बचपन में ही परिपक्व हुए

रामचंद्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले में अगोना गांव में हुआ था। इनके पिता पं॰ चंद्रबली शुक्ल सदर कानूनगो थे। वहीं नौ वर्ष की उम्र में ही इनकी मां का देहांत हो गया था, जिससे यह बचपन काफी परिपक्व हो गए थे।

अध्ययन का माहौल नहीं मिला

आचार्य रामचंद्र शुक्ल पढाई-लिखाई में काफी तेज थे लेकिन उन्हें अध्ययन के लिए बेहतर माहौल नहीं मिल पाया था। इन्होंने उच्च शिक्षा पाने के लिए काफी मेहनत की। रामचंद्र शुक्ल एंन्ट्रेंस और एफ. ए. की उच्च परीक्षाओं में भी शामिल हुए थ्ो।

वकालत में रुचि नहीं थी

रामचंद्र के पिता उन्हें वकालत पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनको वकालत में रुचि नहीं थी। रामचंद्र को साहित्य में ज्यादा आनंद आता था। परिणाम यह हुआ जब उनके पिता ने उन्हें इलाहाबाद वकालत करने भेजा तो वह अनुतीर्ण हो गए थे।

आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल,जिन्‍होंने लिखा हिंदी साहित्‍य का इतिहास

शिक्षक के रूप में नौकरी

रामचंद्र ने पहली नौकरी एक शिक्षक के रूप में की थी। यह 1904 में मिशन स्कूल में कला अध्यापक के रूप में पढ़ाते थ्ो। वहीं 1919 में यह हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे थे। इसके बाद वहीं पर 1937 में हिंदी विभागाध्यक्ष बने।

हिंदी साहित्य में तेजी से बढ़े

रामचंद्र शुक्ल जी अपनी रुचि के मुताबिक हिंदी साहित्य की ओर तेजी से बढ़े। इन्होंने 1908 में नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी कोश के लिए सहायक संपादक के रूप में वाराणसी प्रस्थान किया। इसके अलावा आनंद कादंबिनी का भी संपादन किया।

हिंदी साहित्य का इतिहास में

रामचंद्र शुक्ल सिर्फ साहित्यकार ही नहीं बल्कि लेखक व निबंधकार के रूप में भी जाने गए। इन्होंने हिंदी साहित्य का इतिहास में इन्होंने काव्य प्रवृत्तियों एवं कवियों के परिचय के अतिरिक्त समीक्षा हिंदी साहित्य की समीक्षाएं की थी।

ऐतिहासिक रचनाएं की

रामचंद्र शुक्ल जी ने आलोचनात्मक रचनाओं में सूर, तुलसी, काव्य में रहस्यवाद, काव्य में अभिव्यंजनावाद, जायसी पर की गई आलोचनाएं, रस मीमांसा आदि है। इसके अलावा इन्होंने निबंधात्मक रचनाएं व ऐतिहासिक रचनाएं की है।

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दर्शन के क्षेत्र में योगदान

इतना ही नहीं रामचंद्र शुक्ल जी ने हिंदी शब्द सागर, चिंतामणि के अलवा नागरी प्रचारिणी पत्रिका आदि लिखी थी। दर्शन के क्षेत्र में भी इनका योगदान रहा। इन्होंने 'रिडल ऑफ दि यूनिवर्स' का अनुवाद कर विश्व प्रपंच नाम की किताब लिखी।

रचनाकार के जीवन को स्थान

रामचंद्र शुक्ल ने और भी कई रचानाएं की थीं जो आज भी हिंदी के पाठ्य क्रमों में पढाई जाती हैं। शुक्ल जी बीसवीं शताब्दी के हिंदी क्षेत्र में प्रमुख साहित्यकार के रूप में उभरे थे। इन्होंने रचनाकार के जीवन और पाठ को भी विशेष स्थान दिया था।

शुक्ल जी का स्थान बहुत ऊंचा

हिंदी के क्षेत्र में हिंदी साहित्य की अनोखी विधियां देने वाले रामचन्द्र जी का स्थान बहुत ऊंचा हैं। इन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे। रामचंद्र शुक्ल ने 1941 में हृदय की गति रुक जाने से इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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