-संस्कृत यूनिवर्सिटी पर राज्य सूचना आयुक्त ने उठाया सवाल

- पांडुलिपियों की छायाप्रति के लिए पिछले पांच साल से दौड़ रहे कस्टम के असिस्टेंट कमिश्नर

-एग्जिक्यूटिव काउंसिल का हवाला देकर फोटो कॉपी देने में की जा रही हीलाहवाली

VARANASI

संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन आरटीआई के तहत प्रॉपर सूचना उपलब्ध नहीं करा रहा है। करीब 250 मामले सालों से लंबित हैं। हालत यह है कि कस्टम एंड सेंट्रल एक्साइज के संयुक्त आयुक्त सोमेश तिवारी पिछले पांच सालों से पांडुलिपियों की छायाप्रति मांग रहे हैं। वहीं एग्जिक्यूटिव काउंसिल का हवाला देते हुए यूनिवर्सिटी पांडुलिपियों की फोटो कॉपी देने में हीलाहवाली कर रहा है। वहीं राज्य सूचना आयुक्त ने इस मामले में इतना तक कह चुके हैं कि क्या कार्यपरिषद संसद से ऊपर है। राज्य सूचना आयुक्त की तीखी टिप्पणी के बाद भी विश्वविद्यालय पांडुलिपियों की छायाप्रति देने को तैयार नहीं है।

पांच साल से काट रहे चक्कर

इस क्रम में उन्होंने आरटीआई के तहत 26 जुलाई 2012 में सांख्ययोग तंत्र से जुड़ी 32 पांडुलिपियों की जिरॉक्स कॉपी मांगी है। वहीं विश्वविद्यालय के जनसूचना अधिकारी ने यह कहते हुए पांडुलिपियों की छायाप्रति देने से इंकार कर दिया कि कार्यपरिषद के निर्णय के अनुसार शोध व प्रकाशन के लिए ही पांडुलिपियों की छायाप्रति दी जा सकती है। इसलिए आप यूनिवर्सिटी के सरस्वती भवन में आकर पांडुलिपियों का अध्ययन कर सकते हैं।

राज्य सूचना आयोग तक गुहार

इस पर उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए पुन: पांडुलिपियों की छायाप्रति देने का अनुरोध किया। विश्वविद्यालय उन्हें हर बार टालता रहा। ऐसे में उन्होंने राज्य सूचना आयोग, लखनऊ तक गुहार लगाई। इस पर विश्वविद्यालय ने उन्हें इंदिरा गांधी कला केंद्र, नई दिल्ली की वेबसाइट पर पांडुलिपियां डाउनलोड करने का सुझाव दिया। ऑनलाइन वेबसाइट पर पांडुलिपियां न मिलने पर उन्होंने दोबारा राज्य सूचना आयुक्त का दरवाजा खटखटाया।

फाइन पर भी नहीं बनी बात

इससे नाराज राज्य सूचना आयुक्त ने विवि के जनसूचना अधिकारी पर अर्थदंड लगाते हुए तलब कर लिया। वहीं जन सूचना अधिकारी के आश्वासन के बाद राज्य सूचना आयुक्त ने फिलहाल अर्थदंड माफ कर दिया है। साथ ही 26 फरवरी तक हरहाल में पांडुपिलियों की छायाप्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। खास बात यह कि यह प्रकरण एक बार कार्यपरिषद से खारिज हो चुका है। राज्यसूचना आयुक्त के सख्त निर्देश व जनसूचना अधिकारी/रजिस्ट्रार के अनुरोध पर विश्वविद्यालय कार्यपरिषद की बैठक इस प्रकरण पर दोबारा विचार करने के लिए राजी हो गई है।

रिसर्च व पब्लिकेशन के लिए पांडुलिपियों की फोटो कॉपी दी जा सकती है तो किसी को अध्ययन करने के लिए क्यों नहीं। यह बात लाइब्रेरियन से कह चुके हैं लेकिन वह कार्यपरिषद का हवाला देते हुए पांडुलिपियों की फोटो कॉपी देने को तैयार नहीं हैं।

प्रभाष द्विवेदी

जनसूचना अधिकारी/रजिस्ट्रार

यूनिवर्सिटी एक्ट में एग्जिक्यूटिव काउंसिल सबसे बड़ा होता है। कार्यपरिषद के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। कार्यपरिषद का स्पष्ट निर्देश है कि सिर्फ शोध व प्रकाशन के लिए ही पांडुलिपियों की फोटा कॉपी दी जा सकती है। इस बात की जानकारी जन सूचना अधिकारी को दी जा चुकी है।

डॉ। सूर्यकांत, लाइब्रेरियन