स्टूडेंट्स के लिए न रहने को अच्छा कमरा, न खाने-पीने का उचित इंतजाम

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- राजधानी में कोचिंग से लॉज तक है करोड़ों का कारोबार

- बावजूद इसके सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं स्टूडेंट्स

PATNA: पटना स्टूडेंट्स का हब है। राजधानी के बहुत बड़े रेवेन्यू मॉडल को भी आप इससे जोड़ कर देख सकते हैं। बिहार के देहाती इलाकों से लेकर इसके छोटे-बड़े शहरों में शायद ही कोई शहर है, जहां से स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन की तैयारी के लिए पटना नहीं आते हों। स्टूडेंट्स के रुपए से पटना का बड़ा कारोबार चलता है और बदले में उनको सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिलता है।

क्0 करोड़ का कारोबार

ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि पटना में कोचिंग इंस्टीच्यूट का कारोबार कितने का है, पर माना जाता है कि ये कारोबार मंथली क्0 करोड़ से कम का नहीं है। कलक्टर से क्लर्क और एसपी से सिपाही बनने तक की लालसा लिए स्टूडेंट्स पटना पहुंचते हैं और इनमें से कई सफल भी होते हैं। इस लिहाज से पटना सपने को पूरा करने के लिए पंख लगाता है।

छोटे कमरे और बड़ी कमाई

पटना का पूर्वी हिस्सा विभिन्न कांपटीशन एग्जाम की तैयारी करने वालों का है। इस एरिया में ज्यादातर घरों में आप लॉज पाएंगे। कुछ लोगों ने अपने घरों में कमरे बना रखे हैं उसमें चौकी पंखे लगा दिए हैं और इसको स्टूडटें्स को भाड़े पर लगा रखा है। लाखों की कमाई हो रही है। कुछ ऐसे हैं, जिन्होंने पूरे घर को ही लॉज में तब्दील कर दिया है और खुद किराए पर रह रहे हैं।

बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स

महेन्द्रू से लेकर मुसल्लहपुर, मछुआ टोली, नया टोला, खजांची रोड, रमणा रोड, बीएमदास रोड, गोविंद मित्रा रोड आदि पूरे बड़े इलाके में स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में रहते हैं। महेन्द्रू से आगे सुल्तानगंज, आलमगंज, गायघाट, भद्रघाट, पश्चिम दरवाजा जैसे एरिया तक स्टूडेंट्स भरे पड़े हैं। बाजार समिति, भिखना पहाड़ी जैसे एरिया में भी बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स हैं। समझिए लाखों की संख्या में जहां स्टूडटें्स रहते हैं उस एरिया में सरकार अलग से ध्यान क्यों नहीं देती। ये स्टूडेंट्स भी तो बिहार के ही हैं।

पढ़ने वालों का बाजार

राजधानी के महेन्द्रू एरिया में जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर पहुंचा, तो उसने पाया कि पोस्ट ऑफिस चौक पर दो साइकिलों पर सभी अखबार टंगे हैं बिक्री के लिए। मैगजीन भी साइकिल पर। इसके अलावे किताबों की दुकानों में कांपटीशन के खूब सारे मैगजीन। कॉपियों की कई दुकानें भी है। किलो के भाव से बिकने वाली सस्ती कॉपियों से लेकर पीस के हिसाब से बिकनी वाली कॉपियों तक। यानी आप चौक पर पहुंचते ही इस एहसास से भर उठेंगे कि स्टूडेंट्स एरिया में आ गए। हालांकि ये अहसास तो अशोक राजपथ से ही होने लगता है।

अंधेरे लॉज में उजाले के सपने

महेन्द्रू के आस-पास के एरिया में जितने भी लॉज हैं सब में बिजली कटने के बाद अंधेरा छा जाता है। पोस्ट ऑफिस के सामने कई लॉज छोटी-छोटी गलियों में हैं। छोटा कमरा, सिंगल रुम और रेंट क्भ्00 रुपए। रूम में ही खाना बना रहे हैं स्टूडेंट्स। चौक से पूरब की तरफ आगे बढ़ने पर कश्यप भवन में कई कमरे हैं। ऊपर छत पर जो कमरे हैं उनमें तो रोशनी है पर नीचे के कई कमरे में बिजली कटी होने से अंधेरा छाया था। स्टूडेंट्स ने बताया कि बिजली आएगी तो उजाला आएगा। इसमें तीन हजार रुपए प्रति बेड चार्ज। छह हजार रुपए शुरू में जमा करना होगा। खाना बनाने की छूट है रूम में। लेकिन सभी स्टूडेंटस के लिए बाथरूम एक फ्लोर पर एक ही। आस पास की कई गलियों में बहुत सारे लॉज हैं।

बड़ी मुश्किल से मिलता है रूम

कई काफी कंजस्टेड। हवादार नहीं। बिजली कटने पर अंधेरा। ऐसे लॉज में रहने की क्या मजबूरी है? जवाब मिला क्या करें बहुत मुश्किल से रूम मिलता है। पढ़ना है तो क्या करें। महेन्द्रू चौक से मुसल्लहपुर की तरफ कुछ कदम बढ़ने पर एक पुराना लॉज है। पूछा तो बताया यहां कभी खाली ही नहीं होता। क्यों ऐसी क्या बात है? जो स्टूडेंट खाली करता है अपने रिलेटिव को रखवा देता है। इतना खुला-खुला लॉज आपको इधर नहीं मिलेगा। हां पुराना है लेकिन सस्ता भी तो है। स्पेसियस भी है थोड़ा ज्यादा। आंगन कहां होता है यहां देखिए आंगन है, एक स्टूडेंट्स ये सब बोलता रहा, लेकिन चापाकाल और टॉयलेट के पास ऐसी कजली और पानी कि कोई फिसले तो हडिड्यां जरूर टूट जाए।

छोटे सिलेंडर की मजबूरी

जो स्टूडेंट्स अपने कमरे में ही खाना बनाते हैं उनके पास छोटा गैस सिलेंडर है। ये खतरनाक तो है ही, कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। हां आसानी से भरा जाता है गैस। एक स्टूडेंट मनोज ने बताया। उसने बताया कि हर दिन शाम में सब्जी ले आते हैं हरी-हरी और किचन का बाकी सामान सप्ताह में एक बार। फिर चल जाता है काम। प्रेसर कूकर सब के पास है क्योंकि जल्दी खाना बनाना है। कूकर की सीटी भी बज रही है और पढ़ाई भी हो रही है। सब के कोचिंग आस पास हैं। अशोक राजपथ से महेन्द्रू तक के एरिया में।

अच्छा खाना-पानी नसीब से

कुछ स्टूडेंटस खाना नहीं बनाते। आता नहीं बनाना या एग्जाम के प्रेसर में होटल में खा रहे हैं। रचना होटल ने बताया कि हम टिफिन नहीं पहुंचाते। होटल में ही आकर स्टूडेंट्स खाते हैं। एडवांस लेते हैं हम। सुबह शाम वेज खाने का चार्ज क्,700 रुपए और ननवेज का ख्,000 रुपए। बुधवार को मछली, शुक्र को अंडा, रविवार को चिकेन मिलता है। मंगलवार को खीर और शनिवार को सेवई वेज-ननवेज दोनों मिलता है। गुरुवार की रात पनीर पराठा।

जूस पीकर जान बचा रहे

जूस की खपत खूब है। महेन्द्रू मोड़ पर जूसवाले ने बताया कि हमारा पूरा कारोबार स्टूडेंट्स पर ही डिपेंड है। मोसम्बी या संतरा के जूस की सबसे ज्यादा डिमांड है। बेल का शरबत भी खूब बिक रहा इन दिनों। स्टूडेंट्स हेल्दी रहने के लिए जूस पीते हैं।

नींबू चाय, गुटखे व ब्रेड पकौड़े

नींबू चाय दुकान में चाय की खूब खपत है। ये बताते हैं कि स्टूडेंटस खूब आते हैं नींबू चाय पीने। चाय दुकान में गुटखे और सिगरेट की भी काफी खपत है। बगल में है ब्रेड पकौड़े, कचौड़ी और प्याजू की दुकान। सुबह में यहां कचौड़ी जलेबी मिलती है.स्टूडटें्स कचौड़ी जलेबी का नाश्ता खूब करते हैं। नशा करने वाले स्टूडेंट्स की कमी किसी एरिया में नहीं है। चाउमिन की बिक्री शाम में सबसे ज्यादा स्टू़डेंट्स के बीच।

हो रही हैं बीमरियां

लॉज में रहने वाले ज्यादातर लड़कों में जांडिस की बीमारी आम है। तैयारी के क्रम में एक बार तो जरूर ये बीमारी घेर रही है पटना में स्टूडेंट को। स्टूडेंट्स में टीबी की बीमारी भी देखी जा रही है। कंजस्टेड रूम में रहते हुए, घंटों कमरा बंद कर पढ़ते हुए उन्हें ये बीमारी हो रही है।

लाख टके का सवाल

- ढंग का कमरा नहीं है।

- आधे लॉज में बोरिंग तो आधे में सप्लाई वाटर पीने के लिए।

- बिजली कटते ही अंधेरा कमरे में।

- कमरे में खिड़की कम जिससे सफोकेशन

- मकान मालिक मनमाने तरीके से रेंट बढ़ा देते हैं।

- सरकार का कोई अंकुश क्यों नहीं लॉज मालिकों पर।

- पीने के पानी की अच्छी व्यवस्था सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं सरकार की ओर से स्टूडेंट्स के लिए।

- कोचिंग संस्थान सरकार को बड़ी रकम देते हैं इसका क्या यूज करती है स्टूडेंट के लिए सरकार?

पटना के लॉज से ज्यादातर पेशेंट डायरिया, डिसेंट्री, जांडिस, टायफाइड और मलेरिया के आते हैं। खाने और पानी की गड़बडि़यों की वजह से पेट की बीमारी हो रही है। टीबी के पेशेंट्स भी आ रहे हैं।

-डॉ दिवाकर तेजस्वी, फिजिशियन

पटना में स्टूडेंट्स मुर्गे-मुर्गी की तरह रहते हैं। जहां रह नहीं सकता इंसान वैसी जगहों पर भी रह रहे हैं स्टूडेंट्स। कुकुरमुत्ते की तरह खुले हैं कोचिंग संस्थान। कई स्टूडेंट्स की जिंदगी बर्बाद हो जाती है इस भीड़ में। सरकार को स्टूडेंट्स के रहने के लिए जगह डेवलप करनी चाहिए। कोटा में कोचिंग के लिए अलग जगह है।

-डॉ एम रहमान, शिक्षाविद्