों को प्रदूषित इकाइयों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है. अगर उन पर यह काम छोड़ा गया तो 50 साल और लगेंगे.

एनजीटी से हर 6 महीने में मांगी रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि बोर्ड अपने कर्तव्य के निर्वहन में नाकाम रहे हैं. अब यह काम एनजीटी को करना होगा. कोर्ट ने एनजीटी को प्रदूषित इकाइयों के खिलाफ बिजली आदि काटने और बंदी जैसी सख्त कार्रवाई करने का भी अधिकार दिया है. कोर्ट ने एनजीटी से हर छह महीने में सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देने का भी आग्रह किया है. हालांकि, सीवर आदि की घरेलू गंदगी व अन्य मसलों पर अदालत सुनवाई जारी रखेगी. कोर्ट मामले पर 10 दिसंबर को फिर सुनवाई करेगा.

जीवन रेखा है गंगा नदी
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि गंगा नदी सिर्फ लोगों की धार्मिक आस्था का ही प्रतीक नहीं है बल्कि जहां से यह होकर गुजरती है वहां के लिए जीवन रेखा भी है. अफसोस की बात है कि इतने प्रयासों के बाद भी इसकी सेहत में कोई सुधार नहीं आया. इसका कारण आदेश लागू करने की जिम्मेदार विधायी संस्थाओं की असफलता है. कोर्ट ने गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए 1985 से लेकर अब तक तक दिए गए अपने महत्वपूर्ण आदेशों का जिक्र भी किया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के मोदी सरकार के प्रयासों की सराहना की. कोर्ट ने कहा कि नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार गंभीर प्रयास करती दिख रही है. ऐसे में नदी के प्रदूषण मुक्त होने की उम्मीद दिखाई देती है.

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