बल्लेबाज़ी का औसत 30 रन से कुछ ऊपर और शतक महज़ छह। लेकिन अगर आप उनको उनके समय के पैमानों पर तौलें तो वो बड़े खिलाड़ी थे। अगर आप भारतीय क्रिकेट को उनके योगदान को परखें, तो पाएँगे कि वो महान थे।

उनके कप्तान बनने के पहले टीम को तयशुदा तौर पर हारने वाली टीम माना जाता था। पटौदी ने इसको बदला। बिशन सिंह बेदी जैसे वो खिलाड़ी जो पटौदी के साथ खेले हैं, वो बताते हैं कि पटौदी ने पहली बार खिलाड़ियों में यह जज़्बा भरने की कोशिश की कि वो भारत के लिए खेलते हैं।

तेज़ गेंदबाज़ी के ज़माने में पटौदी ने बिशन सिंह बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन जैसे स्पिन गेंदबाजों का हौसला बढ़ाया और उनकी यह कोशिश बहुत ही ज़्यादा सफल रही। एक दौर ऐसा भी आया जब भारतीय टीम ने चार स्पिन गेंदबाजों के साथ खेली।

ज़ोरदार साख

पटौदी ने खेलना बंद किया लेकिन वो खेल से दूर नहीं हुए। बाकी कई दूसरे लोगों की तरह वो क्रिकेट की राजनीति ने बहुत ज़्यादा नहीं पड़े।

साफ़गोई से कम शब्दों में अपनी बात कहना और पचड़ों से दूर रहना, पटौदी दोनों करते थे। अपनी इन्ही आदतों के कारण वो खिलाड़ी जिन्होंने पटौदी के साथ कभी नहीं खेला वो भी पटौदी का बहुत सम्मान करते थे।

जब अनिल कुंबले ने खिलाड़ियों की यूनियन बनाई तब अध्यक्ष के लिए सबसे पहले आज के खिलाड़ियों के मन में भी पटौदी का नाम आया क्योंकि वो एक दम साफ़ सुथरे और बेदाग़ आदमी थे।

रंगीन व्यक्तित्व

पटौदी टाइगर के नाम से जाने जाते थे। पर उनके नाम के अलावा भी उनमे कई ऐसी बातें थीं जो उन्हें सामान्य से अलग बनाती थीं। पटौदी के माज़क करने का तरीका बड़ा ही अंग्रेजो की तरह का। वो बस कोई छोटा सा जुमला उछाल देते थे और लोगों को यह समझने में कुछ वक़्त लगता था की दरअसल उनके कहने का अर्थ क्या था।

पटौदी अपने निजी जीवन को लेकर बहुत बात करना पसंद नहीं करते थे। लेकिन वो शरारतें खूब करते थे। नारी कॉन्ट्रेक्टर याद करते थे कि किस तरह वेस्ट इंडीज़ में एक पार्टी के दौरान उन्होंने अपने किसी साथी खिलाड़ी को इतना चिढ़ा दिया। तो वो उनके पीछे दौड़ा पटौदी ने आव देखा ना ताव वो दौड़ कर पेड़ पर चढ़ गए।

पटौदी कभी कभार ही अपने निजी जीवन से जुड़ी बातें बताते थे। ऐसे ही एक मौके पर उन्होंने याद किया कि किस तरह शर्मिला टैगोर से शादी के पहले अपने इश्क के दौरान वो उनके लिए लंदन से तोहफ़े में एक रेफ्रिजरेटर लाये थे। मोहब्बत में फ्रिज का तोहफ़ा पटौदी इस बात को याद करते हुए खुद ही शर्मा कर हंस पड़ते थे।

अनोखा जज़्बा

बहुत कम लोग जानते हैं कि पटौदी हॉकी के भी अच्छे खिलाड़ी थे। जब इंग्लैंड में एक कार दुर्घटना के बाद उनकी आँख पर चोट लगी, तो उसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वो शायद ना खेल पाएं।

पटौदी इस बात को जानने के बाद भी बदस्तूर प्रैक्टिस के लिए जाते रहे। दुर्घटना की वजह से उन्हें हर चीज़ दो दो दिखने लगी। उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी। पहले उन्होंने एक आँख पूरी तरह से बंद कर खेलने की कोशिश की। उससे बात नहीं बनी क्योंकि एक आँख पर जोर ज़्यादा पड़ता था।

फिर उन्होंने आखिरकार अपनी टोपी को तिरछा कर खेलना शुरू किया। तिरछी टोपी की उनकी इस ज़रुरत को उनकी अदा के तौर पर पहचाना गया और पटौदी के चाहनेवालों की तादाद और बढ़ गई।

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