'सुरुज' देव को अर्घ्य देने गंगा तट पर उमड़ा आस्थावानों का रेला
झूमते-गाते पहुंचे घाटों पर, प्रबल भाव से समर्पित की श्रद्धा
परंपरा के पोषक लोकगीतों ने रचा भक्ति का अलग संसार
VARANASI: एक तरफ परम पावनी गंगा और दूसरी तरफ घाटों पर उमड़ रहा आस्था और श्रद्धा का प्रबल संवेग। मां गंगा के शीतल जल को इसी संवेग का साथ मिला और वह और भी पवित्र होकर प्रवाहमान हो उठी। अवसर था सूर्योपासना के महापर्व डाला छठ पर अस्ताचलगामी 'सुरुज देव' को अर्घ्य देने का। बुधवार को अपने आराध्य के प्रति उमड़ रहे मन के अनंत भाव को परंपरा के गठरी में संजोये लोगों की अपार भीड़ गंगा तट पर उमड़ी। जहां भी नजर गयी लोग ही लोग दिखायी दिये।
भक्ति का दिखा अजब मायाजाल
न कहीं वेदों के कठिन मंत्रों औपचारिकता और न कहीं पूजन की वैदिक रीति लेकिन आराध्य के प्रति समर्पण अपने चरम पर। 'कहां बिलमली हे दीनानाथ अरघिया के बेर' जैसे लोकगीत और सुलग रहे सुगंधित धूपों की गमक ने माहौल को भक्ति के रंग में रंगा। जहां जो भी दिखा भक्ति के इसी रंग में रंगा दिखा। भक्तों ने अपनी अपनी भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ी तो भगवान भी कहां पीछे रहने वाले थे। सभी को मिला मनोकामना के पूर्ण होने का वरदान।
अस्ताचलगामी सुरुज देव को दिया अर्घ्य
भगवान दीनानाथ को अर्घ्य देने के लिए गंगा घाटों पर व्रतियों का रेला उमड़ा। अपने संकल्प पूर्ति के क्रम में महिलाओं ने पवित्र गंगा में डुबकी लगाई और गीले वस्त्रों में ही कमर भर जल में खड़े होकर भगवान भास्कर को अपनी श्रद्धा समर्पित की। घाट पर कहीं तिल रखने की जगह नहीं थी। सिर पर पूजन सामग्री से भरी दौरी लिये पुरुष और महिलाओं का घाट पर पहुंचने का क्रम जो शुरू हुआ तो सुरुज देव के अस्त होने तक चलता रहा। 'बंगही लचकत जाये' 'आजो भईया दौरी ले जईह, अरग दिहईह' जैसे परंपरा के पोषक भोजपुरी गीतों के बोल कानों में मिश्री घोल रहे थे। ढोल और नगाड़े के आनंद स्वरों पर झूमते नाचते परिवारों का रेला एक के बाद एक घाट पर पहुंचने लगा। चार बजते-बजते तक तकरीबन हर घाट पर लोगों से पट चुका था।
हर कुंड पर उमड़े लोग
गंगा तट के अलावा शहर के कुंड, जलाशयों पर भी आस्था का मेला लगा। वरुणा नदी पर भी डूबते सूरज को अर्घ्य देने वालों का खासा जमावड़ा हुआ। डीएलडब्ल्यू स्थित सूर्य सरोवर पर भी सूर्य को अर्घ्य देने वालों का हुजूम उमड़ा। डीएलडब्ल्यू एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों की सुरक्षा और सुविधा के लिए विशेष इंतजामात किये थे। बहुत सी महिलाओं ने घर में बनाये गये प्रतीक सरोवर में सूर्य को अर्घ्य दिया। पांच गन्ने से पूजा वेदियों को घेरा गया। दीप प्रज्जवलित हुए और फल-फूल, नैवेद्यों से कोसी भर कर पुत्र के दीर्घायु की कामना की गई। पूजा के बाद घर लौटते समय हर व्रती महिला के हाथ में दीया था। सूर्य नारायण को अर्घ्य देने के बाद श्रद्धालुओं ने उनकी आरती उतारी और उसे जलते हुए वापस घर को गई। दूसरे दिन महिलाएं इस दीपक को सुबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने के साथ लेकर आती हैं।
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लेट कर तय की घर से घाट तक की दूरी
कुछ व्रतियों ने घर से घाट तक की दूरी को लेट कर पूरा करने का संकल्प लिया था। संकल्प कठिन जरूर था लेकिन इच्छाशक्ति प्रबल थी। जिसके बल पर बहुत से लोगों ने अपने इस संकल्प को पूरा किया। इस कठिन व्रत का संकल्प लेने वालों का लोग पैर छूते चल रहे थे। हर कोई उनके लिए रास्ता खाली कर दे रहा था।
रात रुकेंगी घाट पर
बहुत सी व्रती महिलाओं ने छठ की रात घाट पर ही बिताने का संकल्प लिया था। इस लिए वे शाम को अर्घ्य देने के बाद घर नहीं गई। सप्तमी के दिन वे भोर में उगते सूरज को अर्घ्य देने के बाद ही घर कर लौटेंगी। ऐसे आस्थावानों से गंगा के घाट रात भर गुलजार रहे।
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लग गया जाम
अर्घ्य देने के बाद वापस लौटने की हुई भीड़ के चलते गोदौलिया इलाके में भारी जाम लग गया। हालांकि प्रशासन ने ट्रैफिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के व्यवस्था की थी लेकिन वह सब नाकाफी रहा। करीब दो घंटे तक गोदौलिया चौराहे पर जाम की स्थिति बनी रही।
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आज पूरा होगा महाव्रत
गुरुवार को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ ही सूर्य उपासना का यह महासंकल्प पूरा होगा। महिलाएं अपने नाक के कोर से मांग भरेंगी और पति की दीर्घायु की कामना के साथ निर्जला व्रत का पारण करेंगी।