-इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय द्वितीय मेघनाद साहा मेमोरियल अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला का शुभारम्भ

ALLAHABAD: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय द्वितीय मेघनाद साहा मेमोरियल अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला का शुभारम्भ डीडी पंत ऑडिटोरियम में सुबह 10 बजे दीप प्रज्वलन एवं प्रो। मेघनाद साहा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता प्रो। केएस मिश्र, कार्यवाहक कुलपति इविवि ने किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में प्रो। मेघनाद साहा के वैज्ञानिक योगदान के साथ सामाजिक योगदान को याद करते हुए भौतिकी विभाग में इस परम्परा को कायम रखने की बात कही। उद्घाटन सत्र में सिम्पोजियम के सोविनियर व अब्स्ट्रैक्ट का विमोचन मुख्य अथिति व विशिष्ट अतिथि के साथ प्रो। केएस मिश्र, प्रो। आरआर तिवारी, प्रो। एके राय, प्रो। पीएस यादव, डॉ। केएन उत्तम, डॉ। आरके आनंद ने किया। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो। वीके तिवारी ने किया।

आसान हुई फिंगर प्रिंट टेक्नोलॉजी

बता दें कि इस वर्कशॉप का आयोजन लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (लिब्स) तकनीक पर चर्चा व जानकारी के लिये किया गया है। यह भौतिकी की शाखा स्पेक्ट्रोस्कोपी के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभरी है। इसका उपयोग रासायनिक, जैविक, कृषि, भोजन, पर्यावरण, चिकित्सा, ग्रहों, अंतरिक्ष इत्यादि क्षेत्रों में किया जा रहा है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि अल्बर्टा विश्वविद्यालय कनाडा के वैज्ञानिक राबर्ट फेदोजेवेस ने माइक्रो लिब्स की उपयोगिता को मानव कोशिका से लेकर उल्कापिण्डों तक के अध्ययन के बारे में बताते हुए लिब्स टेक्निक की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने माइक्रो लिब्स के द्वारा फिंगर प्रिंट टेक्नोलॉजी का आसान रुप सामने आ जाने की बात कही। कहा कि लिब्स टेक्नोलॉजी की हेल्प से क्रिमिनल्स की पहचान पहले से ज्यादा सरल और सार्थक ढंग हो सकी है। फिंगर प्रिंट लेने की चुनौतियां पहले से काफी कम हुई हैं।

पानी में प्रदूषण को बताने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई

मुख्य अतिथि ने पानी, तालाबों व नदियों में बढ़ते प्रदूषण की स्थिति को पता लगाने में लिब्स की भूमिका को अभूतपूर्व बताया। कहा कि दुनिया में पीने योग्य पानी की मात्रा 01 फीसदी ही है। ऐसे में जरूरी है कि इसके उपयोग को अधिकतम स्तर तक शुद्ध रूप में इंसान के लिए मुहैया करवाया जाये। कहा कि भारत में लिब्स तकनीक की प्रमुख चुनौती इसका लेबोरेटरी स्तर तक सीमित होना है। जबकि, जरुरी है कि इस टेक्नोलॉजी के यूज को फील्ड लेवल पर भी अधिकतम किया जाये। कहा कि फील्ड पर यूज के लिए जरुरी है कि वैज्ञानिक और शोधार्थी इस दिशा में ज्यादा से ज्यादा संख्या में काम तो करें हीं, साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि इसका उपयोग ज्यादा खर्चीला न हो।

कैंसर के पूर्वानुमान में कारगर सिद्ध हुई रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी

विशिष्ट अतिथि प्रो। शिवा उमापथी आईआईएससी बंगलौर ने वैज्ञानिक भाषण में कैंसर के होने से पहले के लक्षणों का पता करने के लिए उपयोगी वैज्ञानिक विधि फेम्टोसेकेण्ड लेजर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का विस्तार से उल्लेख किया। जिससे शरीर में होने वाले परिवर्तनो का पता लगया जा सकता है। बताया कि रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा सेप्टिक का पूर्वानुमान भी संभव है। इस विधि के द्वारा किसी बोतल में उपस्थित द्रव (विस्फोटक) का पता भी आसानी से लगा पाना संभव है। टेक्निकल सेशन में स्लोवाकिया के वैज्ञानिक प्रो। पाल वेस ने उल्कापिण्डों के वर्गीकरण के लिए लिब्स के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान को समझाया।

आज सांस्कृतिक संध्या भी होगी

वहीं प्रो। एसबी राय, बीएचयू ने प्रकाश कण फोटान के योग और विभाजन को अपकन्वर्जन और डाउन कन्वर्जन द्वारा समझाया। इसका उपयोग सोलर सेल की क्षमता को बढ़ाने में किया जाता है। डॉ। प्रदीप कुमार राय, नेफ्रोलाजिस्ट ओपल हास्पिटल वाराणसी ने लिब्स के द्वारा किडनी में स्टोन पाए जाने की स्थिति में उसके अनुरुप दवाओं के इस्तेमाल को समझाया। उन्होंने किडनी स्टोन से बचने के लिए आवश्यक सुझाव भी दिये। मंगलवार की शाम में सांस्कृतिक सत्र जूनुन-ए-मौसिकी का आयोजन शाम साढ़े छह बजे से होगा। इसमें मुख्य रूप से कार्यक्रम कबीर वाणी विवेक विशाल और उनके साथियों द्वारा पेश किया जाएगा।