इनमें से एक झावेरी बाज़ार तो इससे पहले भी चरमपंथी हमलों का निशाना बन चुका है।

झावेरी बाज़ार

मुम्बई में 13 जुलाई को हुए तीन धमाकों में सबसे पहला धमाका झावेरी बाज़ार में हुआ। मुम्बई पुलिस के अनुसार उस वक्त भारत में घड़ियाँ शाम के 6.54 मिनट बजा रही थीं। बताया जा रहा है कि विस्फोटक बाज़ार के खाऊ गली में रखा हुआ था।

झावेरी बाज़ार गहनों या आभूषणों और उसे बनाने वालों के लिए प्रसिद्ध है। ये एक ऐसा बाज़ार है जहां लोग सही मायनों में गहनों और ख़ासकर सोने के आभूषणों की भाषा समझते हैं।

दक्षिण मुम्बई के भुलेश्वर इलाक़े का ये बेहद व्यस्त बाज़ार संकरी गलियों और सैकड़ों गहनों की दुकान से पटा पड़ा है। इन दुकानों में क़ीमती हीरे जवाहरात बेचे जाते हैं।

गहनों से चमचमाते इस बाज़ार में देश के सबसे बड़े गहनों के व्यापारियों का मुख्यालय है जिसमें त्रिभुवनदास भीमजी झावेरी प्रमुख हैं। ये जगह वर्ष 2003 के धमाकों की भी शिकार हुआ थीं जिसमें पचास से अधिक लोग मारे गए थे।

ओपेरा हाउस

दूसरा धमाका दक्षिण मुंबई के चरनी रोड के पास स्थित एक और व्यस्त इलाक़े ओपेरा हाउस में हुआ। उस वक्त समय हो रहा था 6.55 मिनट। यानी झावेरी बाज़ार के धमाके से ठीक एक मिनट बाद।

चरनी रोड मुम्बई लोकल रेल नेटवर्क का एक स्टेशन है। ओपेरा हाउस मुंबई की सबसे पुराने जगहों में से एक है। इस इलाक़े में भी काफ़ी व्यवसायिक गतिविधियां होती हैं। ये जगह व्यापारियों की भीड़ और बाज़ार की चमक दमक से रोशन रहती है।

कहा जा रहा है यहां बम धमाका पंचवटी डायमंड चौक इलाक़े में स्थित जेके बिल्डिंग के सामने हुआ। ये इलाक़ा झावेरी बाज़ार के पश्चिम में है।

दादर कबूतरखाना

तीसरा बम धमाका सेंट्रल मुम्बई के बेहद चर्चित दादर इलाक़े के कबूतरखाना बस स्टाप के पास हुआ। उस वक्त शाम के 7.05 मिनट बज रहे थे। पुलिस के अनुसार यहां धमाका झावेरी बाज़ार में हुए धमाके जितना बड़ा नहीं था। दादर मुंबई के सबसे पुराने इलाक़ों में से एक है। बिल्कुल शहर के बीचों-बीच बसा है।

यहां भी धमाका एक बेहद व्यस्त भीड़ भरे इलाक़े में हुआ जहां काफ़ी दुकाने हैं साथ ही रिहायशी इमारतें भी। दादर का कबूतरखाना बस स्टाप का इलाक़ा हमेशा ही कबूतरों और सड़क पर ठेले लगाकर सामान बेचते दुकानदारों से भरा रहता है।

धमाके वाली जगह से थोड़ी ही दूर पर स्थित है सेंट्रल मुम्बई का जाना माना प्लाज़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स। कबूतरखाना बस स्टाप के ठीक पीछे एक स्कूल है लेकिन शाम का वक़्त होने की वजह से धमाके के समय वहां कोई छात्र मौजूद नहीं था।

बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद धमाके के बाद जब दादर पहुंचे तो सबसे अचंभित करने वाली बात ये दिखी कि बहुत सी दुकानें घटना के बाद भी खुली हुई थीं। कुछ दुकानदारों ने ज़रुर घर जाना उचित समझा लेकिन कई ने अपना कामकाज जारी रखा और लोग धमाके के बाद भी साग-सब्जी ख़रीद रहे थे।

ज़ुबैर अहमद के अनुसार दादर में धमाके के बाद वैसी अफ़रातफ़री नहीं दिखी जो आम तौर पर ऐसी घटनाओं के बाद दिखती है।


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