RANCHI उनका चेहरा उनके संघर्ष का आइना है। जीवन के 38 वर्षो का उतार-चढ़ाव देख चुके इस चेहरे में कहीं बांस की बनी हॉकी से खेलने का दौर दिखता है तो कभी 2002 के कॉमनवेल्थ गेम में स्वर्ण पदक जीतने की खुशी। अथक संघर्ष के बूते हॉकी की सुपरस्टार प्लेयर बननेवाली सुमराय टेटे के संघर्ष की कहानी उन्हीं की तरह दिलचस्प है। ध्यानचंद अवार्ढ के लिए नॉमिनेट हुईं सुमराय हटिया डीआरएम ऑफिस के अपने चैंबर में उसी तरह कूल नजर आ रही हैं, जिस तरह कभी हॉकी के मैदान स्टिक की जादूगरी दिखाती थीं। सिमडेगा के कसीरा मेरोंगटोली गांव में एक किसान परिवार में जन्मी सुमराय के पिता बरनाबास टेटे और चाचा सिमोन टेटे भी हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे। मां संतोषी टेटे हाउसवाइफ थीं। उन्हें हॉकी खेलते देख बचपन में ही हॉकी के प्रति उनका प्रेम जाग गया। कभी बांस की तो कभी लकड़ी की स्टिक और लेदर बॉल से हॉकी खेलना शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिता और स्कूल के कोच थियोडोर खेस और जगेश्वर मांझी ने सुमराय की हॉकी प्रतिभा परख ली थी।

बरियातू हॉकी सेंटर में दाखिला

सिमडेगा के अपने गांव में हॉकी में जलवा बिखेर रही सुमराय के उत्कृष्ट खेल ने उन्हें वर्ष 1990 में बरियातू के ग‌र्ल्स हॉकी सेंटर में उन्हें जगह दिला दी। बरियातू हॉकी सेंटर के कोच नरेंद्र सिंह सैनी उन्हें चयनित कर बरियातू ग‌र्ल्स हॉकी सेंटर ले आये। सेंटर में उनके प्रशिक्षण के दौरान उनके माता-पिता उन्हें हर महीने 500 रुपये भेज देते। हालांकि इस रकम का जुगाड़ करना भी उनके लिए भारी पड़ता। इसी सेंटर में 90 से 96 तक उन्होंने प्रशिक्षण हासिल किया। वर्ष 1997 में उन्हें रेलवे की नौकरी मिल गयी तो वित्तीय संघर्ष थोड़ा कम हुआ।

आसान नहीं था सफर

सुमराय को पहली बड़ी सफलता वर्ष 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्णपदक जीतने के दौरान मिली। पर यहां तक का सफर आसान नहीं था। इस दौरान कभी जूते तो कभी ड्रेस की समस्या झेलनी पड़ी। भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ा। गांव के स्कूल शमशेरा में भी हॉकी के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था। इसलिए हॉकी की ओर रुझान बढ़ा। पर जब हॉकी में अपनी प्रतिभा के बूते चमकी तो फिर चमकती चली गयीं। खेल जीवन में उन्हें खेल एसोसिएशन ने तो सपोर्ट किया ही रेलवे ने भी बहुत सहयोग किया।

नहीं भूल सकती वे लम्हें

सुमराय ने बताया कि कॉमनवेल्थ में जब गोल्ड मेडल जीता तो उस समय बहुत खुशी हुई। वह खुशी मैं कभी भूल नहीं सकती। जब अपना राष्ट्रध्वज उपर चढ़ रहा था और राष्ट्रगान हो रहा था तो शरीर खुशी से रोमांचित हो उठा था। उस पल को आज पंद्रह साल बाद भी याद कर वैसा ही रोमांच महसूस होता है। उस समय हमारी कप्तान सूरज लता देवी थीं।

नॉमिनेट होनी की थी पूरी उम्मीद

उन्होंने बताया कि मुझे पूरी उम्मीद थी कि ध्यानचंद अवार्ड के लिए मेरा नॉमिनेशन होगा क्योंकि इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की थी। इस अवार्ड से मेरा बहुप्रतीक्षित सपना पूरा होगा। मैंने हॉकी को हमेशा अपना बेस्ट देने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि लड़की होने के कारण उन्हें हॉकी में कोई परेशानी नहीं हुई। सबने मुझे सहयोग दिया। गांव में हॉकी का क्रेज था और इसलिए इस खेल की ओर रुझान होना स्वभाविक था।

नए खिलाडि़यों के लिए संदेश

सुमराय ने बताया कि नये खिलाडि़यों से मेरा यही कहना होगा कि वे कड़ी से कड़ी मेहनत करें। जिंदगी में कोई चीज आसानी से नहीं मिलती और हॉकी खिलाड़ी को तो अपनी मेहनत पर फोकस करना चाहिए। प्लेयर जब ग्राउंड में आता है तो उसे कोच के बताये अनुसार सीखना चाहिए। किसी भी खेल में एक्सेल करने के लिए मेहनत की जरुरत होती है। सफलता की राह में बहुत सी बाधाएं आती हैं पर यदि आप नहीं डिगे तो मेहनत एक न एक दिन जरुर रंग लाती है। एक लक्ष्य निर्धारित कर उसके लिए मेहनत करें और उसे हासिल करने के लिए दृढ संकल्पित रहें। संघर्ष का रास्ता ही सफलता का रास्ता है।

सुमराय : प्रोफाइल व उपलब्धियां

जन्म : 15 नवंबर 1979

जन्म स्थान- सिमडेगा के कसीरा मेरोंगटोली गांव

पिता-बरनाबास टेटे

मां- संतोषी टेटे

जॉब- हटिया रेलवे स्टेशन में ऑफिस सुपरिंटेंडेंट

क्वालिफिकेशन

मैट्रिक-बरियातू ग‌र्ल्स हाई स्कूल रांची

इंटरमीडिएट- बरियातू ग‌र्ल्स हाई स्कूल रांची

ग्रेजुएशन- गोस्सनर कॉलेज रांची

खेल करियर

1995-2006 : भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व

2011-2014 : भारतीय हॉकी टीम (महिला) की सहायक कोच

2017- ध्यानचंद लाइफटाइम अवार्ड के लिए नॉमिनेट

अचीवमेंट्स

2006 : मेलबोर्न कॉमनवेल्थ गेम में रजत पदक

2004 :नई दिल्ली एशिया कप में स्वर्ण

2003 : बुसान एशियान गेम्स में मेडल

2003 : हैदराबाद में एफ्रो एशियाई खेल में स्वर्ण

2002 : मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण

2002 : जोहांसबर्ग चैंपियंस ट्रॉफी में कांस्य

2006 में लगी चोट, करियर पर ग्रहण

2006 के अभ्यास शिविर में प्रैक्टिस के दौरान घुटने में लगी चोट ने सुमराय टेटे के इंटरनेशनल करियर का अंत कर दिया। फरवरी 2011 में जब राष्ट्रीय खेलों का आयोजन रांची में हुआ तो सुमराय के खेलने का सपना टूट चुका था। अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुमराई झारखंड की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्हें राष्ट्रीय टीम के नेतृत्व की कमान सौंपी गयी। वर्ष 2013-14 में सुमराय ने भारतीय हॉकी टीम में सहायक प्रशिक्षक की भी भूमिका निभाई