-पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया जायज

क्कन्ञ्जहृन्: सूबे के साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों के समान वेतन पर पटना हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी गुरुवार को सहमति जताई। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से साफ कहा कि दोनों यह तय करें कि भुगतान कैसे होगा। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि शिक्षकों के बकाए का भुगतान कैसे करना है इसका ब्लू प्रिंट 27 तक सौंपे.सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों आदर्श कुमार गोयल, आरएस नरीमन और नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने समान काम समान सुविधा के मामले की आज करीब आधे घंटे सुनवाई की।

पानी पिलाने वाले को 36 हजार

कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से तैयार रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पानी पिलाने वाले चपरासी को तो सरकार 36 हजार रुपए वेतन में दे सकती है, लेकिन जिन शिक्षकों को बच्चों का भविष्य बनाना है उन शिक्षकों को सरकार 26 हजार रुपए से अधिक देना नहीं चाहती। उस पर से दलील यह है कि शिक्षक यदि विशेष परीक्षा पास करते हैं तो उनके वेतन में बीस फीसद वृद्धि की जाएगी। यह कैसा तर्क है। सरकार की दलील थी कि पास पैसे नहीं है। ऐसे में समान वेतन दे पाना संभव नहीं है।

केंद्र से नहीं मिल पाती राशि

सरकार ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत नियोजित शिक्षकों के वेतन का 60 परसेंट पैसा केंद्र सरकार को देना है। कुछ वर्षो से इस मद में स्वीकृत पूरी राशि राज्य सरकार को नहीं मिल पाती है। इस पर अदालत ने कहा कि यदि इस देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम और सर्व शिक्षा अभियान लागू नहीं होता तो क्या बच्चों को बिहार सरकार शिक्षा नहीं देती? गलत दलील देकर शिक्षकों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से कहा कि दोनों सरकारें मिल कर तय करें कि नियोजित शिक्षकों को समान वेतन कैसे दिया जा सकता है। यह निर्देश भी दिया कि शिक्षकों के बकाया वेतन के मसले पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा।