ताशी और नुंगशी मलिक दुनिया की पहली जुड़वां बहने हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी  माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की. ये कारनामा उन्होंने 19 मई 2013 को किया था.

साल 2009 में स्कूली शिक्षा ख़त्म करने के बाद कुछ अलग और ‘एंडवेंचरस’ करने की ख़्वाहिश थी जिसकी वजह से मलिक बहनों ने पर्वतारोहण को चुना.

इस बारे में नुंगशी मलिक कहती हैं, "लोग वही काम करते हैं जो हो चुका है क्योंकि उन्हें लगता है कि उसी में सफलता है. लेकिन हमारा मक़सद है ज़िंदगी में जो अलग और मुख़्तलिफ़ हो, वो किया जाए. इसलिए लोग हमें ‘’एलियंस’’ भी कहते हैं."

पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेने के बाद साल 2010 से मई 2013 के बीच भारत और विदेश की कुछ चोटियों पर चढ़ने के बाद किसी भी और पर्वतारोही की ही तरह ताशी और नुंगशी ने भी नज़रें टिका दीं एवरेस्ट पर.

जोखिम भरा काम

ताशी कहती हैं, "2010 में पहली बार पहाड़ की चोटी पर कदम रखना बहुत अलग अनुभव था. उसके बाद से ही मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का सपना देखने लगी. मुझे सोते वक्त, खाते वक्त, हर वक्त एवरेस्ट ही दिखाई देता था."

"2010 में पहली बार पहाड़ की चोटी पर कदम रखना बहुत अलग अनुभव था. उसके बाद से ही मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का सपना देखने लगी. मुझे सोते वक्त, खाते वक्त, हर वक्त एवरेस्ट ही दिखता था."

-ताशी मलिक, पर्वतारोही

ताशी और नुंगशी का एक और सपना सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फ़तह करना है. पिछले दो सालों में उन्होंने अफ़्रीका की किलिमंजारो, यूरोप की एलब्रुस और जनवरी 2014 में दक्षिण अमरीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकांक्गुआ की चढ़ाई की.

पर्वतारोहण काफ़ी जोखिम भरा काम है. मलिक बहनों के  अकांक्गुआ अभियान के दौरान दो पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी.

ताशी कहती हैं, "उस हादसे के बारे में बहुत बुरा लगा था. चढ़ाई के दौरान ऐसे हादसों को देखना बहुत मुश्किल होता है. डर लगता है कई बार क्योंकि आख़िर हम इंसान हैं. आपको ये मानना पड़ता है कि ऐसा हादसा आपके साथ भी हो सकता है. लेकिन ज़रूरी है कि हम अपने जुनून को क़ायम रखें. लेकिन वो कहते हैं न कि डर के आगे जीत है. तो बस फ़ोकस्ड रह कर आगे बढ़ना होता है."

तैयारी

'लोग हमें एलियंस कहते हैं'

ताशी-नुंगशी ने जनवरी 2013 में दक्षिण अमरीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकांक्गुआ पर चढ़ाई की.

उपलब्धियां

2009- पर्वतारोहण प्रशिक्षण

2010- रुद्रगैरा चोटी की चढ़ाई, गढ़वाल हिमालय

फरवरी 2012- माउंट किलिमंजारो, अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी

मई 2013- माउंट एवरेस्ट, दुनिया की सबसे ऊंची चोटी

अगस्त 2013- माउंट एलब्रुस, यूरोप की सबसे ऊंची चोटी

जनवरी 2014- माउंट अकांक्गुआ, दक्षिण अफ़्रीका की सबसे ऊंची चोटी

किसी भी अभियान पर जाने से पहले शारीरिक और मानसिक तौर पर काफ़ी तैयारी की ज़रूरत होती है.

नुंगशी कहती हैं, "चढ़ाई करते वक्त मैं संस्कृत के कई श्लोक पढ़ती हूँ और ईसाई धर्म की प्रार्थना भी करती हूं. लेकिन सबसे ज़्यादा आपके  अंदर की आवाज़ ही आपको राह दिखाती है कि आपको अपना सपना पूरा करना है."

साथ ही ज़रूरी होता है ख़ास तरह का खान-पान, वर्जिश और फ़िटनेस ट्रेनिंग. प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट युक्त डाइट भी लेनी होती है.

लेकिन नुंगशी कहती हैं कि उन्हें और उनकी बहन को घर का खाना ही ज़्यादा पसंद है और वो बहुत कम ही घर के बाहर खाती हैं. इसलिए चाट-पकौड़ी, पीत्ज़ा, नूडल्स वगरैह नहीं खाने से उन्हें दिक्कत नहीं होती.

खाने-पीने में एक सी पसंद रखने वाली मलिक बहनें बाकी मामलों में एक-दूसरे से काफ़ी जुदा हैं.

नुंगशी कहती हैं, "बचपन में हम एक सी ड्रेस मांगते थे और नहीं मिलने पर हल्ला करते थे. लेकिन अब पहनावा, संगीत, फ़िल्मी हीरो-हीरोईन, कई मामलों में हमारी पसंद अलग हो गई है. पहले दोनों को शाहरुख़ ख़ान पसंद था लेकिन अब मुझे आमिर ख़ान पसंद है."

बेटियों को दें मौका

"हमारे मां-बाप ने हमारे सपने के लिए सब कुछ त्याग दिया. हमारा यही कहना है कि अपनी लड़कियों को घर में बंद कर, पिंजरे में कैद करके नहीं रखिए, उन्हें उड़ने दीजिए."

-नुंगशी मलिक

ताशी और नुंगशी मलिक के पिता वीरेंद्र मलिक, सेना के पूर्व अधिकारी हैं और मूल रूप से हरियाणा के हैं जबकि उनकी मां मूल रूप से नेपाल की हैं. दोनों बहनों का कहना है कि उनके सपने को साकार करने में उनके मां-बाप का सबसे बड़ा योगदान है.

ताशी कहती हैं, "हरियाणा में आज भी  लड़कियों पर बहुत नियंत्रण रखा जाता है. मैं यही कहूंगी कि लोग अपनी बेटियों को समझें और उन्हें एक मौका दें क्योंकि वो एक मौका ही काफ़ी होता है ख़ुद को साबित करने के लिए."

नुंगशी कहती हैं, "हमारे काम पर लोगों की नज़र जा रही है. कितने मां-बापों ने हमें आ कर कहा कि हम चाहते हैं कि हमारी लड़कियां भी तुम दोनों की तरह सपने देखें और उन्हें हासिल करें."

नुंगशी आगे कहती हैं, "जिस तरह से हमारे मां-बाप ने हमारे सपने के लिए सब कुछ त्याग दिया, वो उन मां-बाप के लिए उदाहरण है जो सोचते हैं कि उनकी बच्चियां कुछ नहीं कर सकतीं. हमारा यही कहना है कि अपनी लड़कियों को घर में बंद कर, पिंजरे में कैद करके नहीं रखिए, उन्हें उड़ने दीजिए."

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