- रंगकर्मियों ने बुलंद की आवाज, बाहर प्रेक्षागृह को न, शहर में प्रेक्षागृह की ही डिमांड

- विवादित जगह पर सुलह की कोशिशों में जुटा है प्रशासन

GORAKHPUR: रंगमंच, जिसके कलाकारों का लोहा बॉलीवुड भी मानता है। गोरखपुर भी रंगमंच के कलाकारों का गढ़ रहा है। मगर शुरुआत से ही यहां के कलाकार सुविधाएं न होने के बाद भी अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं। गोरखपुर में कद्रदानों की कमी नहीं है, लेकिन रंगकर्मियों को उनकी कला का प्रदर्शन करने के लिए कोई ऐसी फिक्स जगह नहीं हैं, जहां वह अपने हुनर का जलवा बिखेर सकें। हाल ही में प्रशासन के जिम्मेदारों ने तारामंडल के पास जमीन तलाश वहां प्रेक्षागृह बनवाने की तैयारी शुरू की है, लेकिन रंगमंच से जुड़े लोगों ने प्रशासन की ओर से दी जाने वाली जगह को नकार दिया है। उनका कहना है कि जिस जगह पर हुनर के कद्रदान ही नहीं मिलेंगे, तो हम वहां मेहनत और पसीना बहाकर क्या करेंगे।

दूर किनारे नहीं आता कोई

कलाकारों की मानें तो जिस जगह जिला प्रशासन जमीन मुहैया करा रहा है। वहां उनकी कला के कद्रदान नहीं मिल सकते हैं। उन्होंने वहां मौजूद तारामंडल का एग्जामपल देते हुए कहा कि पिछले कई सालों से शहर के पास मौजूद होने के बाद भी गिनती के लोग ही तारामंडल जाते हैं। वहीं, बेहतर स्पॉट होने के बाद भी काफी कम लोग ही वॉटर पार्क में पहुंचते हैं। ऐसा नहीं है कि वह यहां जाना अफोर्ड नहीं कर सकते, बल्कि शहर का किनारा होने और शाम को घटना न हो जाए इस डर से कोई वहां जाना नहीं चाहता। इसकी वजह से रंगकर्मी इसका विरोध कर रहे हैं और आसपास लोगों को मैसेज देने के साथ ही सोशल मीडिया पर भी विरोध दर्ज करा रहे हैं।

एक प्रेक्षागृह का है इंतजार

गोरखपुर में रंगाश्रम का मंच मौजूद है। यहां पर जमीन विवादित होने की वजह से इसका निर्माण तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन रंगकर्मी रंगांदोलन कर इसको बनवाने की कोशिशों में लगे हैं। सूबे के मुखिया ने भी इस रंगमंच को सुलह-समझौते के आधार पर सुलझाकर दिलवाने के भी निर्देश दिए हैं। मगर जिला प्रशासन के जिम्मेदारों की लाख कोशिशों के बाद भी अब तक कोई ठोस हल नहीं निकल सका है। वहीं, जिम्मेदारों ने शहर के किनारे सर्किट हाउस के पास एक जमीन तलाशी है। डीएम ने संबंधित अधिकारियों से इसकी डीटेल्ड रिपोर्ट मांगी है।

वर्जन

शहर में जो प्रेक्षागृह है, उसका मामला कोर्ट में चल रहा है। जिम्मेदारों को चाहिए कि इस मामले में जल्द से जल्द प्रयास कर सुलह-समझौता करवाएं। मगर वह दूसरी जगह तलाशने में लग गए हैं। हमें यहीं पर प्रेक्षागृह चाहिए।

- अमित सिंह पटेल, थियेटर एक्टर

प्रेक्षागृह शहर के अंदर ही होना चाहिए। अगर प्रशासन ऐसा नहीं कर पाता है, तो हमें उनका प्रेक्षागृह नहीं चाहिए। दूर होने की वजह से कोई पहुंच ही नहीं पाएगा, तो रंगमंच बनाकर भी क्या करेंगे।

- मानवेंद्र त्रिपाठी, थियेटर एक्टर

पिछले कई सालों से सर्किट हाउस के बगल में तारामंडल जैसी इंपॉर्टेट चीज मौजूद है, लेकिन वहां झांकने के लिए भी कोई नहीं जाता। बुद्धा म्यूजियम में भी गिन-चुनकर लोग पहुंचते हैं। ऐसी चीजों का क्या फायदा।

-रीना जायसवाल, थियेटर एक्ट्रेस

शहर से दूर रैंपस स्कूल में नाटक का मंचन किया जाता है। मगर वहां कद्रदान नहीं पहुंचते। गिने-चुने 30-40 लोग पहुंचते हैं। शहर में रहने से देखने वालों की तादाद बढ़ जाती है। प्रेक्षागृह यहीं होना चाहिए।

-नवनीत जायसवाल, कलाकार