रणनीतिक शून्य में दाखिल

अमेरिकी अखबार में एक लेख में विशेषज्ञ कहना है कि आज तालिबान का असली गॉडफादर पाकिस्तानी सेना है। जब कि वहीं दूसरी ओर अमेरिकी सरकार इसके छुपाकर रखती है क्योंकि वह नहीं जानती कि इस मुद्दे से निपटा कैसे जाए। पाकिस्तान 1980 के दशक में सोवियत संघ से युद्ध के दौरान अमेरिका समर्थित मुजाहिद्दीन का गढ़ भी रह चुका है। इसके अलावा वर्ष 1989 में जब सोवियत संघ पीछे हट गया तो अमेरिका ने तेजी से कदम वापस खींच लिए और पाकिस्तान उस रणनीतिक शून्य में दाखिल हो गया। ऐसे में साफ है कि आज पाकिस्तान एक बार फिर से अपनी पुरानी इच्छा के तहत अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान अमेरिका की मदद का दिखावा करने में हमेशा ही माहिर रहा है। जब कि वह अंदर ही अंदर हमेशा ही उसकी जड़े काटने में रहा है।

आतंकियों का समर्थन करते

इस दौरान जकारिया ने आतंकवाद को लेकर भी अपना रुख स्पष्ट किया है। उनका कहना है कि पाकिस्तान एक टाइम बम की तरह काम कर रहा है। इस बात का यह उदाहरण है कि पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से लेकर निचले स्तर तक के पाकिस्तानी अधिकारी आतंकियों का समर्थन करते रहे। वे हमेशा ओसामा बिन लादेन या उमर के पाकिस्तान में रहने की बात से इंकार करते रहे हैं। आखिर समझ में एक बात नही आती की पाकिस्तानी सेना की सोच की जांच क्यों नहीं की जाती है। जब तक इसकी सोच में सुधार नहीं होगा तब तक अमेरिका को ऐसे ही रणनीतिक विफलता का सामना करना पड़ेगा। यही वजह है कि जब भी अमेरिकी अधिकारी तालिबान के साथ बातचीत का प्रयास करते हैं वे ठीक से उस बातचीत को तवज्जों नहीं देते हैं।

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