मेरठ की सड़कों पर दौड़ रही थी बागपत से ट्रांसफर होकर आई कंडम एसी बसें

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के खुलासे के बाद हरकत में आया विभाग, रद किया पंजीकरण

Meerut। मेरठ की सड़कों पर दौड़ रही 3 'खूनी बसों' के पहिए थम गए। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में खबर के प्रकाशित होने के बाद आरटीओ ने प्रकरण को संज्ञान में लिया और बसों के रजिस्ट्रेशन रद कर दिया। यूपी रोडवेज से अनुबंध के बाद इन एसी बसों का संचालन अंतरराज्यीय समझौते के तहत दिल्ली-मेरठ- सहारनपुर रूट पर हो रहा था। एआरटीओ ने संचालन अनुबंध निरस्त करने के लिए आरएम रोडवेज को भी लिखा है।

कबाड़ के रूप में बिक्री

शिकायत में एआरटीओ बागपत ने दिल्ली-मेरठ-सहारनपुर रूट पर संचालित 3 एसी बसों की जन्म कुंडली खोल दी थी। एआरटीओ बागपत ने तीनों बसों के प्रपत्रों का सत्यापन किया तो खुलासा हुआ कि तीनों बसों की बिक्री बस निर्माता कंपनी ने स्क्रैप (कबाड़) के रूप में की थी। नाम और दस्तावेज में परिवर्तन कर इन बसों को बागपत में रजिस्टर्ड करा दिया गया। बस स्वामियों ने एक बार फिर तथ्यों को छिपाकर 2015 में मेरठ आरटीओ कार्यालय में बसों का पंजीकरण कराया और बसें यूपी रोडवेज से संबद्ध करा दीं।

हो चुका है हादसा

सचिन गोयल की शिकायत पर कमिश्नर डॉ। प्रभात कुमार ने एआरटीओ मेरठ श्वेता वर्मा को तत्काल जांच के निर्देश दिए थे। वहीं शिकायतकर्ता ने कमिश्नर को बताया कि पिछले दिनों रिठानी में इन्हीं में से एक बस के ब्रेक फेल हो जाने से हुए हादसे में कई बाइक सवार घायल हुए थे। तथ्यों को छिपाकर खूनी बसों के संचालन में विभागीय भूमिका भी उजागर हुई है।

निरस्त किया पंजीकरण

एआरटीओ श्वेता वर्मा ने एआरटीओ बागपत की रिपोर्ट को संज्ञान में लेकर जांच की तो पाया कि बसों का पंजीकरण झूठे दस्तावेजों के आधार पर कराया था। साथ ही फर्जी रजिस्ट्रेशन के बिना पर यूपी रोडवेज से इन बसों को अनुबंधित भी करा दिया गया था। एआरटीओ ने सभी तीनों बसों के पंजीकरण निरस्त कर यूपी रोडवेज को संचालन अनुबंध निरस्त करने के संबंध में लिखा है।

यह हैं बसें

बता दें कि यूपी टी 7795 और यूपी टी 7796 बस महेश यादव पुत्र लाजप्रताप, बड़ौत के नाम पंजीकृत है तो वहीं यूपी टी 7794 नंबर की बस बड़ौत निवासी रिंकी पत्नी अरुण कुमार के नाम है।

फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कंडम एसी बसों का संचालन हो रहा था। जांच में इस बात की पुष्टि होते ही बसों का रजिस्ट्रेशन निरस्त कर दिया गया है।

श्वेता वर्मा, एआरटीओ, मेरठ