गन्ने के जूस से बनता है एथेनॉल

गन्ने के रस से बनने वाला एथेनॉल ईंधन का काम करता है. इस फ्यूल से वेहिकल्स चालाए जा सकते हैं. एथेनॉल का अगर अच्छी तरह प्रोडक्शन और यूज शुरू हो जाए, तो यह देश के लिए संजीवनी साबित होगा. यह कहना है सीनियर शुगर टेकनीक स्पेशलिस्ट एन.के. शुक्ला का.

एटॉमिक एनर्जी के खतरों से भी निजात

एन.के. शुक्ला की मानें तो एथेनॉल के उतपादन से देश न सिर्फ ईंधन के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि परमाणु ऊर्जा से होने वाले खतरों की आशंका भी नहीं रहेगी. गन्ने से मिलने वाला एथेनॉल का प्रोडक्शन न सिर्फ एनर्जी के दूसरे साधनों से सस्ता है, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित है. नागपुर में एक व मुंबई में दो बसें आ चुकी हैं, जो एथेनॉल से चलेंगी.

विदेशी कर्ज से मिलेगा छुटकारा

शुक्ला ने कहा कि अभी फ्यूल के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर है. ऐसे में क्रूड ऑयल के इंपोर्ट और डीजल पर सब्सिडी देने में सरकार का काफी पैसा खर्च हो रहा है. पिछले साल सरकार ने आयात पर 75 हजार करोड़ रुपये और डीजल सब्सिडी पर 112 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च की थी. यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है. फ्यूचर में यह प्ॉबल्म और बढ़ेगी. इसके साथ ही देश पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि एक मिट्रिक टन गन्ने से 75 लीटर एथनॉल का प्रोडक्शन हो सकता है. इससे गन्ने की यूसेज बढ़ेगा और इनकम का सोर्स भी. तब गन्ना किसानों को वाजिब कीमत देने में दिक्कत नहीं आएगी. देश ईंधन के मामले में आत्मनिर्भर होगा और आने वाले दिनों में देश को विदेशी कर्ज के बोझ से भी छुटकारा मिलेगा.

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