सुप्रीम कोर्ट में मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा जब महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव वेदों उपनिषदों या किसी भी शास्त्र में नहीं किया गया है तो सबरीमाला में ऐसा क्यों हैं। कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करेगा कि क्या महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को स्थायी किया जा सकता है या नहीं। इस मामले के लिए वरिष्ठ वकील राजू रातचंद्रन और के रामामूर्ति को कोर्ट का सहायक नियुक्त किया गया है।

जवाब देने के लिए कोर्ट ने सरकार और मंदिर को दिया 6 सप्ताह का समय

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा है कि सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश कब बंद किया गया था। मंदिर में महिलाओं का प्रवेश बंद करने के पीछे क्या इतिहास है। कोर्ट इस मामले में यह भी देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में रोक कहां तक ठीक है। कोर्ट के मुताबिक वह दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है। कोर्ट का मानना है कि मंदिर एक धार्मिक स्थल है और इसे तय पैमाने में होना चाहिए। जबाव देने के लिए कोर्ट ने छह सप्ताह का समय दिया है।

मंदिर बोर्ड ने कहा हजारों साल पुरानी है प्रथा

सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई पर मंदिर बोर्ड ने कहा है कि यह प्रथा 1,000 साल से चली आ रही है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को क्यों उठा रहा है। बोर्ड ने यह भी बताया कि सिर्फ सबरीमाला मंदिर ही नहीं पूरे सबरीमाला पर्वत पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित किया गया है। यह प्रथा हजारों साल पुरानी है इसमें मंदिर बोर्ड कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकती है।

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