- बीआरडी में नहीं हो रहा हार्ट और किडनी पेशेंट्स का इलाज

- डॉक्टर्स की कमी के चलते बर्न और कैंसर पेशेंट्स भी झेल रहे सांसत

GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में पहुंचने वाले हार्ट और किडनी पेशेंट्स इलाज की आस न रखें। यहां इन बीमारियों के डॉक्टर्स ही नहीं हैं। जिसके चलते हर रोज ऐसे सैकड़ों मरीजों को यूं ही लौटा दिया जा रहा है। जिला अस्पताल में भी इन बीमारियों के डॉक्टर्स नहीं है जिससे मरीज प्राइवेट इलाज कराने को मजबूर हैं।

नहीं है किडनी रोग विशेषज्ञ

पूर्वाचल की करीब दो करोड़ की आबादी के बीच बीआरडी एक मात्र मेडिकल कॉलेज है। यहां नेपाल और बिहार से भी मरीज इलाज के लिए आते हैं। 950 बेड वाले मेडिकल कॉलेज में रोजाना करीब पांच हजार मरीज ओपीडी में इलाज कराने पहुंचते हैं। जिनमें से कई गंभीर मरीजों का इलाज डॉक्टर के अभाव में नहीं हो पाता है। जिससे उन्हें मायूस लौटना पड़ रहा है। यहां दूषित पेयजल के कारण किडनी की बीमारी सबसे ज्यादा होती है। करीब 10 प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह से इस बीमारी से पीडि़त या प्रभावित है। इसके इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं हैं। दोनों अस्पतालों में किडनी रोग विशषेज्ञ के पद खाली हैं। इलाज के लिए मरीजों को प्राइवेट डॉक्टर्स के पास जाना पड़ता है। बीआरडी में संचालित हो रहा डायलिसिस यूनिट महज शोपीस बन कर रह गया है। इस डायलिसिस यूनिट को चलाने की जिम्मेदारी मेडिसीन विशेषज्ञ पर है।

हार्ट पेशेंट बीआरडी से रहें दूर

मेडिकल कॉलेज में लगभग आठ साल से एक भी कार्डियोलॉजिस्ट नहीं हैं। मेडिकल वार्ड में बनी कैथलैब भी बंद हो गई। वहीं जिला अस्पताल में एक ही डॉक्टर के भरोसे हार्ट पेशेंट्स का इलाज होता है। हालांकि यहां एंजियोग्राफी, एंजियोप्लॉस्टी, वेंटीलेटर और टीएमटी जांच समेत कोई सुविधा नहीं है।

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कैंसर विभाग को है सर्जन का इंतजार

सबसे अधिक कैंसर के मरीज पूर्वाचल में हैं। बीआरडी में ही छह साल में कैंसर रोग विभाग में ओपीडी आठ गुना बढ़ गई। पिछले वर्ष करीब नौ हजार कैंसर के नए मरीज पंजीकृत हुए। लेकिन यहां इस बीमारी के इलाज के लिए कोई सर्जन नहीं है। इसके कारण ओरल कैंसर जैसी बीमारियों के मरीजों को लखनऊ, दिल्ली और मुंबई का चक्कर लगाना पड़ रहा है।

बर्न वार्ड में भी डॉक्टर नहीं

झुलसे और एसिड अटैक से पीडि़तों के इलाज के लिए जिला अस्पताल और बीआरडी में 20-20 बेड का बर्न वार्ड बना है। जिला अस्पताल में झुलसे मरीजों के इलाज के लिए प्लास्टिक सर्जन ही नहीं है। बीआरडी प्रशासन ने संविदा पर एक डॉक्टर तैनात कर जैसे-तैसे इलाज करा रहा है।

बीआरडी में डेली आने वाले मरीजों की संख्या

बीमारी मरीजों की संख्या

डायबिटीज 100

दिल के रोगी 50

गुर्दा रोगी 30-40

केस 1- पांच रोज पहले गुलरिहा निवासी मोहन लाल गुप्ता को दिल का दौरा पड़ा। उन्हें बाआरडी मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी आईसीयू में भर्ती करवाया गया। जहां डॉक्टर ने हार्ट अटैक बताया और कहा कि यहां पर कार्डियोलॉजिस्ट नहीं हैं इसलिए इलाज हो पाना संभव नहीं है। उन्होंने लखनऊ केजीएमसी के लिए रेफर कर दिया।

केस-2 खजनी एरिया के रहने वाली महिला खाना बनाते समय बुरी तरह झुलस गई। उसे परिजनों ने जिला अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन बर्न विशेषज्ञ न होने के चलते उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। हालांकि बीआरडी में संविदा पर सिर्फ एक डॉक्टर है। जिसके ऊपर आग से झुलसे मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी है।

वर्जन

विशेषज्ञ डॉक्टर्स के अधिकांश पद खाली हैं। मरीजों के बेहतर इलाज के लिए इन पदों के भरे जाने की जरूरत है। इसके लिए शासन को पत्र भेजा गया है।

- डॉ। गणेश कुमार, प्रिंसिपल, बीआरडी

अस्पताल में डॉक्टर्स की बेहद कमी है। इसके लिए निदेशक संचारी नियंत्रण को पत्र लिखा गया है। जल्द ही कमी को दूर कर लिया जाएगा।

- डॉ। राजकुमार गुप्ता, एसआईसी जिला अस्पताल