डूब जाता है यह मंदिर
गुजरात के वड़ोदरा से 85 किमी दूर स्िथत जंबूसर तहसील के कावी-मुंबई गांव का यह मंदिर अपनी अलग खास पहचान रखता है। स्तंभेश्वर नाम का यह मंदिर दिन में दो बार सुबह और शाम को कुछ क्षण के लिए गायब हो जाता है। और थोड़ी देर बाद अपने आप वापस आ जाता है। हालांकि इसके पीछे एक ठोस वजह है। दरअसल यह अरब सागर के पास स्थित है और ज्वार-भाटा उठने के चलते ऐसा होता है। ऐसे में अगर आप शिवलिंग के दर्शन करना चाहते हैं, तो समुद्र में ज्वार कम हो तभी कर सकते हैं। मंदिर अरब सागर के मध्य केम्बे तट पर स्थित है।

श्रद्धालुओं को बांटे जाते हैं पर्चे

बताते हैं इस मंदिर की खोज 150 साल पहले हुई थी। मंदिर के अंदर स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और 2 फुट व्यास वाला है। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का खास ध्यान रखा जाता है। इसके लिए उन्हें पर्चे बांटे जाते हैं, जिसमें ज्वार-भाटा आने का समय लिखा होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इन भक्तों को किसी तरह की परेशानी न हो।  

क्या है मान्यता

सालों पुराने इस मंदिर के पीछे एक मान्यता भी है। बताया जाता है कि एक बार राक्षस ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर लिया था। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए तो उसने शिव से वरदान मांगा कि मुझे सिर्फ आपका पुत्र ही मार सकेगा और वह 6 दिन का था। शिव ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने हाहाकार मचाना शुरु कर दिया। वह देवताओं और ऋषियों को काफी प्रताड़ित करने लगी। ऐसे में सभी देवतागण और ऋषि मुनि शिवजी के पास मदद मांगने पहुंचे। तब शिव-शक्ित से श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए कार्तिकेय ने 6 दिन की आयु में ही ताड़कासुर का वध किया। जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शिव की भक्त थी। तो वे काफी व्यथित हुए। तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवा दें। इससे उनका मन शांत होगा। कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसासुर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। 

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