- बंटवारे के बाद पीयूष के बाबा ने परिवार समेत प्रेमनगर से शुरू किया जिंदगी का 'दूसरा' सफर

- पैसों की दलाली से लेकर परचून की दुकान तक में हुआ नुकसान

-पीयूष के पिता और चाचा ने पंचर तक की दुकान तक खोली

- बहन का बेटा गोद लेने के बाद ओमप्रकाश के घर हुआ था पीयूष का जन्म

abhishek.mishra@inext.co.in

KANPUR : शहर के सनसनीखेज हत्याकांड के बाद अचानक सुर्खियों में आया श्यामदासानी परिवार महज छह दशक पहले तक फर्श पर था। जन्म के बाद भले ही पीयूष को कभी दौलत की कमी महसूस न हुई हो, मगर उनके पिता और बाबा ने गरीबी के वो दिन भी देखे हैं जब खाने तक के लाले पड़ते थे। कैसे भ्म् गज के मकान से इस परिवार ने अपनी जिंदगी का सफर शुरू किया.? परचून की दुकान से लेकर पंचर बनाने तक का काम किया.? अचानक ऐसा क्या हुआ कि इस परिवार के पास अकूत धन-दौलत आ गई और यह परिवार शहर के अरबपति बिजनेस घरानों में शुमार हो गया जानिए इस स्टोरी में

वो म्0 का दशक

बात करीब सन म्0 की है सोर्सेज के अनुसार बंटवारे के बाद पीयूष के बाबा और ओमप्रकाश के पिता 'कोड़ामल गन्नामल' परिवार समेत कानपुर आ पहुंचे। यहां उन्होंने क्0भ्/7फ्म् प्रेम नगर इलाके में दो कमरों वाला मकान किराए पर लिया। भ्म् गज वाले दो कमरों के मकान में अपनी पत्नी, बेटों राजमोहन, ओमप्रकाश और बेटी के साथ गुजर-बसर शुरू की। बड़ा परिवार, लेकिन पास में ज्यादा पैसे नहीं बामुश्किल घर का खर्च निकल पाता। तब उन्होंने 'पैसों की दलाली' का काम शुरू किया। बड़े बिजनेसमैन का पैसा सिंधी व्यापारियों को ब्याज पर दिलवाने का काम साथ में प्रॉपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू किया। मगर, यह धंधा ज्यादा दिनों तक टिक न सका।

परचून से पंचर की दुकान तक

वक्त बीतने के साथ ही परिवार की जरूरतें भी बढ़ने लगीं। तब उन्होंने घर के नीचे ही परचून की दुकान खोली। मॉर्डन ब्रेड और पराग दूध बेचने का काम शुरू किया। मोहल्ले के ही कुछ बुजुर्ग लोगों ने बताया कि घर का बड़ा बेटा राजमोहन (घर में और दोस्त-यार मोहन कहकर बुलाते थे) खाने-पीने के काफी शौकीन थे। उनके इस शौक की वजह से परिवार की माली हालत काफी खराब हो गई। तब तक कोड़ामल गन्नामल भी काफी बुजुर्ग हो चले थे। जबर्दस्त घाटा हुआ और परचून की दुकान भी बंद हो गई। गुजर-बसर के लिए दोनों भाइयों ने पंचर बनाने की दुकान खोली। फिर भी घरखर्च नहीं चलता तो आसपड़ोस से उधार तक मांगकर काम चलाना पड़ता था।

लोन लेकर लगाया कारखाना

इधर घर की माली हालत बिगड़ती जा रही थी। दूसरी ओर बच्चों की जरूरतें भी बढ़ने लगीं। इसी बीच दोनों भाइयों ने खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में कारखाना लगाने के लिए क्0 हजार का लोन लेने की अर्जी लगाई। केस काफी पेचीदा था, इसलिए पहली बार में एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई। सोर्सेज के मुताबिक बोर्ड में ही तिवारी जी हुआ करते थे। उनकी मदद से श्यामदासानी भाइयों का लोन सेंक्शन हुआ। तब संगीत सिनेमा के सामने एक हाते में दोनों भाइयों ने मिलकर होजरी के डिब्बे बनाने का कारखाना डाला। धीरे-धीरे काम बढ़ा तो राजमोहन के बच्चे भी बिजनेस में हाथ बंटाने लगे।

बहन का बेटा लिया गोद

जिस वक्त श्यामदासानी परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर रही थी। उसी वक्त राजमोहन के तीन बेटे कमलेश, संजू और ललित हुए। मगर, छोटे भाई ओमप्रकाश के तब तक कोई संतान नहीं हुई थी। तब उन्होंने अपनी बहन का बेटा (पीयूष का बड़ा भाई मुकेश) गोद लिया। आपसी सहमति के बाद गोद लेने की प्रक्रिया की बाकायदा लिखापढ़ी भी करवाई गई। इसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे कि अपने बच्चे के लिए जो दम्पति रोज भगवान की चौखट पर माथा टेकते थे। कई सालों के बाद भी कोई संतान नहीं हो रही थी। मुकेश (जिसके घर का नाम मुक्की है) के घर में आते ही ओमप्रकाश और पूनम की जिंदगी में खुशहाली आ गई। कुछ सालों बाद ही पूनम ने पीयूष को जन्म दिया। इस बीच पार्टनरशिप में मेसर्स हिमांगी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से सचेंडी में फैक्ट्री डाली।

कमलेश की शादी के बाद चमकी किस्मत

श्यामदासानी परिवार का रसूख बढ़ने लगा तो मोहन के बड़े बेटे कमलेश की शादी व्यावसायी लालजी दयाल (शहर के बड़े व्यापारी) की भतीजी के साथ हुई। इसके बाद तो फैमिली ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा। किस्मत कुछ ऐसी चमकी कि बस चारों तरफ से पैसा ही पैसा बरसने लगा। पीयूष के पिता और राजमोहन के छोटे भाई ने मुंबई तक दौड़भाग करके पारले-जी की फ्रेंचाइजी कानपुर के लिए अप्रूव करवाई। पनकी में मेसर्स स्वाति बिस्कुट नाम से फैक्ट्री डाली।

पाण्डु नगर हुए शिफ्ट

परिवार में सदस्य बढ़ने लगे तो श्यामदासानी परिवार ने प्रेम नगर एरिया छोड़ने का फैसला कर लिया। इसके बाद मुफीद जगह पाण्डु नगर एरिया दिखा। वहां बंगला बनकर तैयार हुआ तो पूरा परिवार वहीं शिफ्ट हो गया। इस बीच जिस जगह ओमप्रकाश और मोहन पंचर जोड़ा करते थे। वहां उन्होंने छोटा सा ऑफिस बनवा लिया। फैक्ट्री की ऑर्डर बुकिंग से लेकर एकाउंटेंसी का सारा काम इसी ऑफिस से होता था। हालांकि, कुछ समय बाद यहां उठना-बैठना भी बंद हो गया। देखरेख के लिए बस एक नौकर यहां पर आकर साफ-सफाई और पूजापाठ करता है।

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ऊंचे-रसूखदारों से सम्पर्क

पैसा, पॉवर और पॉलिटिक्स तीनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं इनमें से एक भी कहीं होगा तो बाकी दो खिंचे चले आयेंगे। श्यामदासानी परिवार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिजनेस में बढ़ोतरी के दौरान ही ओमप्रकाश ने फ्लोर मिल में भी हाथ आजमाया। किस्मत के धनी श्यामदासानी भाइयों को यहां भी जमकर मुनाफा हुआ। पैसा आया तो पॉलिटिक्स और पॉवर का भी चस्खा लगा। इंडस्ट्रियलिस्ट्स और बिजनेसमैन तो सम्पर्क में थे ही कुछ ही समय में नेताओं से लेकर पुलिस-प्रशासनिक लॉबी में भी उठना-बैठना शुरू हो गया। ऊंचे और रसूखदारों से सम्पर्क का फायदा भी इन उद्योगपतियों ने खूब उठाया। और देखते ही देखते इस परिवार की गिनती शहर के अरबपति कैटेगरी में शुमार हो गया।

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'प' से शुरू, 'प' पर खत्म

श्यामदासानी परिवार की फर्श से अर्श तक पहुंचने की भ्भ् साल की कहानी में 'प' शब्द का रोल काफी अहम है। पाकिस्तान से आकर प्रेम नगर में परिवार का बसना फिर यहां से पनकी एरिया में पारले-जी की फैक्ट्री सेटअप करना व्यापार बढ़ने के बाद पाण्डु नगर शिफ्ट होना पैसों के दम पर पॉवर-फुल ढंग से पॉलिटिक्स तक पहुंचना परिवार के ही छोटे बेटे पीयूष का प्यार में अंधा होकर पत्नी का कत्ल करना फिर पुलिस लॉकअप तक पहुंचने की कहानी किसी को भी हैरान कर देने के लिए काफी है।

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