पंजाबी फिल्मों के लिए अलग सेंसरबोर्ड

डेरा सच्चा सौदा के संत गुरू गुरुमीत राम रहीमदास की फिल्म 'मैसेंजर ऑफ गॉड' की विषयवस्तु पर विवाद पैदा होने के बाद सिख समुदाय की धार्मिक संस्था ने इस तरह के विवादों को पैदा होने से रोकने का रास्ता खोज लिया है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने इस समस्या से बचने के लिए सिख हिस्टोरियंस और इंटेलेक्चुअल्स को शामिल करके एक सेंसर बोर्ड बनाने का फैसला किया है. इस कमेटी के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने बताया कि भविष्य में अगर किसी को सिख इतिहास पर आधारित कोई फिल्म बनानी होगी या फिर कोई किताब लिखनी होगी तो इसके लिए फिल्म और किताब की स्क्रिप्ट पहले पंजाबी सेंसर बोर्ड में सबमिट करानी होगी. इसके बाद अगर बोर्ड फिल्म या किताब को पास कर देता है तो फिल्म को रिलीज किया जा सकेगा. मक्कड़ ने कहा ऐसा करके पंजाबी फिल्मों पर पैदा होने वाले विवादों को रोका जा सकता है.

मुख्य सेंसर बोर्ड में दो पंजाबी सदस्य

एसजीपीसी के प्रधान अवतार सिंह मक्कड़ ने बताया कि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि केंद्रीय सेंसर बोर्ड में दो सिख सदस्यों को शामिल किया जाएगा. इसके साथ ही मक्कड़ ने कहा कि सिख समाज के सेंसर बोर्ड में चोटी के फिल्म प्रोफेशनल्स, वकीलों और इतिहासकारों को शामिल किया जाएगा. इससे पंजाबी फिल्मों पर होने वाले विवादों की संख्या कम करने में सफलता मिलेगी. उल्लेखनीय है कि 'जो बोले सो निहाल', 'सन ऑफ सरदार', 'सिंह इज किंग' और कौम दे हीरे नाम की फिल्मों पर गंभीर विवाद पैदा हो चुके हैं.

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