किसी शायर ने कहा है 'शबे फुरकत का जागा हूँ फरिश्तों अब तो सोने दो!" ये लाइने कभी ऐसा भी होगा कि शायर का ख्याल ना रह कर हकीकत बन जायेंगी कहां सोचा था। लेकिन अगर आप वियतनाम के रहने वाले थाई नागोक से मिलेंगे तो आपको यकीन हो जाएगा कि ये महज कल्पना नहीं है। 1973  में बुखार का शिकार होने के बाद नागोक की रातों की नींद ऐसी उड़ी की वे 42 सालों से एक मिनट भी नहीं सोए।

चाहे शायर का ख्याल कहें या 'ट्वाईलाइट' नाम के नॉवल और फिल्म की इंस्प्रेशन जिसमें एक वैंपायर है जो सोता नहीं है।  पर सच ये है कि थाई कोई वैंपायर नहीं जीते जागते नामर्ल इंसान हैं। बस डाक्टरों की मानें तो वे इंसोमीनिया नाम की एक रेयर डीजीस के मरीज हैं। इस बीमारी में पेशेंट को नींद नहीं आती।  

1973 में जब बुखार के बाद ठीक होने के बावजूद नागोक को नींद नहीं आती थी तो वे बड़े परेशान रहने लगे थे। कई बड़े डाक्टर्स से कंसल्ट किया और अतत: पता चला कि उन्हें इंसोमीनिया है। पूरी दुनिया और भी इस बीमारी के पेशेंट हैं पर ये एक कॉमन बीमारी नहीं है। थाई कहते हैं कि शुरू में तो उन्हें बहुत तनाव रहता था। जब सब सो जाते थे और वो जागते रहते थे तो उन्हें बड़ी उलझन भी होती थी। फिर धीरे धीरे उन्हें। इसकी आदत हो गयी।

वो दिनभर तो क्या रात में भी काफी काम कर लेते हें। पहले वो रात में काम इसलिए करते थे कि दिन तो काम और सबके बीच रह कर कट जाता था पर रात को वो अकेले रह जाते थे तो काम करके व्यस्त रखते थे। ऐसा नहीं कि रात को जागने या काम करने से उन्हें कोई थकान होती है। वो थका हुआ महसूस नहीं करते और दिन रात काम करके 73 साल की उम्र में भी खुद को फिट महसूस करते हैं। 6 बच्चों के पिता नागोक को कई मैग्जींस ने असाधारण इंसान के तौर पर अपने संस्करणों में कवर किया है।

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