अमरीकी जीवविज्ञानी शॉर्लट लिंडक्विस्ट के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने दावा किया है कि उन्होंने येती और उसके अंत से जुड़े रहस्यों को ढूंढ निकाला है। वो कहते हैं कि ये नतीजे निश्चय ही उससे जुड़ी काल्पनिक कथाओं को मानने वालों को निराश करेगी।

जांच में क्या पाया गया?

लिंडक्विस्ट न्यूयॉर्क में बफेलो स्कूल ऑफ़ साइंस में प्रोफ़ेसर और सिंगापुर में नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हैं और उन्होंने येती के अवशेषों का डीएनए टेस्ट के ज़रिए विश्लेषण किया है।

इन अवशेषों के नमूनों में हाथ, दांत, हाथ की त्वचा, बाल और मल मिले हैं जो तिब्बत और हिमालयी इलाकों में मिले थे।

लिंडक्विस्ट ने बीबीसी को बताया, "जांच के दौरान उपलब्ध नौ नमूनों में से एक कुत्ते का निकला जबकि अन्य उस इलाके में रहने वाले आठ अलग-अलग प्रजातियों के भालू के हैं, जैसे एशियाई काले भालू, हिमालय और तिब्बत के भूरे भालू के।"

एक शोधकर्ता के अनुसार, "जिस नमूने की मैंने जांच की वो 100 फ़ीसदी भालू के थे।"

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रहस्यों को उजागर किया

लिंडक्विस्ट बताते हैं, "हमारी खोज यह बताती है कि इस इलाके के भालूओं में येती के जैविक आधार मिलते हैं, हमारा शोध इसी आनुवांशिक रहस्यों को उजागर कर सकता है।"

वो कहते हैं कि वो जानबूझकर येती के मिथकों का खंडन करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके शोध की शुरुआती अवधारणा यह थी कि ये नमूने भालूओं की उस प्रजाति से मिलते हैं, जिनकी अभी तक खोज नहीं हो सकी है।

 

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पहली बार नहीं हुआ शोध

यह पहली बार नहीं है अवशेषों के डीएनए नमूने का परीक्षण किया जा रहा है, लेकिन लिंडक्विस्ट कहते हैं कि पहले के अध्ययन विस्तृत या अपने आप में संपूर्ण नहीं थे।

उन्होंने कहा, "हमने जो शोध किया है वो आज की तारीख़ में सबसे सटीक और विस्तृत है।"

इस शोध के नतीजे ब्रिटिश अकेडमी ऑफ़ साइंस के एक प्रकाशन "प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी बी" जर्नल में छापे गये हैं।

यह शोध एशियाई भालू की उत्पत्ति के इतिहास की जानकारी हासिल करने में भी मदद करता है।

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कहीं कोई येती घूम तो नहीं रहा!

लिंडक्विस्ट ने कहा, "इस इलाके में भालू या तो असुरक्षित हैं या फिर उनका अस्तित्व ही ख़तरे में है, लेकिन उनके इतिहास के विषय में कुछ ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है।"

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अध्ययन उन लोगों को निराश कर सकती है जो येती की काल्पनिक कहानियों में विश्वास करते हैं। लेकिन किसी को भी निराश नहीं होना चाहिए।

वो कहते हैं, "कुछ लोग यह कह सकते हैं कि मेरा अध्ययन केवल कुछ नमूनों पर आधारित है, लेकिन कुछ अन्य अवशेष भी हो सकते हैं जिनकी अभी खोज ही नहीं हुई है। क्या पता, इस समय एशिया के पहाड़ों पर कहीं एक अजीब-सा प्राणी घूम रहा हो।"

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