- दस हजार से अधिक ऑटो रंगदारी से ही चलती है, उस पर थाने का कोड तक नहीं

- देर रात इस तरह के ऑटो खूब चलते हैं, लेकिन किसी को जानकारी नहीं

- एसोसिएशन भी मानता है कि 35 हजार ऑटो में नहीं लग पाया है पुलिसिया कोड

PATNA: ऑटो राज की रंगदारी से हर कोई परेशान है। दिन हो या फिर रात शहर की सड़कों पर ऑटो की सवारी करने वाले के पसीने छूट जा रहे हैं, लेकिन इस पर नकेल न तो यूनियन और न ही एडमिनिस्ट्रेशन ही लगा पा रहा है। उलटे पब्लिक को परेशान करने वाले ऑटो वालों ने तो अब गवर्नमेंट की कलाई भी मरोड़ना शुरू कर दिया है। छोटी से छोटी बातों के लिए लगातार प्रेशर और स्ट्राइक पर चले जाने की वजह से कंडीशन खराब हो चुकी है। इस बीच, एक बड़ा मामला सामने आया कि ऑटो यूनियन जिस 35 हजार ऑटो का दावा कर रही है। उसमें से दस हजार से अधिक ऑटो का कोई स्टेटस ही किसी को पता नहीं है। यानी उसमें लगने वाला थाने का कोड थानेदार तक को पता नहीं चल पा रहा है और यह ऑटो अपनी मनमर्जी से शहर के विभिन्न चौराहों से हर दिन चलते रहती है। नतीजा यह हो गया है कि कई मासूम पटनाइट्स इसकी चपेट में फंसकर मनमाना किराया देते हैं। लेकिन इसे लेकर अब कोई कोई खास कार्रवाई तक नहीं हो पाती है। ्र

रात में चलता है ऑटो का आतंक

रात नौ बजे से सुबह के पांच बजे तक शहर से खुलने वाले ऑटो का आंतक इस कदर है कि गांधी मैदान, पटना जंक्शन से खुलने के बाद यात्रियों को जमकर लूटा जा रहा है, जिस पर एसोसिएशन वाले भी अंकुश नहीं लगा पा रहे है। सोर्सेज की मानें, तो इसमें सैकड़ों की तादाद में एसोसिएशन वालों का ही ऑटो यूज होता है, जो कुछेक किमी के लिए पैसेंजर से मनमाना किराया वसूल लेते हैं। इन ऑटो चालकों की नजर जंक्शन और मीठापुर बस स्टैंड से आने-जाने वाले पैसेंजर पर अधिक रहती है। राजीव नगर के कुमार कौशिक से लेकर दर्जनों पैसेंजर्स ने इसकी शिकायत लोकल लेवल पर मेय आई हेल्प यू में भी की, बावजूद कुछ पॉजिटिव रिजल्ट नहीं निकल पाया। एसोसिएशन से जुड़े नवीन मिश्रा ने बताया कि इस तरह की शिकायत आने पर फौरन उस पर कार्रवाई होती है, लेकिन अब तक ऐसी कोई शिकायत ही नहीं आई है।

ऑटो वाले नंबर नहीं लगाते

एसोसिएशन वाले पब्लिक से शिकायत करने के लिए कहती है। लेकिन खुद कभी भी वो ऑटो की जांच नहीं कर पाते हैं। जानकारी हो कि पटना शहर के अंदर चलने वाली ऑटो के दर्जन भर यूनियन काम करती है। जो विभिन्न सड़कों पर चलने वाले ऑटो से जुड़ी होती है। इसके बाद भी इस पर कोई खास कार्रवाई नहीं कर पाते है। वहीं पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन और डीटीओ लेवल से कोई जांच नहीं हो पाने की वजह से परेशानी काफी बढ़ जाती है।

Highlights

ऑटो वाले अपनी जेब में रखते हैं नियम।

ऑटो के पीछे थाने का कोड नहीं लगाते हैं।

मनमाना किराया वसूल करते हैं।

ऑटो के अंदर गाना बजाते हैं और लाइट ऑफ रखते हैं।

आगे भी पैसेंजर को बिठाकर चलते हैं।

ऑटो के बॉडी को अपने हिसाब से बढ़ाकर मनमाना पैसा वसूलते हैं।

ड्राइवर सीट के सामने थाना, पुलिस और खुद का नंबर तक नहीं लगाते हैं।

ड्राइविंग लाइसेंस तक अपने साथ नहीं रखते हैं।

चौराहा और ओवर ब्रिज पर अपने हिसाब से स्टैंड बनाकर गाडि़यां पार्क कर देते हैं।

एडमिनिस्ट्रेशन अगर नकेल कसता है, तो फिर स्ट्राइक में चले जाते हैं। थाना तक को इसकी जानकारी नहीं है कि उनके एरिया में कितने ऑटो चल रहे हैं। एसोसिएशन इसको लेकर हामी भरता है, लेकिन नए ऑटो का हवाला देकर वह भी चुप हो जाता है।