भारत हो या पाकिस्तान क्रिकेट को लेकर इन देशों में कैसा पागलपन है ये बताने की शायद ज़रूरत नहीं है। 10 मार्च से भारत-पाक मैचों का ऐसा ही रोमांच चेन्नई में देखने को मिलेगा। भारत-पाक क्रिकेट मैच का ज़िक्र सुनकर आप हैरान न हों। यहाँ भारत और पाकिस्तान के नेत्रहीन खिलाड़ियों की क्रिकेट सिरीज़ की बात हो रही है।

भारत समेत विश्व के कई देशों में ब्लाइंड क्रिकेट खेला जाता है, ये बात और कि हम-आप में से कई लोगों को इसकी भनक भी नहीं है। इन खिलाड़ियों की आँखों में या तो थोड़ी-बहुत ही रोशनी या बिल्कुल रोशनी नहीं है लेकिन हौसले और जुनून में कोई कमी नहीं।

भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम के कप्तान शेखर नायक की कहानी इस जुनून की मिसाल है। ग़रीबी में पले और बचपन में ही अनाथ हुए शेखर ने कभी दृष्टिहीनता को अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया। एक ऑपरेशन के बाद जब उन्हें थोड़ा थोड़ा दिखाई देने लगा तो क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी हुई। धुँधली ही सही पर उन्हें अपनी मंज़िल नजर आने लगी।

अपने जीवन के बारे में वे बताते हैं, "हमारी पारिवारिक स्तिथि अच्छी नहीं थी। बचपन में ही पिताजी गुज़र गए। माँ नेत्रहीन होते हुए भी खेती करके गुज़र बसर करती थीं। ये 90 की दशक की बात है। ऑपरेशन के कारण मुझे थोड़ा बहुत दिखाई देने लगा था। जब भी भारत-पाक मैच टीवी पर आता तो हम सब देखा करते थे। खिलाड़ी जब छक्के लगाते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था। तभी से मुझे लक्ष्य मिल गया कि मुझे भी क्रिकेट खेलना है, नाम रोशन करना है। माँ ने भी बहुत हौसला बढ़ाया."

लेकिन किस्मत ने शेखर के साथ फिर खेल खेला। शेखर बताते हैं, "1998 में मेरी माँ भी गुज़र गई। अब न माँ-बाप थे न कोई भाई बहन। मैं बहुत दबाव में आ गया था। मेरे मौसी-मौसा ने मुझे सहारा दिया। इसी बीच स्कूल में क्रिकेट में मुझे सफलता मिलने लगी। मेहनत रंग लाई और 2002 में मुझे भारत के लिए विश्व कप खेलने का मौका मिला। फिर मैं भारतीय टीम का कप्तान बन गया। गाँववालों को भी लगा एक लड़का जो अंधा है, माँ-बाप नहीं है वो ऐसा कर गया.मुझे बहुत शाबाशी मिली." बड़े मासूम अंदाज में वे कहते हैं, "मेरी आखों में आँसू आ गए थे उस दिन."

'लोगों ने कहा नेत्रहीन है तो गुनाह किया होगा'

भारत से उलट पाकिस्तान में ब्लाइंड क्रिकेट कहीं ज्यादा लोकप्रिय है और वो मौजूदा विश्व चैंपियन है। लेकिन नेत्रहीन खिलाड़ियों की संघर्ष की दास्तां वहाँ भी भारत के शेखर नायक जैसी ही है। पाकिस्तान ब्लाइंड क्रिकेट काउंसिल के चेयरमैन सईद सुल्तान शाह नेत्रहीन हैं और पूर्व में क्रिकेट खिलाड़ी थे।

वे बताते हैं, "मैं नौ साल का था जब मेरी आँखों की रोशनी चली गई है। मेरे और परिवार के लिए इस बात से समझौता कर पाना मुश्किल था। लोगों ने कई तरह की बातें बनाई कि किसी गुनाह का नतीजा है। मेरे पिता हर डॉक्टर, हकीम, पीर फकीर के पास गए। नाउम्मीद होकर मुझे ब्लाइंड स्कूल में डाल दिया गया। ये भारत-पाक बटवारे से पहले का स्कूल है। वहाँ मैने क्रिकेट खेलना शुरु किया। उसके बाद मेरी ज़िंदगी ऐसी बदली कि मैने पीछे मुड़कर नहीं देखा."

अगर भारत की बात करें तो 2006 के विश्व कप में भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम फ़ाइनल में पहुँची थी। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की ब्लाइंट टीमों के बीच ऐशेज़ सिरीज़ भी होती है।

थोड़े अलग हैं ब्लाइंड क्रिकेट के नियम

ब्लाइंड क्रिकेट 90 फ़ीसदी तो सामान्य क्रिकेट की तरह होता है, लेकिन कुछ नियम क़ायदे अलग होते हैं। 11 खिलाड़ियों में से कम से कम चार पूर्ण रूप से दृष्टिहीन होने चाहिए और तीन आंशिक रूप से दृष्टिहीन। वनडे मैच 40 ओवर का होता है और टेस्ट मैच तीन दिन का। टेस्ट मैच में पूर्ण रूप से दृष्टिहीन बल्बेबाज़ के लिए रनर होता है और वो जितने भी रन बनाता है उसे दोगुना करके जोड़ा जाता है।

आंशिक रूप से दृष्टिहीन बल्लेबाज़ चाहें तो रनर ले सकते हैं। जब गेंदबाज़ गेंद डालने के लिए तैयार हो तो उसे बल्लेबाज़ को 'रेडी' बोलना पड़ता है। और बल्लेबाज़ को हाँ में जवाब देना पड़ता है। गेंद फ़ेंकने से पहले गेंदबाज़ को 'प्ले' कहना पड़ता है वरना नो बॉल हो जाती है। गेंदबाज़ दाएँ हाथ से गेंद डालेगा या बाएँ हाथ से ये अंपायर को बताना होता है।

गेंद में छर्रे भरे होते हैं ताकि जब गेंद फेंकी जाए तो उसमें से आवाज़ आए। ब्लाइंड क्रिकेट में अंडर आर्म बोलिंग की जाती है। गेंद का वजन 86 ग्राम से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

भारत, इंग्लैंड, पाकिस्तान समेत कई देशों के नेत्रहीन खिलाड़ी अब ब्लाइंड क्रिकेट में नाम कमा रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहे इन खिलाड़ियों को ब्लाइंड क्रिकेट ने न सिर्फ़ दौलत दी है पर शोहरत भी। और उससे भी ज्यादा आत्मसम्मान.इनकी आँखों में रोशनी भले न हो पर अपनी हिम्मत और जुनून से इन नेत्रहीन खिलाड़ियों ने दूसरों को राह जरूर दिखाई। भारतीय ब्लाइंड टीम के कप्तान शेखर नायक ऐसी ही एक मिसाल हैंवे असल ज़िंदगी के नायक हैं।

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