इतने प्रकार की होती है घंटियां

गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है। द्वार घंटी यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है। हाथ घंटी पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं। घंटा यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।

इसलिए मंदिर और घर में जरूरी होती है घंटी की ध्‍वनि

ये है वैज्ञानिक कारण

मंदिर में घंटी बजाए और लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है। जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

इसलिए मंदिर और घर में जरूरी होती है घंटी की ध्‍वनि

मूर्तियों में होती है चेतना जाग्रत

रोज सुबह शाम घंटी बजा कर पूजा अर्चना करने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है। घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है।

इसलिए मंदिर और घर में जरूरी होती है घंटी की ध्‍वनि

काल का प्रतीक है घंटी

मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो आवाज गूंजी थी वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है। मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है।

इसलिए मंदिर और घर में जरूरी होती है घंटी की ध्‍वनि

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