-पूरे कार्यकाल में करते रहे पहाड़ की बात, टिकट मैदान से

-मैदानी क्षेत्र से बढ़त लेने का है मुख्यमंत्री का इरादा

-हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जिले में सबसे ज्यादा सीट

DEHRADUN: तीन साल में सीएम हरीश रावत ने गाड़-गदेरे, झिंगौरा-कोदा, गैरसैंण की खूब बातें कीं। अपनी छवि पहाड़ के हितों से सरोकार रखने वाले एक ऐसे नेता की कि जिसने गांव की पगड़ंडि़यों पर से होकर सियासत की राह पर कदम आगे बढ़ाए हैं। पलायन पर बात करते हुए रिवर्स पलायन का प्लान भी सामने रखा, लेकिन चुनावी सियासत में जैसे ही उतरे, पहाड़ से तुरंत पलायन कर गए। हरीश रावत के दो सीटों से चुनाव लड़ने की संभावनाएं पहले से थीं, लेकिन वह पहाड़ की किसी सीट को नहीं चुनेंगे, इसकी उम्मीद नहीं थी। मगर सरकार वापसी के लिए हाथ पांव मार रहे, हरीश रावत को अपने ख्वाब पूरे करने के लिए मैदान का रास्ता ही ज्यादा भाया है।

ख् जिले ख्0 सीटें, क्या बन जाएगा काम

सीएम हरीश रावत की संभावित सीटों में से एक केदारनाथ को माना जा रहा था। वहां पर उनके बार-बार के दौरे, केदारनाथ पुनर्निर्माण पर फोकस से इस बात की संभावना मजबूत हो रही थी, लेकिन हरदा ने किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीट को ही चुना। दोनों ही मैदानी-तराई के इलाके हैं और दोनों ही सीट बीजेपी के पास रही है। दरअसल, हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा क्क् सीटें हैं, जबकि ऊधमसिंहनगर में 9 सीटें हैं। हरदा के इन जिलों से चुनाव लड़ने पर आस-पास की सीटों पर भी असर पड़ने का कांग्रेस को भरोसा है।

हरदा ने दिया रिवर्स मैदान पर जोर

लंबे समय तक अल्मोड़ा-नैनीताल जैसे पहाड़ी इलाके की चुनावी राजनीति करते रहे हरीश रावत का ख्009 में हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला चौंकाने वाला था। मैदान की तरफ ये उनका पहला बड़ा कदम था। वह जीत भी गए, लेकिन ख्0क्ब् में सीएम बने, तो उपचुनाव उन्होंने ठेठ पहाड़ी सीट धारचूला से लड़ा। हालांकि तब भी डोईवाला जैसी मैदानी सीट से उनके चुनाव लड़ने की प्रबल संभावनाएं जताई जा रही थीं। मगर ख्0क्7 के चुनाव में एक बार फिर हरदा पहाड़ से मैदान पर उतर आए हैं।

किशोर ने भी किया इस बार पलायन

पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय अपने लिए सीट तलाशते-तलाशते मैदान में पहुंच गए हैं। उन्होंने पिछले तीनों चुनाव टिहरी सीट से लडे़ थे, लेकिन इस बार पीडीएफ का पेंच इस सीट पर ऐसा फंसा कि किशोर को नई सीट तलाशनी पड़ी। किशोर का पलायन उन्हें कितना रास आएगा, अब इस पर भी चर्चा हो रही है, क्योंकि उन्हें इस सीट पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वैसे, कैंट सीट पर पार्टी प्रत्याशी सूर्यकांत धस्माना का भी पलायन जैसा मामला रहा है। पूर्व में उन्होंने लैंसडाउन सीट से चुनाव लड़ा था।

बीजेपी नेता भी करते रहे हैं पलायन

बीजेपी के दिग्गज नेता बीसी खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल निशंक भी चुनावी पलायन करते रहे हैं। बीसी खंडूड़ी गढ़वाल सांसद रहे। ख्007 में जब सीएम बने, तो उपचुनाव में धुमाकोट जैसी पर्वतीय सीट को उन्होंने चुना, लेकिन ख्0क्ख् के चुनाव में वह अपेक्षाकृत मैदानी सीट कोटद्वार में पहुंच गए। हालांकि ख्0क्ब् के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से गढ़वाल सीट पर चुनाव लड़कर रिवर्स पलायन कर लिया। खंडूड़ी की तरह निशंक नहीं रहे हैं, वह चुनावी पलायन करते-करते पूरी तरह मैदान में उतर चुके हैं। इससे पहले, निशंक कर्णप्रयाग, थलीसैण जैसी पर्वतीय सीटों का प्रतिनिधित्व करते थे, लेकिन ख्0क्ख् में उन्होंने डोईवाला सीट की तरफ रुख कर लिया। इसके बाद, ख्0क्ब् को वह हरिद्वार संसदीय सीट से सांसद हो गए।