-राजकीय आयुर्वेद हॉस्पिटल में 30 साल पुराने एंबुलेंस से मरीज पहुंचते हैं दूसरे हॉस्पिटल
-प्राइवेट एंबुलेंस से चल रहा काम
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बाहर से लकलक सफेद दिखने वाली एंबुलेंस में पेशेंट बैठने से डरते हैं। अगर बैठ भी गए तो उनकी सांस अटकी रहती है। ये हाल है डिस्ट्रिक्ट आयुर्वेद हॉस्पिटल के एंबुलेंस का। करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार यह हॉस्पिटल एक अदद एंबुलेंस को तरस रहा है। यहां आज भी तीन दशक पुराने वाहन में बने एंबुलेंस से पेशेंट्स को हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है। हालत यह है कि जितना खर्च नयी एंबुलेंस खरीदने में लगता, उससे कहीं ज्यादा मेंटनेंस में लग जा रहा है।
डेली नौ सौ तक ओपीडी
आयुर्वेद में ईलाज कराने के लिए पूर्वाचल के कोने-कोने से लोग बीएचयू के बाद राजकीय आयुर्वेद हॉस्पिटल, चौकाघाट ही आते हैं। यहां डेली नौ सौ तक लोग ओपीडी में एडवाइस लेने पहुंचते हैं। ऐसे में आए दिन किसी न किसी पेशेंट को सिटी के अन्य हॉस्पिटल में शिफ्ट करना पड़ता है। लेकिन प्रॉपर एंबुलेंस का इंतजाम न होने पर अटेंडेंट प्राइवेट एंबुलेंस सर्विस का सहारा लेते हैं। जिसमें उनको अधिक पैसे देने पड़ते हैं।
बिना एंबुलेंस के कैंप
गाइडलाइन के मुताबिक प्रत्येक महीने में दो से तीन मेडिकल कैंप लगना अनिवार्य है। यह कैंप दूर दराज एरिया में लगाने का नियम है। डॉक्टर्स व टीम के लोग तो किसी तरह नियत स्थान पर पहुंच जाते हैं, लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती। इसके चलते कई बार कैंप में पेशेंट्स को चेक करने वाले जरूरी इक्वीपमेंट मौके पर ले जाना संभव नहीं होता है। यही हाल साल में दो से तीन बार लगने वाले एनएसएस कैंप का भी है।
प्वाइंट टू बी नोटेड
-प्रत्येक साल में 2 से 3 एनएसएस कैंप
-प्रत्येक महीने में 2 से 3 मेडिकल कैंप
-हॉस्पिटल में 14 डिपार्टमेंट
-8 क्लीनिकल डिपार्टमेंट
-110 बेड
तो कैसे मिलता है फिटनेस सर्टिफिकेट
एंबुलेंस के ऊपर लगे हूटर वाली लाइट से लेकर पूरी गाड़ी पर धूल जमी रहती है। देख कर लगता ही नहीं कि इस एंबुलेंस को प्रयोग में भी लाया जाता होगा। सवाल यह कि जब आरटीओ 15 साल पुराने वाहनों को परमिट नहीं देता है तो इस एंबुलेंस को कैसे फिटनेस सर्टिफिकेट दे देता है। खास बात यह कि कंपनी जिस मेटाडोर को बंद कर चुकी है उस वाहन में एंबुलेंस है। सोर्सेज के मुताबिक राजकीय हॉस्पिटल का एंबुलेंस 1985 में खरीदा गया था।