- फायदे के लिए साथ छोड़ रहे नेता, कल के दोस्त आज बने हैं दुश्मन

- अनंत सिंह से पहले भी अपने नेता का साथ छोड़ चुके हैं कई लोग

- रामकृपाल, साधु यादव, पप्पू यादव पर भी दोहरायी जा चुकी है कहानी

PATNA: राजनीति मतलब की होती है या फिर मतलब की ही राजनीति होती है, इसका पता इलेक्शन के टाइम में ही चलता है। बस, फायदा अपना होना चाहिए, बाकी कौन किस और है या किस ओर जा रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बिहार में एसेम्बली चुनाव का बिगुल बज चुका है। शह और मात के खेल की शुरुआत अब होने ही वाली है। इस बीच कई बड़े बदलाव हुए हैं। मंगलवार की रात एक बड़ी राजनीतिक घटना हुई। बाहुबली जेडीयू विधायक अनंत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वे बेऊर जेल में बंद हैं। उनके डिसीजन पर कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि यह होना ही था। स्थितियां व नई गठजोड़ की यह मांग भी थी कि अनंत खुद ही अपना रास्ता देख ले, लेकिन इस राजनीतिक हलचल ने एक बार यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि राजनीति सिर्फ अपने फायदे के लिए ही होती हैं। जब तक अनंत सिंह नीतीश कुमार के खास रहे, वे साथ रहे आज अलग हो गए। राजनीतिक विशेषज्ञ की मानें, तो नीतीश ने भी अनंत का फायदा उठाया। आज अलग समीकरण में विवाद का बढ़ना तय था। ऐसे कई लोग है, जो अपने नेता को छोड़कर अलग रास्ते तलाश चुके हैं।

अनंत सिंह, मोकामा विधायक

मोकामा से तीसरी बार विधायक अनंत सिंह फिलहाल बेऊर जेल में बंद है। कुछ महीने पहले ही उनकी गिरफ्तारी हुई। फिलहाल अनंत सिंह पर ख्7 मामले चल रहे हैं। बाढ़ में हुए पुटुस यादव नाम के युवक की हत्या के बाद तो उनके राजनीतिक कॅरियर को राजनीतिक नजर लग गई। मामले ने तुल पकड़ा और राज्य में बन रहे नए सियासी समीकरण वे बच न सके। नीतीश सरकार का समर्थन कर रहे लालू प्रसाद और विरोध कर रहे सांसद पप्पू यादव ने अनंत सिंह को लेकर आंदोलन कर दी। इसकी बीच पटना के तत्कालीन एसएसपी जितेन्द्र राणा ने पुटुस यादव की हत्या में अनंत सिंह के हाथ होने पर मुहर लगा दी। राणा का ट्रांसफर तो सरकार ने कर दिया, लेकिन अगले ही दिन अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद शुरू हुई अनंत पर राजनीति लालू ने उनपर कार्रवाई को लेकर नीतीश की तारीफ ही नहीं कि बल्कि स्वाभिमान रैली में नीतीश को अनंत पर कार्रवाई के कारण ही उन्हें बहादुर का तमगा दे दिया। अनंत के बड़े भाई स्व। दिलीप सिंह कभी लालू सरकार में मंत्री थे। इस नाते अनंत भी लालू से जुड़े रहें।

राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, सांसद

आज लालू से पंगा लेने वालों में फिलहाल सांसद पप्पू यादव सबसे आगे चल रहे हैं। क्भ् महीने पहले लोकसभा चुनाव के वक्त लालू और पप्पू की खूब बन रही थी। यहां तक कि उन्हें अपनी पार्टी का टिकट भी दिया था। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। आरजेडी से सांसद पप्पू को बाहर का रास्ता लालू ने दिखा दिया है, वहीं पप्पू ने भी लालू के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। इतने दिनों में ही मामला अलग हो गया। इस बार के असेम्बली इलेक्शन में पप्पू लालू के विरोधियों में सबसे आगे है।

रामकृपाल यादव, सेन्ट्रल मिनिस्टर

लालू के सबसे विश्वासियों में कई दशकों तक शामिल रहने वालों में एक नाम रामकृपाल यादव का है। लालू और रामकृपाल के अभी रिश्ते में यह बात साफ हो गए कि राजनीति में अपना कोई नहीं होता। रामकृपाल यही आरोप लगाते हैं, तो लालू भी कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया रामकृपाल के बारे में देते हैं। लोकसभा चुनाव में जब लालू प्रसाद ने अपनी बेटी मीसा भारती को पाटलिपुत्रा लोकसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया, तो रामकृपाल यादव ने बगावत कर दी। बात बनाने की कोशिश हुई मगर बनी नहीं। आखिरकार रामकृपाल ने भाजपा का दामन थामकर लालू को चुनौती ही नहीं दी, बल्कि पाटलिपुत्रा सीट जीतकर मोदी मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री भी बन गये। शायद ही कोई सोचता हो कि कभी लालू का साथ रामकृपाल छोड़ेंगे, मगर राजनीति में सब संभव है यह इस कड़ी में देखने को मिला।

उपेन्द्र कुशवाहा, सेन्ट्रल मिनिस्टर

नीतीश कुमार के करीबियों में कुछ लोगों का नाम लिया जाता था। दोनों की दोस्ती इतनी थी कि उपेन्द्र कुशवाहा अगर कुछ बोले तो मान लिया जाता था कि नीतीश की वहीं राय होगी, लेकिन आज आलम अलग है। दोनों घुर विरोध हो चुके हैं। यही नहीं, नीतीश ने बीजेपी का जब साथ छोड़ तो उपेन्द्र कुशवाहा ने पकड़ लिया और इसका फायदा भी मिला। वे केन्द्र में मंत्री भी बन गए। नीतीश ने जब समता पार्टी बनाई थी तब भी साथ ही थे।

साधु यादव, एक्स एमपी

अनिरुद्व प्रसाद उर्फ साधु यादव, आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के साले हैं। लालू राबड़ी राज में इनकी क्या चलती थी यह बताने की जरूरत नहीं। इनकी रिश्तेदारी के कसीदे पढ़े जाते थे, लेकिन अब वह बातें पुरानी हो चुकी हैं। साधु ने अपना अलग रास्ता तय कर लिया है। साधु की नजदीकियां पूर्व सीएम जीतन राम मांझी से भी बढ़ी हैं। साधु ने अपनी पार्टी गरीब जनता दल ही बना ली है। अब आलम यह है कि लालू के विरोध करने वालों के साथ हो सकते हैं। इस मैसेज के तहत ही वे पीएम नरेन्द्र मोदी से भी मिल चुके हैं। साधु गोपालगंज से सांसद रहे। लालू के लिए इस चुनाव में वे भी कई इलाकों में परेशानी पैदा कर सकते हैं।