लैब में डीएनए जांच के लिए

राष्ट्रीय राजधानी स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नजदीक एक रिटायर्ड सैन्य अधिकारी के घर की छत पर गिरा मल मनुष्य का है अथवा चिडिय़ों का, इसका पता तीन हफ्ते में चल जाएगा। मल के बारे में वैज्ञानिक ढंग से पता लगाने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनजीटी से तीन सप्ताह का समय मांगा है। सीपीसीबी की यह मांग स्वीकार करते हुए एनजीटी ने मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी को करने का निर्णय लिया है। सीपीसीबी ने कहा कि उसने अधिकारी की छत से मिले मल का नमूना हैदराबाद की फारेंसिक साइंस लैब में डीएनए जांच के लिए भेजा है।

आर्मी अफसर के घर की छत पर ग‍िरा मल,जानें क्‍यों उसकी जांच करेंगे वैज्ञानिक

भारी जुर्माना लगाए जाने की मांग

चूंकि मल सूख गया था, जिससे पता लगाना मुश्किल हो गया था कि वह मानव मल है या चिडिय़ों का मल। दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नजदीक रहने वाले सैन्य अधिकारी ले. जनरल सतवंत सिंह दहिया ने एनजीटी में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि एयरपोर्ट पर लैंडिंग से पहले विभिन्न एयरलाइंस विमानों से मानव मल हवा में छोड़ देती हैं, जो आसपास के मकानों की छत पर गिरता है। उनके मकान की छत पर भी किसी विमान से इसी तरह मानव मल गिराया गया था। लिहाजा दोषी एयरलाइनों पर कड़ी कार्रवाई करने तथा मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करने के लिए उन पर भारी जुर्माना लगाए जाने का अनुरोध किया था।

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मानव मल के कोलीफार्म जीवाणु

इस पर एनजीटी ने एक समिति का गठन कर छत से मल का नमूना लेने तथा यह पता लगाने को कहा था कि मल मनुष्य का है या चिडिय़ों का। समिति में डीजीसीए, सेंट्रल एविएशन रिसर्च इंस्टीट्यूट तथा सीपीसीबी के सदस्य शामिल किए गए थे। सुनवाई दौरान डीजीसीए का कहना था कि विमानों के टायलेट से आसमान में मल गिराना असंभव है। अवश्य ही यह चिडिय़ों की बीट होगी, जिसे सैन्य अधिकारी ने विमान से छोड़ा गया मानव मल समझ लिया है। हालांकि सीपीसीबी ने उक्त नमूने में मानव मल में पाए जाने वाले कोलीफार्म जीवाणु पाए थे।

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