जजों की राय में फर्क ने दी याकूब को राहत

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रहे जज जस्टिस कुरियन जोसेफ ने याकूब की भूल-सुधार याचिका की सुनवाई पर ही सवाल खड़ा कर दिया। नियम का हवाला देते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि याकूब की भूल-सुधार याचिका की सुनवाई में कमी नजर आ रही है। वहीं सुनवाई कर रहे दूसरे जज जस्टिस एआर दवे ने कहा कि अब इस मामले में कुछ नहीं बचा है। जस्टिस एआर दवे ने कहा कि याकूब का याचिका खारिज होनी चाहिए जबकि जस्टिन कुरियन जोसेफ ने कहा कि याकूब की क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई में कुछ त्रुटियां हैं इसलिए दोबारा सुनवाई होनी चाहिए।

अब फैसला करेगी बड़ी बेंच

याकूब को फांसी का मामला अब चीफ जस्टिस को भेजा जाएगा। चीफ जस्टिस इस पर बड़ी बेंच का गठन करेंगे। अटॉर्नी जनरल द्वारा चीफ जस्टिस से सुनवाई के लिए जल्द से जल्द बड़ी बेंच गठित करने की गुजारिश मानने के बाद आज शाम चार बजे यह तय होगा कि इस मामले पर कौन सी बेंच सुनवाई करेगी।

सजा ए मौत हुई है याकूब को

जस्टिस एआर दवे ने कहा कि याकूब को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा दी है। फिलहाल उसकी एक दया याचिका महाराष्ट्र के गवर्नर के पास लंबित है। इसके बाद उसकी फांसी का रास्ता साफ हो जाता है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि मौजूदा दोनों जजों की राय अलग-अलग होने के कारण ऐसा किया गया है। साथ ही याकूब के डेथ वारंट पर भी रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच अब इस मामले पर बुधवार को सुनवाई करेगी। अगर कोर्ट ने उसकी दलील स्वीकार कर ली तो उसे फौरी राहत मिल जाएगी।

गौरतलब है कि मेमन पर फैसला सोमवार को ही आना था लेकिन सुनवाई के दौरान जजों की बेंच ने इस मामले की और तफ्सील से सुनवाई की जरूरत समझी थी। याकूब की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो जजों की बेंच बनाई है। दो सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति कूरियन जोसेफ शामिल हैं। याकूब ने अपनी याचिका में कहा है कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैरकानूनी है।

कैसे शुरू हुआ सिलसिला

सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को मेमन की क्यूरेटिव याचिका अस्वीकार कर दी थी। उसी दिन मेमन ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के समक्ष एक दया याचिका दायर की थी, जिसमें उसने मांग की थी कि उसकी फांसी को उम्रकैद में बदल दिया जाए। गौरतलब है कि 9 अप्रैल को पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी किया गया जबकि क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी। ऐसे में क्यूरेटिव से पहले डेथ वारंट जारी करना गैर-कानूनी है, नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसके लिए 27 मई 2015 के सुप्रीम कोर्ट के शबनम जजमेंट का हवाला दिया गया है।

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