वो शांति और सुकून

‘साफ नीले आसमान के नीचे, खेतों में गेहूं की सुनहरी चमकती बालियांवो शांति और सुकूनलेकिन एक दिन अचानक सीरिया में ‘इकार्डा’ के इन फार्मों का अमन-चैन रॉकेटों, मोर्टारों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने छीन लिया। तब से लेकर आज तक गेहूं की वो बालियां खून से लाल हो रही हैं। हमारे सिर पर हर पल मौत का खतरा मंडराता था’ ये रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी बयान की है अमेरिकन वैज्ञानिक डॉ। माइकल बॉम ने। वो इकार्डा (इंटरनेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च इन दि ड्राई एरियाज) की टीम के हेड के रूप में सालों से सीरिया में अपना बेस बनाकर काम कर रहे थे। अचानक सीरियन सिविल वॉर शुरू होते ही वो और टीम के वैज्ञानिक कैसे वहां फंसे और कैसी मुश्किलों से गुजरे। ये सब उन्होंने आई नेक्स्ट के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में शेयर किया।

हमेशा रहता था डर

पहले सिविल वॉर और फिर हाल में ही    केमिकल बांबिंग की चपेट में आए वेस्टर्न एशियन कंट्री सीरिया में अनरेस्ट की वजह से वहां काफी कुछ बदल चुका है। कुछ दिनों पहले तक वहां कार्यरत रहे ‘इकार्डा’ के क्रॉप इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के डायरेक्टर माइकल बॉम ने बताया कि उनकी पूरी टीम हर पल भयाक्रांत रहने लगी थी, कि पता नहीं कब कोई मोर्टार या बम उन लोगों की जिंदगी खत्म कर दे। सीरिया में उस वक्त कोर टीम के 50 वैज्ञानिक और एक्सपर्ट्स को निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा थाये उन टॉप साइंटिस्ट्स और एक्सपर्ट्स की टीम थी, जो दुनिया के लिए सस्ते और बेहतर गुणवत्ता वाले गेहूं, जौ और दालों जैसे बेसिक अनाज देने की कोशिशों में लगी है।

प्रोजेक्ट पर नए सिरे से करोड़ों खर्च

डॉ। बॉम ने बताया कि अचानक ही गृह युद्ध भडक़ उठा। करोड़ों डॉलर इनवेस्टमेंट के बाद तैयार होने की कगार पर पड़ी फसल के पकने का इंतजार जरूरी था। उससे रिसर्च के नतीजे एकत्र करने थे। बहुत कुछ रिसर्च रिजल्ट्स पर डिपेंड करता था। और ये इंतजार लास्ट में प्रॉब्लमेटिक साबित हुआ। लेकिन करते भी क्याकिसी तरह कोर साइंटिस्ट्स को छोडक़र बाकी के लोगों और लैबोरेट्रीज की सुविधाओं को हम पिछले साल जून में ही मोरक्को और लेबनान में शिफ्ट करने लगे। लेकिन पुरानी बेस को छोडऩे, लेबोरेट्रीज को शिफ्ट करने, दूसरे देशों में नई रिसर्च फील्ड्स को ढूंढने में प्रोजेक्ट को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। अभी पूरा आकलन नहीं हो सका है लेकिन अनुमान के मुताबिक इस महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को सीरिया के वॉर ने 20 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा का नुकसान पहुंचाया।

रिसर्च के लिए लगाई जान दांव पर

फिर जब फसल पक गईं, तब लैब में किसी तरह रिसर्च पूरी करके, नतीजे लेकर बमुश्किल बमबारी और अराजक माहौल के बीच से वहां से अपने वैज्ञानिकों को निकाल कर पड़ोसी देशों, लेबनान, मोरक्को वगैरह देशों में पहुंचाया। कुल मिलाकर दुनिया के भले के लिए टीम ने जान दांव पर लगाई। ताकि लोगों को बेहतर अनाज मिल सके। लेकिन डॉ। बाम कहते हैं कि सीरिया में हो रही वॉर ने दुनिया भर में जरूरतमंदों के लिए खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रमों को झटका पहुंचाया है।

डॉ। वर्मा के साथ इंडिया में प्रोजेक्ट

डॉ। बॉम इस वक्त जॉर्डन की राजधानी अम्मान में रह रहे हैं। अब लेबनान, जॉर्डन और मोरक्को के साथ ही प्रोजेक्ट की टीमें इंडिया में दिल्ली सहित कई क्षेत्रों में काम कर रही हैं। इंडिया में मोरक्को से ही उनके साथ काम कर रहे इंडिया के कृषि वैज्ञानिक डॉ। आरपीएच वर्मा उनके साथ कार्यरत हैं। डॉ वर्मा ने बताया कि इंडिया में सदर्न लैटीट्यूड्स में ये प्रोजेक्ट ज्यादा बड़े पैमाने पर चलाया जाएगा।