-कॉम्बीनेशन की दवाएं लिखने में सबसे ज्यादा प्रॉब्लम, एक ही सॉल्टनेम की दर्जनों दवाएं, सबके दाम भी अलग

- फार्मासिस्ट्स की कमी से मेडिकल स्टोर पर भी दवा समझना मुश्किल, पेशेंट्स भी दवा के नाम पर करते हैं विश्वास

KANPUR: पर्चे पर जेनेरिक दवाएं लिखने के एमसीआई के आदेश का असर हुआ है। डॉक्टर्स ने अपने प्रिस्क्रिप्शन पैड पर मरीजों को जेनेरिक व सॉल्ट नेम से दवाएं लिखना भी शुरू कर दिया है, लेकिन इस दौरान कई तरह की मुश्किलें भी सामने आई हैं। यह मुश्किलें डॉक्टर्स, मेडिकल स्टोर संचालक और मरीज तीनों की ही हैं। डॉक्टर्स को जहां कॉम्बीनेशन वाली दवाओं में मरीज के हिसाब से सॉल्ट नेम के साथ मॉलीक्यूल की मात्रा कितनी होगी यह भी लिखना होगा। वहीं इस फार्मूले के हिसाब से ही मेडिकल स्टोर संचालक को दवा देनी होगी। जोकि अभी तक सिर्फ नाम से ही बेची जाती थीं। हालांकि इस मुश्किल से बचने के कई रास्ते भी निकाले गए हैं। कुछ डॉक्टर्स सॉल्टनेम लिखने के साथ ही अलग पर्चे में सीधे ब्रांड नेम लिख दे रहे हैं। वहीं कुछ डॉक्टर्स पर्चे पर सॉल्टनेम पेन से तो ब्रांड नेम पेंसिल से लिख कर दे रहे हैं। इन सबके बाद भी एक और मुश्किल भी है। वो ये कि असल में एक दवा कितनी सस्ती है, यह आम मरीज को कैसे पता चले।

एक दवा, एक फामूर्ला दाम अलग

डॉ। एम सिंह ने बताया कि मार्केट में ब्रांडेड दवाओं के प्राइज में कितना वैरीएशन है। इसको एक उदाहरण से समझते हैं। मार्केट में ग्लिंपिराइड एंड मेटफार्मिन हाइड्रोक्लोराइड सॉल्ट की दर्जनों दवाएं अलग-अलग ब्रांड नेम से बिकती हैं। इनके अलग-अलग रेट भी हैं। इसी सॉल्ट की ग्लैकोमेट जीपी-2 ब्रांडनेम दवा जहां 130 रुपए की मिलती है। वहीं ऐमेरेल एम2 ब्रांडनेम से यही दवा 214.40 रुपए की आती है। इसके अलावा ब्रांडेड जेनेरिक अलग हैं। इन जेनेरिक दवाओं को बनाने वाली कंपनियां भी अलग अलग रेट पर बेचती हैं। ऐसे में डॉक्टर सॉल्टनेम लिख भी दे तो मेडिकल स्टोर पर मरीज को यह पता कर पाना बेहद मुश्किल होगा कि सबसे सस्ती दवा कौन सी है।

कॉम्बीनेशन लिखने में परेशानी

दवा मार्केट एसोसिएशन के संजय मल्होत्रा बताते हैं कि दरअसल डॉक्टर हर दवा को मरीज की उम्र बीमारी और वजन के हिसाब से लिखता है। कॉम्बीनेशन की कई दवाएं अलग अलग मात्रा के मॉलीक्यूल के साथ बिकती हैं। ऐसे में अगर डॉक्टर को सिर्फ सॉल्टनेम लिखना है तो उसे पेशेंट के हिसाब से पूरा सॉल्ट उसकी मात्रा भी दर्ज करनी पड़ेगी। उदाहरण के तौर पर ग्लूकोनार्म पीजी-2 ब्रांडनेम से बिकने वाली शुगर की इस दवा का अगर जेनेरिक सॉल्ट डॉक्टर को लिखना पड़ा तो वह कुछ इस प्रकार होगा। ग्लिपिराइड आईपी 2एमजी, पियाजेलिटाजोन हाइड्रोक्लोराइड 15 एमजी, मेटफार्मिन हाइड्रोक्लोराइड 500 एमजी। ऐसे में हमेशा से ही ब्रांड नेम से दवा बेचने वाले मेडिकल स्टोर संचालक को भी पहली नजर में असल दवा को समझ पाना मुश्किल हो गया है।

फॉर्मासिस्ट की कमी का असर

दरअसल शहर में 2 हजार से ज्यादा मेडिकल स्टोर्स हैं। लेकिन फार्मासिस्ट की संख्या एक हजार भी नहीं है। दो प्रमुख फार्मासिस्ट एसोसिएशन के सदस्यों की संख्या को जोड़े तो यह 300 के करीब ही बैठती है। दरअसल ड्रग विभाग की मिलीभगत से एक ही फार्मासिस्ट के नाम से कई मेडिकल स्टोर्स को लाइसेंस मिला हुआ है। ऐसे में कुछ मेडिकल स्टोर्स को छोड़ बाकी जगह बिना फार्मासिस्ट के ही दवा बेची जाती हैं। अब जब सॉल्ट नेम से ही दवाएं बेचे जाने का आदेश हुआ है ऐसे में दवा की दुकानों पर फार्मासिस्ट की कमी का भी साफ पता चल रहा है, क्योंकि दवा बेचने वाले सॉल्ट के हिसाब से दवा को समझ ही नहीं पा रहे।

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फार्मासिस्ट्स की पहले ही कमी है। जेनेरिक दवाएं लिखने के एमसीआई के फैसले से मेडिकल स्टोर्स पर इसका असर पड़ेगा ही क्योंकि ज्यादातर में जगहों पर अभी तक ब्रांड नेम से ही दवा बेची जाती थी। सरकार को मेडिकल स्टोर्स की इन गड़बडि़यों पर भी ध्यान देना होगा।

- दिलीप सचान, अध्यक्ष डिप्लोना फार्मासिस्ट एसोसिशन

दवा में क्या क्या मिला है इसकी जानकारी तो फार्मासिस्टों को ही होती है, फार्मासिस्ट की पहले ही कमी है। एक फार्मासिस्ट के नाम से कई मेडिकल स्टोर्स चल रहे हैं। ऐसे में मरीज को सही और सस्ती दवा मिले यह कैसे सुनिश्चित होगा।

- प्रदीप सिंह, अध्यक्ष, फार्मासिस्ट फाउंडेशन कानपुर