shubh mangal savdhan - शुभ मंगल शानदार

कहानी
सुगंधा और मुदित की एक क्यूट सी लवस्टोरी है जो शादी में तब्दील होने वाली है, पर मुदित को एक 'छोटी' सी जेंट्स प्रॉब्लम है, जिससे ये छोटी सी लवस्टोरी एक बड़ी समस्या में तब्दील हो जाती है। परिवारों में घमासान हो जाता है और फिर 'मर्दानगी' का महिमामंडन करने वाली इस दुनिया में कैसे होता है 'शुभ मंगल सावधान', यही है फिल्म की कहानी।

समीक्षा
लगता ही नहीं की ये निर्देशक प्रसन्ना की पहली हिंदी फिल्म है। मैंने इस फिल्म की ओरिजिनल फिल्म नहीं देखी है, इसलिए में इसे फ्रेश फिल्म की तरह ही देख रहा था। सबसे पहले तो ऐसा सब्जेक्ट चुनने के लिए तालियाँ जिसपर सहज दो दोस्त भी बात करने से हिचकिचाते हैं। बड़ी हिम्मत चाहिए ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने के लिए जिसमें हीरोइज्म से ग्रसित इस फ़िल्मी जगत का हीरो, अपनी मर्दानगी न दिखा पाए। फिल्म का हीरो अलग है, वो भले ही गुंडों से पिट जाता है पर फिर भी वो हीरो है, और प्यार की खातिर अपने माँ बाप के सामने भरे मंडप में अपनी होने वाली बीवी के एवज़ में केले के पेड़ से शादी कर लेता है। फ्रेंकली बोलूँ तो ये इस साल की सबसे बढ़िया लवस्टोरी है।
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इस फिल्म में क्लिशेज कम हैं, न तो बिकिनी पहने हिरोइन  है, न ही यूरोप का टूर। फिल्म दिल्ली के नेहरु प्लेस से लेकर हरिद्वार तक ही जाती है, और बरात में हमारा हीरो बस की छत पर लद कर जाता है। रीयलिस्टिक लोकेशन और वैसे ही घर हैं जैसे हम मिडल क्लास लोगों के होते हैं, कहानी हमारे आपके घरों जैसी ही लगती है, वैसे ही रिश्तेदार हैं, जो ऑनलाइन भले रिश्ता ढूँढ़ते हों, पर पैर न छूने पर ज़मीन आसमान सर पर उठा लेते हैं। एक अनोखी शादी की इस कहानी के असली हीरो हैं फिल्म के स्क्रीनप्ले और डायलॉग राइटर हितेश केवल्या, फिल्म देखते वक़्त मन कर रहा था की ताऊ जी की तरह उनका मुंह चूम लूं, इतने ज़बरदस्त डायलॉग बड़े दिनों से सुनने को नहीं मिले। अगर थोडा सा भी इधर का उधर हो जाता तो फिल्म एक भद्दी फिल्म बन सकती थी, पर अपनी उम्दा राइटिंग के चलते ये फिल्म कॉमेडी तो रहती है पर सेक्स कॉमेडी बनने से बच जाती है। केवल्या को इस एफर्ट के लिए रॉयल सल्यूट।
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एक्टिंग
आयुष्मान खुराना की ये लगातार तीसरी फिल्म है जिसमें उनका काम काबिल ए तारीफ है, उनमें आपको अमोल पालेकर की झलक ज़रूर मिलेगी। मिडल क्लास लड़के के नुआंस बारीकी से पकड़ कर रखते हुए उन्होंने एक नॉकआउट परफॉरमेंस दी है। उनको देख कर हर एक लड़की का दिल करेगा की उनसे शादी करले। भूमि पेडणेकर का तो मैं फैन बनता जा रहा हूँ, वो इस ज़माने की 'जया भादुड़ी', बनती जा रही है, कहने का मतलब है मिडल पाथ सिनेमा की स्टार। सीमा पाहवा इस ज़माने की निरूपा रॉय बनने से बस दो फिल्म पीछे ही हैं, उनका काम भी माइंडब्लोइंग है।
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क्या नहीं आया पसंद
अफरातफरी भरा क्लाइमेक्स और जिमी शेरगिल का वेस्टेड केमिओ। अगर अंत थोडा और बेहतर होता तो बस मज़ा ही आ जाता। कुछ सालों से ऐसी फिल्में फिर से फ़िल्मी पटल पर आ रही हैं, हो हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों की तरह मिडल ऑफ़ द पाथ सिनेमा कही जा सकती हैं। चाहे वो विक्की डोनर हो, दम लगा के हइशा या हाल ही में आई बरेली की बर्फी, ये सभी फिल्में सोशल सब्जेक्ट्स पर बनी हुई फेमिली फिल्म्स हैं। शुभ मंगल सावधान एक अलग किस्म की फिल्म है, ये बच्चों के लिए नहीं है, पर अगर आपका बचपन जवानी में बदल गया है तो आप अपने पूरे परिवार के साथ ये फिल्म देखने जा सकते हैं। अपने माँ बाप और ताई और ताऊ जी को भी ज़रूर लेके जाइयेगा।

 

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