- आखिर क्यों नहीं मंगाई जा रही सिटी स्कैन और एमआरआई मशीन

- कमीशन के इस खेल में 50 प्रतिशत तक होती कमाई

MEERUT : सिटी के मेडिकल कॉलेज में एमआरआई और सिटी स्कैन की मशीन न होना एक बड़े सावल को खड़ा करती है। शासन से दो साल पहले इसके लिए आठ करोड़ का बजट आने के बाद भी मशीन न आना मरीजों के लिए समस्या तो खड़ी कर रहा है, लेकिन मेडिकल में किसी न किसी को इसका सीधा फायदा जरूर हो रहा है। बजट का पैसा कहां गया और यह सोचने की बात तो है, लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि आखिर इन मशीनों के न होने से किसको और कितनी मोटी कमीशन का फायदा होता है

मशीन न होना बड़ी बात

मेडिकल में सिटी स्कैन और एमआरआई के लिए रोजाना भ्0 से म्0 ऐसे पेशेंट आ ही जाते हैं, जिन्हें सिटी स्कैन और एमआरआई की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन यह उनकी बदकिस्मती है कि इतने बड़े मेडिकल कॉलेज में एक भी एमआरआई और सिटी स्कैन की मशीन ही नहीं है। ताज्जुब की बात तो यह है कि जिस मेडिकल कॉलेज में एमआरआई और सिटी स्कैन की मशीन नहीं है। उसके प्रिंसीपल खुद एक बड़े न्यूरो सर्जन हैं।

कमीशन का बड़ा खेल

सूत्रों की मानें तो हर एमआरआई और सिटी स्कैन पर प्राइवेट लैब से लगभग भ्0 प्रतिशत की कमीशन आता है। एक अनुमान के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में रोजाना भ्0 पेशेंट सिटी स्कैन और एमआरआई के आ ही जाते हैं। प्राइवेट लैब में एक सिटी स्कैन कराने के लिए पांच से छह हजार रुपये का खर्चा आता है। इसी प्रकार एक एमआरआई कराने का खर्चा ढाई से तीन हजार रुपये आता है। इस हिसाब से एक दिन का मोटा कमीशन बनता है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह कमीशन आखिर मिलता किसको है। यह कमीशन मिलता है मेडिकल के सरकारी डॉक्टर्स को, जो प्राइवेट हॉस्पिटल या लैब से साठगांठ करके अपना कमीशन तय कर लेते हैं।

तो ऐसे हो रहा है खेल

केस क् : जागृति विहार से आई अमीता पाठक ने बताया कि उसके पिता का एमआरआई होना था। इमरजेंसी थी, लेकिन मेडिकल में डॉक्टर ने किसी पास की प्राइवेट लैब में टेस्ट कराने के लिए भेज दिया। जहां पर एमआरआई के लिए छह हजार रुपए खर्च आया।

केस ख् : कंकरखेड़ा के सोनू के सिर में चोट लगने के कारण उसके घर वालों को मजबूरी में प्राइवेट लैब में जाकर सिटी स्कैन कराना पड़ा। जहां उसके सिटी स्कैन के फ् हजार रुपए लग गए।

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इन दोनों में ही केस में लैब वाले ने एक रजिस्टर में डॉक्टर के नाम से मरीजों की एंट्री की। यहां डॉक्टर के नाम से एंट्री करने का साफ मतलब है कि इस मरीज को किस डॉक्टर ने भेजा है। तो इसको इस मरीज की कमीशन जानी है।

ख्0क्ख् में सीएम ने दिया था आदेश

सूत्रों की मानें तो मेडिकल में इन दोनों मशीन को लगवाने के लिए ख्0क्ख् में मुख्यमंत्री ने भी आदेश जारी किए थे, जिसमें मुख्यमंत्री ने बजट के साथ ही सरकारी अस्पतालों में दोनों मशीन लगाने के आदेश दिए थे। सूत्रों की मानें तो दोनों मशीनों के लिए लगभग आठ करोड़ का बजट भी आ चुका है। दो साल में अभी तक तीन से चार बार मशीन के लिए विभिन्न कंपनियों ने टेंडर भी भरे मगर अभी तक मशीन का कोई नामो निशान तक नहीं हैं।

फ्0 जून को उठाया गया था मुद्दा

मेडिकल कॉलेज कर्मचारी एसोसिएशन प्रदेश अध्यक्ष सतीश त्यागी ने बताया कि अभी फ्0 जून को उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था। इस मुद्दे को लेकर उन्होंने चिकित्सा शिक्षा प्रमुख सचिव से बातचीत की थी, जिस पर उन्होंने मेडिकल से नाराजगी जताते हुए जल्द ही मशीन लगवाने के आदेश दिए थे। इससे पहले मुख्यमंत्री के आदेश भी हुए थे। मगर इस पर कोई ध्यान तक नहीं देता है।

कब होती है दोनों टेस्ट की जरुरत

जब किसी के सिर में गहरी चोट आती है। दिमाग में गहरा सदमा लग जाने से इन दोनों ही टेस्ट की आवश्यकता किसी न किसी सीरियस केस में ही पड़ती है। जिसके जरिए पेशेंट के दिमाग की अंदरुनी और गहरी चोट का पता लगाया जाता है।

मजबूरी में खेल के शिकार बने

रिश्तेदारी में किसी के एक बार सिर में गहरी चोट आ गई। अब मेडिकल में तो साफ बोल दिया गया। यहां सिटी स्कैन की सुविधा नहीं है। आप जल्दी से किसी पास की लैब से टेस्ट करवा लो।

-चमन, दिल्ली रोड निवासी

ऐसा तो मेडिकल में होता है कि काफी सारी सुविधाएं यहां पर मिलती ही नहीं और फिर मरीज को मजबूरी में पास के प्राइवेट हॉस्पिटल या लैब में जाना पड़ता है।

-बिल्लू, केसरगंज निवासी

क्या कहते हैं अधिकारी

मेडिकल कॉलेज से तो टेंडर भरने के बाद प्लान भी भेज दिया गया है। यह मामला तो ऊपरी स्तर का है। इसमें मेडिकल कॉलेज का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।

-डॉ। सुभाष सिंह, सीएमएस मेडिकल

यह तो ऊपरी स्तर का मामला है। मेडिकल से तो सारा प्लान भेज दिया गया है। अब यह मेडिकल स्तर का मामला नहीं है।

-डॉ। प्रदीप भारती, प्रिंसीपल, मेडिकल