फैसले पर सबकी नजरें
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में कहा था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के समक्ष ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने माना था कि वह सभी काजियों को अडवाइजरी जारी करेगा कि वे ट्रिपल तलाक पर न केवल महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें। अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं।

 

कोर्ट ने पूछे थे कई सवाल
इससे पहले 18 मई को सुनवाई के आखिरी दिन कोर्ट ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था कि क्या निकाह के समय निकाहनामा में महिला को तीन तलाक के लिए 'नÓ कहने का विकल्प दिया जा सकता है। खेहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने पूछा- क्या यह संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय यह अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी। कोर्ट ने पूछा कि क्या पर्सनल लॉ बोर्ड सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें।


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 क्या है मामला?

ø मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाकए हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी।

ø  बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है।

ø कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है।

ø वहीं, पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।


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National News inextlive from India News Desk

 

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