RANCHI: विकास में बाधक नक्सलियों के सफाये में सोलर मोबाइल फोन टावर कारगर हथियार साबित हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की महत्वपूर्ण योजना के तहत लगे इन टावरों पर नक्सली न धावा बोल पा रहे हैं और न ही इसके तार काटने के मौके मिल रहे हैं। अपने क्षेत्र में अक्सर सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि निर्माण को बाधित करने वाले इन नक्सलियों की हर चाल को इस मोबाइल नेटवर्क ने नाकाम करना शुरू कर दिया है।

पुलिसिया कार्रवाई में मदद

झारखंड में नक्सल प्रभावित इलाकों में लगाए गए सौर ऊर्जा से चलने वाले मोबाइल फोन टॉवर जहां सुरक्षा बलों और आदिवासियों को सशक्त बना रहे हैं, वहीं चरमपंथियों के प्रभाव को कम करने में भी मदद कर रहे हैं। इन टॉवरों की वजह से ही नक्सल इलाकों में सुरक्षा बलों की आवाजाही बढ़ी है। इससे नक्सलियों का सफाया करने में बड़ी मदद मिली है, जिन्होंने इलाके में आतंक का राज कायम कर लिया है

लातेहार, गुमला में बड़ी सफलता

सीआरपीएफ के डीआईजी राजीव राय के मुताबिक, पहले नक्सली सेलफोन टॉवर ध्वस्त कर देते थे या बिजली आपूर्ति लाइन काट देते थे। इससे पूरे इलाके में संचार सेवा बाधित हो जाती थी। लेकिन, अब सीआरपीएफ इन सोलर मोबाइल टॉवरों की मदद से ख्ब् घंटे सुरक्षा प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि नए लगाए गए इन टॉवर की बैट्रियां एक बार चार्ज हो जाने पर कम से कम सप्ताह भर बिजली बैकअप भी दे रही हैं। सीआरपीएफ की आवाजाही इन सेलफोन टॉवरों के लगने के कारण अब प्रभावी हो गई है। हमारे मुखबिर नक्सलियों की आवाजाही की सूचना देते हैं। इसके माध्यम से लातेहार और गुमला में नक्सलियों का काफी हद तक सफाया कर दिया गया है।

नक्सली हमले से पहले तुरंत मदद

सरकार इन इलाकों में सौर ऊर्जा से संचालित टॉवर इसलिए लगा रही है, क्योंकि इन इलाकों में बिजली की कमी एक गंभीर समस्या है और जेनरेटर की मदद से इन टॉवर्स को लगातार चला पाना आसान नहीं है। मोबाइल टॉवर्स की वजह से सुरक्षा बलों का काम आसान हो जाता है। इससे नक्सली गतिविधियों की सूचना तेजी से मिलती है। गांव वाले भी नक्सलियों की खबर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को दे सकते हें। इतना ही नहीं, नक्सली हमला होने की स्थिति में मोबाइल फोन के जरिए मदद मिल सकती है। इससे लोगों की जान भी बच रही है।

ऐसे काम करता है सोलर मोबाइल फोन टावर

सूर्य की ऊर्जा से चार्ज होनेवाले इस मोबाइल टॉवर की बैट्री अंधेरे में विकास की रौशनी फैला रही है। ये टॉवर धूप न निकलने की सूरत में भी सात दिनों तक काम कर सकता है। जीएसएम तकनीक पर आधारित ये टावर आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में लोगों को मोबाइल नेटवर्क मुहैया करा रहा है। अक्सर टॉवर एक दूसरे से ऑप्टिकल फाइबर केबल के जरिए जुड़े होते हैं, लेकिन इलाका दुर्गम होने की वजह से केबल बिछाना भी आसान काम नहीं है। लेकिन, सोलर पैनल्स की मदद से चलनेवाले ये टॉवर बिना ऑप्टिकल फाइबर केबल के सिग्नल ट्रांसफर कर पाते हैं। इसके लिए इन टॉवर्स पर ट्रांस रिसीवर उपकरण लगाए जाते हैं, जिसकी मदद से ये सिग्नल रिसीव भी कर पाते हैं और ट्रांसमिट भी कर पाते हैं।