- 27 साल से 30 सीटों से ज्यादा नहीं पा सकी कांग्रेस

- माया-मुलायम के सियासी दांवों से पार पाना होगा मुश्किल

- बसपा से गठबंधन कर गहरा नुकसान उठा चुकी है कांग्रेस

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LUCKNOW: 27 साल, यूपी बेहाल का नारा लेकर चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करने वाली कांग्रेस फिर दोराहे पर खड़ी हो गयी है। समाजवादी पार्टी की कलह के सहारे यूपी में अपनी राजनीति चमकाने की उसकी ख्वाहिश अब किसी चमत्कार से ही पूरी हो सकती है। सपा में रार के बाद होने वाले नुकसान का आकलन करने में जुटी कांग्रेस अपने पत्ते खोलने से कतरा रही है। यही वजह है कि चुनाव में एक माह से कम समय होने के बावजूद न ही गठबंधन को लेकर वह कोई फैसला ले पाई है और ना ही अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान का साहस जुटा पा रही है।

राजीव गांधी के बाद रूठी जनता

कभी यूपी के सहारे केंद्र में सरकार बनाने वाली कांग्रेस राजीव गांधी के शहीद होने के बाद प्रदेश में बिखर गयी। पार्टी ने सत्ता में वापसी के लिए 1996 में बसपा से गठबंधन भी किया लेकिन महज 33 सीटें मिलने से फार्मूला भी फेल हो गया। बाद में बसपा ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली और कांग्रेस को गहरा राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा। अब कांग्रेस का पूरा दारोमदार सपा से गठबंधन पर है लेकिन यह भी भविष्य में फायदेमंद नहीं दिख रहा। दरअसल सपा में फूट का असर चुनाव पर पड़ना तय माना जा रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लोकप्रियता के सहारे सूबे में दोबारा खुद को मजबूत करने की कांग्रेस की कवायद में सबसे बड़ा रोड़ा मुलायम सिंह यादव हैं जो जातिगत समीकरणों की राजनीति के उस्ताद माने जाते हैं। मुलायम ने यदि मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में कर लिया तो गठबंधन के बाद भी कांग्रेस को कोई फायदा मिलने के आसार नहीं दिख रहे है।

बसपा के वोट बैंक में सेंध

कांग्रेस की पूरी कोशिश बसपा से 1996 के चुनावी गठबंधन का बदला लेना है। उस दौरान गठबंधन की वजह से कांग्रेस का मूल दलित वोट बैंक पूरी तरह बसपा के पाले में चला गया था। अब कांग्रेस बसपा के दलित वोट बैंक और सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है। वहीं बसपा ने विधानसभा चुनाव में 97 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं जो मुस्लिम वोट बैंक को निश्चित रूप से प्रभावित करेंगे। सियासी जानकारों की मानें तो इन हालात में कांग्रेस के लिए चुनाव पूर्व कोई भी गठबंधन फिर से घातक सिद्ध हो सकता है। दमदार चेहरे के अभाव में बसपा की तरह उसका वोट बैंक अब सपा की ओर रुख कर सकता है। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती भी दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस के थिंक टैंक को अपना फैसला बदलने को मजबूर कर सकती हैं। अब देखना यह है कि सपा के चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम को लेकर चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद कांग्रेस क्या रुख अपनाती है।

पिछले चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन

वर्ष सीट वोट प्रतिशत प्रत्याशी

1985 269 39.25 410

1989 94 27.9 410

1991 46 17.32 413

1993 28 15.08 421

1996 33 8.35 126

2002 25 8.9 402

2007 22 8.61 393

2012 28 11.65 355