- नशे की दवाओं पर बैन होना सुल्फे के यूज का बन रहा कारण

- स्ट्रेस और टेंशन दूर करने के लिए यूथ कर रहे इसका यूज

- खुलेआम होता है नशे का यह कारोबार

BAREILLY: सिटी के यंगस्टर्स की रगों में अब 'सुल्फा' नाम का नशा धीरे-धीरे घुलता जा रहा है। पहले मेडिसिंस से अपने नशे की लत को पूरा करने वाले यूथ इन पर बैन लगने के बाद देसी नशे को यूज करने लगे हैं। इसी में से एक है सुल्फाये छोटा सा पौधा इसका यूज करने वाले को बड़ी बीमारियां दे सकता है। महज पल भर के मजे की चाहत में इस 'ब्लैक ड्रग' लत का शिकार हो रहे कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स को अंदाजा भी नहीं है कि ये उनके फ्यूचर को भी 'ब्लैक' कर देगा। वहीं स्टूडेंट्स को आसानी से मिलते इस नशे के पौधे की पहुंच से प्रशासन अब तक बहुत दूर है।

सुल्फा यानि देसी चरस

पैपेवैटीन नामक प्लांट ग्रुप का सुल्फे का पौधा नमी वाली जगह पर अपने आप उग जाता है। इसका पौधा और पत्तियां काफी छोटी होती हैं, जिसमें गुच्छे में बीज लगे होते हैं। इसकी पहचान इसकी भीनी महक से होती है। इसमें कई सारे रोग दूर करने की क्षमता होती है। वहीं यह काफी जहरीला भी होता है। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो सुल्फा में एल्कलॉयड केमिकल ग्रुप के सब्सटेंसेज पाए जाते हैं, जो बॉडी के लिए काफी हार्मफुल होते हैं। सोर्सेज के अनुसार इसे निकालने के लिए हथेलियों में तेल लगाकर प्लांट को काफी देर तक मसला जाता है, ताकि इसका रस पूरी तरह से हाथों में चिपक जाए। इसके बाद चिपके हुए रस को हथेली को मसलकर निकाला जाता है। इससे काले रंग का एक पदार्थ निकलता है, जिसे कहते हैं, सुल्फा यानि देसी चरस। फिर सुल्फे को सिगरेट की तम्बाकू में मिला देते हैं। डॉक्टर्स की मानें तो सिगरेट के साथ मिलकर इसका इफेक्ट दोगुना हो जाता है, इसलिए इसे सिगरेट में भरकर ही इसका कश लगाया जाता है।

नर्वस सिस्टम पर असर

फिजीशियन के अनुसार सुल्फे की डोज नर्वस सिस्टम को बुरी तरह प्रभावित करती है। जैसे ही इसका सेवन किया जाता है, यह नसों में घुलने लगता है। इससे नर्वस सिस्टम में शिथिलता आने लगती है। इसको यूज करने वाला पर्सन सब कुछ भूल कर एक अलग दुनिया में खो जाता है। लेकिन जैसे ही इसका इफेक्ट खत्म होता है, इसकी फिर से तलब होने लगती है। डॉक्टर्स इस स्टेज को 'यूफोरिया' कहते हैं।

पहली बार में दे सकता है 'मौत'

डॉक्टर्स के अनुसार 'सुल्फे' का सेवन स्लो पॉयजन की तरह काम करता है। इसका सेवन करने से ब्लडपे्रशर, हार्ट अटैक, किडनी फेल, लिवर फेल, डायबिटीज, रेस्पिरेटरी सिस्टम रिलेटेड डिजीज, स्किन डिजीजेज के साथ ही पेट संबंधित बीमारियां होने के चांसेज 70 परसेंट बढ़ जाते हैं। वहीं अगर पहली बार में इसकी ओवरडोज ले ली जाए तो किडनी और लिवर फेल होने की संभावना 90 परसेंट तक होती है।

'गुरु' कर रहे चेले को ट्रेन

ईजिली अवेलेबल 'सुल्फा' अब बिजनेस बनता जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुल्फे को अच्छी कीमतों में सेल किया जा रहा है। जो युवा इस लत के शिकार हो चुके हैं, वह इसके लिए ऊंची कीमत देने को तैयार रहते हैं। सिटी के शहामतगंज, गंगापुर, डेलापीर, बदायूं रोड, किला छावनी के अलावा आउटर एरिया में भी इसका खुलेआम सौदा होता है। दस ग्राम सुल्फे के लिए यंगस्टर्स से चार सौ से पांच सौ रुपए वसूले जाते हैं। इसे सेल करने वालों को 'गुरु' नाम से पुकारा जाता है। ये गुरु अपने चेलों को पौधों से चोरी-छिपे सुल्फा निकालने के लिए भेजते हैं। फिर सुल्फा को पुडि़या में लपेटकर खुलेआम बेचा जाता है।

रिस्ट्रिक्टेड मेडिसिंस का सब्सिटीट्यूड

गवर्नमेंट ने कई नशे के तौर पर यूज होने वाली मेडिसिंस को रिस्ट्रिक्ट कर दिया है। ऐसे में यंगस्टर्स अपनी लत को पूरा करने के लिए देसी नशे का सहारा लेने लगे हैं। सुल्फा भी इसमें से एक है। डॉक्टर्स ने भी बताया 'सुल्फा' मेडिसिंस के हाई डोज का सब्सिटीट्यूट होता है। ये मेडिसिंस की अपेक्षा बॉडी में कहीं तेजी से घुल जाता है इसलिए यह मेडिसिंस से ज्यादा घातक होता है। डॉक्टर्स के अनुसार इसके ज्यादा हार्मफुल होने के तीन मेन रीजंस हैं। पहला, इसमें मौजूद एल्कलॉयड की मात्रा का पता ना होना। दूसरा, नशे की परसेंटेज का पता ना होना। तीसरा, नशे के अलावा और इसमें कौन-कौन से हार्मफुल सब्सटेंसेज हैं, ये पता न होना। इसकी वजह से इसका सेवन करने वाले को पता नहीं होता कि इसकी कितनी डोज लेनी चाहिए, जिससे उनकी बॉडी को ज्यादा हार्म न हो।

स्टूडेंट्स के लिए ब्लैक इफेक्ट

डॉक्टर्स का मानना है कि कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स के लिए सुल्फे का यूज 'ब्लैक फ्यूचर' क्रिएट करने जैसा है। नर्वस सिस्टम पर इसका सबसे ज्यादा इफेक्ट होने से मेमोरी पॉवर वीक हो जाती है। स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई पर कंसेंट्रेट नहीं कर पाते हैं। आंखे भारी हो जाती हैं, जिससे सिर में दर्द होता है। हाथ-पैरों में झुनझुनाहट, मिजाज में चिड़चिड़ापन आने के साथ ही भूख लगना कम हो जाती है। इससे धीरे-धीरे डिप्रेशन के लक्षण उभरने लगते हैं। इन शुरुआती लक्षणों को इग्नोर कर स्टूडेंट्स अगर सुल्फे का सेवन जारी रखते हैं, तो इसके एडिक्ट होने के चांसेज सौ परसेंट तक बन जाते हैं।

डोडा और पोस्ता की तरह ही यह पौधा भी नशे के लिए यूज किया जाता है। इसमें मौजूद एल्कलॉयड्स केमिकल ग्रुप के सब्सटेंसेज बॉडी के लिए काफी घातक होते हैं। इससे घातक बीमारियों की होने की संभावना 70 परसेंट तक होती है। आसानी से मिलने की वजह से सुल्फा युवाओं के लिए नशे की मेडिसिन का सब्सिटीट्यूड बन जाता है।

- सुदीप सरन, फिजीशियन