सूटेड-बूटेड टाई वालों के बीच चद्दर ओढ़े संन्यासी

अपनी विदेश यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद एक शाम शहर में घूमने निकले. वहां सब लोगों का पहनावा पश्चिमी था. भगवा लिबास और पगड़ी पहने स्वामी जी उनके लिए कौतूहल का विषय थे. सब उनकी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे उनके बीच दूसरे ग्रह से कोई प्राणी चला आया हो. स्वामी जी जहां से भी गुजरते लोग उन्हें अजीब सी दृष्टि से देखने लगते. कुछ लोग तो उनके पीछे-पीछे कमेंट करते हुए चलने लगे. थोड़ी ही देर में वहां स्वामी जी के आसपास मेला सा लग गया.

बदन पर सिर्फ एक चादर! ये कैसा कल्चर

कोट, पैंट, टाई और हैट लगाए कुछ भद्र पुरुषों से नहीं रहा गया तो उन्होंने स्वामी जी से उपहास भरे लहजे में पूछा, 'ये आपकी कैसी संस्कृति है! बदन पर सिर्फ एक चादर लपेटे हुए हैं. कोट-पैंट, टाई वगैरह कुछ नहीं! आपके और कपड़े कहां गए? आपको शहर में इस तरह से घूमना चाहिए?' यह सुनते ही बाकी लोग हंसने लगे. तभी एक दूसरे भद्र पुरुष ने अपने कोट के कॉलर को हाथ लगाते हुए कहा, 'ये देखिए हमारा कल्चर!' स्वामी जी ने शांत भाव से उनकी ओर देखा और मुस्कुराए.

लिबास नहीं चरित्र महत्वपूर्ण

स्वामी जी को मुस्कुराते देख सब चकित हो गए. सब उन्हें देखने लगे कि यह सब सुनने के बावजूद वे जरा भी विचलित नहीं हुए और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ झलक रहा था. उन्होंने सबकी ओर देखा और कहा, 'भाइयों और बहनों! आपके यहां संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं जबकि हमारे यहां की संस्कृति का निर्माण लोगों के चरित्र से होता है.' सभी लोग उन्हें आश्चर्य से देखने लगे. तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति सामने आए और सबसे उनका परिचय कराया. उनका परिचय जानने के बाद सबने उन्हें आदर सहित अभिवादन किया. स्वामी जी ने कहा, 'कोई भी संस्कृति कपड़ों में नहीं चरित्र के विकास में होती है.'