- कोचिंग सेंटर्स पर तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स में मा‌र्क्स को लेकर समस्या

- अंग्रेजी के कारण हो जाते हैं बाहर, एग्जाम में बाट रही है दोनों भाषा

- एक नंबर भी हजारों को कर देता है आगे, लाइन से हो जाते हैं बाहर

Meerut: सीसैट को लेकर देशभर में विरोध हो रहा है। जहां हिंदी भाषी क्षेत्र हैं इसका सबसे अधिक विरोध है। मानों हिंदी और इंग्लिश सब्जेक्ट देश को बांटने पर लगे हैं। मेरठ में भी सीसैट को लेकर विरोध मुखर हो रहा है। आइएएस की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स सीसैट का विरोध कर रहे हैं। साथ ही इसमें से इंग्लिश का पार्ट अलग करने की मांग कर रहे हैं। जो इंग्लिश के कारण पीछे रह जाते हैं।

यह चाहते हैं

अगले महीने ख्ब् अगस्त को यूपीएससी प्रिलिम एंट्रेंस एग्जाम है। यूपीएससी पिछले काफी समय से सीसैट (सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट) करा रही है। जहां हिंदी भाषी क्षेत्र के कैंडीडेट्स तैयारी करने के बाद भी इंग्लिश के कारण मात खा जाते हैं। जिसमें करीब पच्चीस नंबर के इंग्लिश के क्वेश्चन आते है। जहां एक नंबर भी कम होते ही हजारों स्टूडेंट्स ऊपर नीचे हो जाते हैं। सीबीएससी या फिर प्रोफेशनल कोर्स करके निकलने वाले स्टूडेंट्स सीसैट में सफल हो जाते हैं।

इंग्लिश आसान नहीं

हिंदी भाषा में स्टडी करने वाले स्टूडेंट्स का मानना है कि इंजीनियरिंग और सीबीएससी से पास आउट इंग्लिश के क्वेश्चन आसानी से कर लेते हैं। हिंदी भाषा वाले स्टूडेंट्स इसमें दस से ऊपर नंबर ही नहीं गेन कर पाते। जिससे इनको बाहर होना पड़ता है। इसके बाद पूरे साल की मेहनत बेकार चली जाती है। और मौके भी कम मिलते हैं। इसके चलते कई हिंदी भाषी प्रदेशों में सीसैट से इंग्लिश की बाध्यता खत्म करने और जनरल स्टडी मेरिट पर सलेक्शन की मांग कर रहे हैं।

अब ये है मांगे

स्टूडेंट्स की मांगों में सीसैट से अंग्रेजी भाषा का हिस्सा हटाने, केवल सामान्य अध्ययन के एक पेपर पर मेरिट बनाने और फिलहाल एग्जाम की कोई दूसरी डेट तय करना शामिल हैं। इनके अनुसार करीब पच्चीस नंबर की इंग्लिश आती है, जिसको पार करना हिंदी मीडियम वाले के लिए पहाड़ जैसा है। स्टूडेंट्स मानना है कि वे दस नंबर भी लाने में सक्षम नहीं होते। इससे उनका भारी नुकसान हो रहा है। वे परेशान हैं और इंग्लिश को हटाने की मांग कर रहे हैं।

कुछ का ये भी मानना है

कुछ स्टूडेंट्स का यह भी मानना है कि सिविल सर्विस में सलेक्शन के बाद पूरे देश में कहीं भी तैनाती मिल सकती है। इसके लिए सिविल सर्विस की तैयारी करने वालों को अंग्रेजी तो आनी ही चाहिए। ताकि उन्हें समस्या का सामाना ना करना पड़े। इससे भले ही अभी परेशानी हो रही हो, लेकिन यह आगे के लिए काफी फायदेमंद है। जिससे हर क्षेत्र में उसको आगे बढ़ने के लिए सहायक होगी। कई प्रदेशों में हिंदी होने के बाद भी स्टूडेंट्स इंग्लिश में हाई-फाई होते हैं। इसलिए उन प्रदेशों में इसका विरोध नहीं है।

इनका कहना है

कोचिंग सेंटर के हेड राजेश भारती का कहना है कि मेरठ हिंदी भाषी क्षेत्र है। यहां हिंदी के स्टूडेंट्स अधिक हैं। यहां आर्ट्स मेजोरटी वाले चाहते हैं कि सीसैट ना रहे। इसमें इंजीनियरिंग करने वाले और सीबीएसई से पास-आउट स्टूडेंट्स अधिक नंबर ले आते हैं। मान लो ख्00 अंक में से ख्भ् मा‌र्क्स इंग्लिश के आ रहे हैं। इंग्लिश बैक ग्राउंड वाले इसमें ख्0 प्लस तक नंबर ले आते हैं। जबकि हिंदी वाले क्0 प्लस लाने में भी सक्षम नहीं रहते। जहां करीब टेन मा‌र्क्स का गेप रहता है। और यहां एक नंबर के अंतर पर हजारों बच्चे आगे पीछे हो जाते हैं। दूसरे प्रदेशों में हिंदी होने के बावजूद उनकी इंग्लिश अच्छी है। इसलिए दूसरे कई राज्यों से ऐसी मांग नही उठ रही है। यूपी, हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड में हिंदी वाले अधिक हैं, इसलिए यहां इसकी मांग की जा रही है। इन प्रदेशों में अधिकतर गांवों के स्टूडेंट्स हैं, जहां हिंदी का जोर है। इसलिए भाषा कहीं भी बाधक नहीं बननी चाहिए। अगर भाषा माध्यम निर्णायक भूमिका निभाने लगे तो समस्या होने लगती है। इस कारण हजारों स्टूडेंट्स पीछे छूट जाते हैं।

इनका कहना है

सीसैट खत्म होना चाहिए। जिससे हजारों स्टूडेंट्स को परेशानी होती है। हिंदी और इंग्लिश लोगों को बांट रही है। जिसका पूरे देश में विरोध हो रहा है। हिंदी भाषा वाले स्टूडेंट्स इंग्लिश के कारण काफी पीछे रह जाते हैं। जो कुछ ही नंबर से मात खाते हैं। इसलिए भाषा की बाध्यता खत्म होनी चाहिए। सबको मौका मिलना चाहिए।

- अनुभा त्यागी

हिंदी वाले भी इंग्लिश अच्छे ढंग से जानते हैं। लेकिन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए बहुत लंबा समय चाहिए होता है। जहां जनरल स्टडी के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इसके साथ ही अगर इंग्लिश भी होगी तो समस्या होनी तय है। इससे दिक्कतें होती है। इसलिए सीसैट को खत्म कर देना चाहिए। ताकि सबको आगे आने का अवसर मिले।

- अभिषेक माहीवाल