1- दंगल : छोरी , छोरे से कम नहीं!
ये फिल्म निश्चित तौर पे इस साल की सबसे अच्छी फिल्म है. कुछ साल पहले तक ये सोचना भी मुश्किल था की बिना प्रेम कहानी, बिना आइटम नंबर, बिना भद्दी कॉमेडी, बिना विलन वाली बाप और बेटियों के रिश्ते पर बनी एक फीमेल सेंट्रिक फिल्म को लोग इतना पसंद करेंगे की अंत में खड़े होकर फिल्म के लिए तालियाँ बजाएं बहुत कुछ ख़ास था दंगल में जो इसे बार बार देखने लायक बनाता है।

एक कहानी जो सुनाने लायक थी : उस राज्य में जहां का सेक्स रेश्यो बेहद खराब है, उस राज्य में जो कन्या भ्रूणहत्या के इलज़ाम झेलता रहा है, उसी राज्य में एक ऐसा इंसान भी है, जिसने अपनी बेटियों को बेटा समझ कर न केवल पाला बल्कि उनको इतना बढ़ावा दिया की उन्होंने देश ही नहीं दुनिया में नाम रोशन किया. ये कहानी निश्चित ही सुनाने लायक थी, इस सब के बावजूद ये फिल्म इस साल की सबसे मनोरंजक फिल्मों में से एक भी थी। यानी पैसा वसूल फिल्म।

2016 में ये रहीं बॉलीवुड की पांच बेहतरीन फिल्‍में

बाप बेटी के रिश्ते की अनमोल कहानी : याद है वो सीन जहां महावीर अपनी थकी बेटी के पैर दबाने लगता है, क्योंकि शायद यही समय है जब वो अपने बाप होने का फ़र्ज़ अदा कर सकता है। फिर वो सीन जहां महावीर अपनी बेटी को सीख देने के लिए उससे अखाड़े में लड़ता है। ऐसे ही वो सीन जहां गीता अपने रूठे हुए पिता से फोन पे बात करते हुए रो पड़ती है, जब महावीर का दिल पसीजता है तो उसके साथ साथ आपके आँखों में भी आंसू आ जाते हैं...ऐसे कितने ही पल हैं इस फिल्म में जो इसको इंसानी रिश्तों में रंग देते हैं। ये फिल्म देख कर आपका मन ज़रूर करेगा की अपने पिता से एक बार जरूर कहा जाए की ‘पापा आई लव यु’

देशभक्ति का तीन-रंग : महावीर का ये मलाल की वो देश के लिए मेडल नहीं ला पाया, उसको अपनी बेटियों को ये कारनामा कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित करता है। अंत में जब गीता गोल्ड जीतती है और राष्ट्रगान बजता है तो आप चाहें या ना चाहें आप अपने आप ही उठ खड़े होते हैं और देशभक्ति के तीन रंगों में रंग जाते हैं।

मिटटी की कहानी : देश से अखाड़े गायब हो रहे हैं, लोग अपनी मिटटी से अलग होते चले जा रहे हैं, महावीर अपनी बेटी से कहता है ‘इस मिटटी की इज्जत करो तो ये मिटटी तुम्हारी इज्जत कराएगी’, ये फिल्म भारत से गायब हो रहे खेलों को अपना करियर बनाने और उन खेलों के माध्यम से देश की आन बान शान बढाने की बात भी करती है, और ये सन्देश भी बताती है की अपनी मिटटी से जुड़े रहने में ही गौरव है।

साल के कुछ बेस्ट परफॉरमेंस : इस साल रिलीज़ हुई फिल्मों में से शायद यही वो फिल्म है जो अपने पूरे स्टारकास्ट के शानदार पेर्फोर्मंसस के लिए भी जानी जायेगी. फातिमा सना शेख (गीता) , सान्या मल्होत्रा (बबिता) , ज़ायरा वासिम (छोटी गीता)और सुहानी भटनागर (छोटी बबिता) इस साल के सबसे शानदार पेर्फोर्मंसस में से एक हैं. इन सब ने अपने अपने रोल को जिया है। साथ ही ये फिल्म आमिर के करियर का भी बेस्ट परफॉरमेंस है। यही नहीं आयुष्मान खुराना के भाई अपर्शक्ति खुराना भी इस फिल्म के सरप्राइज पैकेज हैं।

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2- पिंक : हर इंसान को ‘न’ कहने का हक है
सुनने में आया है की इस फिल्म की स्क्रिप्ट को कई बड़े प्रोडक्शन हाउसेस ने बनाने से मना कर दिया था, क्यों? क्योंकि इस फिल्म में भी कोई रेगुलर फ़िल्मी फोर्मुले इस्तेमाल नहीं हुए। इस फिल्म में अमिताभ के अलावा कोई स्टार पॉवर नहीं है पर फिर भी इस साल की सबसे ज्यादा सराही जाने वाली फिल्मों में से एक है. क्यों है पिंक एक पाथब्रेकिंग फिल्म और क्यों है इस साल की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक आइये समझने की कोशिश करते हैं।

रेलेवेंट और ब्रेव थीम : जिस देश में लॉ और आर्डर की दुहाई देकर निर्भया पर बनी हुई डाक्यूमेंट्री भी बैन कर दी जाती है उस देश में औरतों को उनके हक़ के बारे में एक फिल्म के माध्यम से जागरूक करना बड़ा बहादुरी का काम है। चाहे वो शहर हो या गाँव औरतों को ज़्यादातर एक वास्तु की तरह ही देखा जाता है। जिस देश में औरत की देवी के रूप में पूजा होती थी वहाँ आज औरतों का अस्मिता नित रोज खतरे में रहती है, सामाजिक परिस्थितियाँ और सामाजिक परिवेश इतना बदल गया है, की अगर कोई लड़की अकेले रहती है या इन्दिपेन्देन्ट है तो ये स्वतः ही समझ लिया जाता है की वो अवेलेबल भी है. क्या हैं वर्किंग वीमेन के हक़? क्या हैं वो कानून जिनका सहारा लेकर वो अपना बचाव कर सकती हैं? कैसे वो अपने पर टिकी हुई गन्दी नज़रों से बचें? ऐसे सवालों का इस फिल्म ने अपनी सधी हुई कहानी के माध्यम से जवाब दिया।

एक मस्ट वाच सोशल फिल्म- हर औरत को पिंक देखनी ही चाहिए, ताकि वो समझ सकें की इज्ज़त के साथ कैसे जिया जाए, और अपने हक की लड़ाई कैसे लड़ी जाए. वहीँ दूसरी तरफ हर मर्द को भी पिंक ज़रूर देखनी चाहिए ताकि वो ये समझ सके की औरत को इज्ज़त देना कितना ज़रूरी है। औरत कोई खेलने की वास्तु या उपभोग योग्य पधार्थ नहीं है, वो हर तरह से मर्द के बराबर है और इस समाज का वो आधा हिस्सा है, जिसकी वजह से ये सृष्टि है।

स्टोरी सुनाने का अनूठा अंदाज़ : कहानी को सुनाने के कई तरीके होते हैं.ऐसी जटिल कहानी को सुनाना बड़ा मुश्किल काम है, पर जिस तरह से इस फिल्म की कहानी आगे बढती है, आपका ध्यान इस फिल्म से हटता ही नहीं। इस साल के सबसे अच्छे लिखी हुई पटकथा का ही नतीजा है की आप एक मिनट के लिए भी अपनी सीट छोड़ के नहीं जा पाते। इसका एक और बहुत बड़ा कारण है इसका शानदार कोर्टरूम ड्रामा। बहुत सालों से अच्छे और रोचक कोर्टरूम फिल्म्ज़ नहीं आयीं थीं। मेरे खयाल से इस फिल्म का कोर्टरूम ड्रामा फिल्म दामिनी के बराबर ही इम्पैक्टफुल था. इस फिल्म का ये हिस्सा इतना ग्रिपिंग है की फिल्म देखते वक़्त ऐसा लगता है की आप उसी अदालत में बैठे हैं और कोर्ट की कार्यवाही देख रहे हैं, दलीलों को सुन रहे हैं और उसके जजमेंट का हिस्सा हैं। ऐसा तभी होता है जब फिल्म असलियत और असल हालातों के तानों बानों से बुनी गई हो।

साल के सबसे रियल किरदार : वो तीन लडकियां जिन्होंने अपने अपने किद्राद्रों में जान फूँक दी, तापसी पन्नू, कीर्ति और एंड्रिया को इस फिल्म में अदाकारी के लिए ज़रूर जाना जाएगा, उन तीनों का द्वारा निभ्हाये गए पात्र ऐसे लगते हैं, जैसे आप उनको जानते हो। इस साल के सबसे सशक्त पेर्फोर्मंसस में से उनके अलावा ये फिल्म महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा निभाये गए अब तक के सबसे स्ट्रोंग रोल्ज़ में से भी एक है। अमिताभ ने इस फिल्म में उस वकील का किरदार निभाया है जो इन लड़कियों के हक के लिए केस लड़ रहे हैं। इस फिल्म की ओवरआल कास्टिंग इस साल की सबसे बेस्ट है।

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3- नीरजा : जीते हैं चल !
अस्सी के दशक में पेनएम का एक विमान हाईजैक कर लिया गया था, भारत से उड़ कर ये विमान पकिस्तान में आतंकवादियों द्वारा बंधक बना लिया गया। कई औरतों बच्चों और बुजर्गों समेत कई जिंदगियां खतरे में पड़ गईं। ऐसे में एक एयर होस्टेस ने अपनी समझबूझ और आसमान को छूने वाली बहादुरी से कितने ही यात्रियों की जान बचाई और कितने ही घर हमेशा के लिए उजड़ने से बचा लिए।

साल की बेस्ट बायोपिक : इस बहादुर लड़की का नाम था नीरजा भानोट, इस लड़की के मन में भी अपनी उम्र की बाकी लड़कियों की तरह सपने थे, ये लड़की एक उभरती हुई मॉडल थी. नीरजा ने दूसरों के लिए अपनी जान दे दी। इस कहानी का फ़िल्मी रूपांतरण हुआ 2016  में, फिल्म का नाम था नीरजा, जब एक के बाद एक फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही थीं, तब नीरजा ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर एक हिट फिल्म बन कर दस्तक दी साथ ही वो कहानी भी सुनाई जिसको सुनाने के लिए बॉलीवुड ने 30 साल लगा दिए। क्यों थी नीरजा इस साल की सबसे शानदार बायोपिक आइये समझते हैं।

नीरजा की बहादुरी को सलाम: तीन देशों (भारत, पाकिस्तान और अमेरिका) ने नीरजा को श्रद्धांजलि देते हुए उसकी अप्रतिम बहादुरी के लिए अपने अपने देशों के सबसे बड़े सिविलियन पुरूस्कार दिए, नीरजा की कहानी मूल्यों की कहानी थी, इंसानी ज़िन्दगी कितनी मूल्यवान है इसका आकलन करके नीरजा ने अपनी जान की परवाह नहीं की, बन्दूक की नोक पर उसने कैसे अपने सामने मौजूद बंधकों की जान बचाई ये समझना किसी के बस की बात थी, इस फिल्म ने उस घटना को लोगों के देखने के लिए रीक्रेअट किया। उस रात की गतिविधियाँ क्या रही होंगी, उस रात उन सब पर क्या बीती होगी, उस रात नीरजा ने क्या क्या सहा होगा, ये सब इस फिल्म में रियल तरीके से दिखाया गया।

माँ, बेटी और जिन्दगी : एक तरफ तो ये फिल्म नीरजा की बहादुरी की कहानी सुनाती है, दूसरी तरफ परवरिश के मूल्यों की तरफ भी लोगों का ध्यान खीचती है, एक अखबार के दफ्तर में काम करने वाले पिता और एक ऐसी माँ की कहानी भी सुनाती है जिसने अपनी बेटी को बड़ी से बड़ी मुसीबत से लड़ना सिखाया। नीरजा की पर्सनल ज़िन्दगी परफेक्ट नहीं थी, छोटी से उम्र में ही टूटी हुई शादी का दंश झेल रही अपनी बेटी को उसकी माँ ने ज़िन्दगी में सही और गलत के बीच में फर्क करना सिखा दिया था. आपको याद होगा फिल्म का वो आखरी सीन जहां नीरजा की माँ नीरजा की याद में उसकी ज़िन्दगी का फलसफा सुनाती हैं। नीरजा फिल्म का वो सीन आपको जीवन में कभी हार न मानने की सीख देता है।

कम बजट में बनी इस साल की बेस्ट फिल्म : इस फिल्म ने निर्माताओं को एक सीख और दी, की अगर फिल्म की कहानी में दम हो, निर्देशक का फिल्म को लेकर एक क्लियर विज़न हो तो कम बजट में एक उम्दा फिल्म तैयार की जा सकती है, ये फिल्म पिंक की तरह ही एक फ्लालेस फिल्म है। ढूँढने से भी फिल्म में कोई नुख्स निकाल पाना मुश्किल है। ये फिल्म सोनम कपूर की अब तक की बेस्ट फिल्म है। शबाना आज़मी द्वारा निभाया गया किरदार वो है जिसे आप फिल्म के साथ अपने घर लेकर जाते हैं। ये फिल्म नवोदित निर्देशक राम का एक मास्टरपीस है।

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4- कपूर एंड संज : कहानी घर घर की
एक दादा का सपना है की उसकी मौत से पहले उसकी पूरी फॅमिली की एक तस्वीर उसके साथ खीच ली जाए, पर क्या होता है जब पूरी फॅमिली का एक साथ मिल पाना ही मुश्किल काम हो, परिवार में अलगाव है, हर कोई किसी न किसी वजह से एक दुसरे से रूठा हुआ है, वो फ्रेम शायद कभी उस तस्वीर भर ही न पाए. कपूर एंड संज का ये फॅमिली पोर्टेट कैसे पूरा होता है ये फिल्म इसी बारे में है।

कहानी आज की : जॉइंट फॅमिली कल्चर तो कबका ख़त्म हो चूका, आज कल ख़ास मौकों पर भी पूरे परिवार का एक साथ मिल पाना बड़ा मुश्किल काम है, कहीं किसी को काम से फुर्सत नहीं है तो कहीं कोई किसी से मनमुटाव रख कर बैठा हुआ है, एक दुसरे की ख़ुशी के लिए जीना तो बहुत दूर की बात है। इस फिल्म के हर किरदार के पास वजह है की वो इस फॅमिली पोर्ट्रेट का हिस्सा न बन पाए। मियाँ बीवी के बीच में तनाव है, भाई भाई के बीच एक अनसुलझा झगडा है कैसे होगा मिस्टर कपूर का सपना पूरा, ये कहानी आज के समाज की है। ये कहानी बताती है की ज़िन्दगी छोटी छोटी खुशियों से बड़ी हो जाती है, ये ज़िन्दगी जितना हंस खेल कर बीत जाए उतना अच्छा। क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाओगे इन रिश्तों के अलावा।

ब्रेव नैरेटिव : जिस देश में बहुत सारे विषयों पर बात करने से पहले लोग अपने मूह पर टेप लगा लेते हैं, वहीँ पर इस फिल्म में बहुत सारी ऐसी बातों पर बात हुई चाहे वो एक्स्ट्रामेराईटल अफेयर हो या अल्टरनेटिव सेक्सुअलिटी. शकुन बत्रा ने पूरी हिम्मत के साथ पारिवारिक मुद्दों पर बिना उपदेश दिए बड़े सटीक तरीके से दिखाया . कुछ सीन तो ज़बरदस्त थे, जैसे दादा का अपने पोतों के साथ मिलकर हंसीखेल करना और जॉइंट स्मोक करते हुए अपनी आकांक्षाओं का खुल के आगे रखना, वो सीन जहां लड़कों का पिता अपनि पत्नी से माफ़ी मांगता है और अपने एक्स्ट्रामेराईटल अफेयर को ख़त्म करने का आश्वासन देता है। वो सीन जहां माँ अपने बच्चे से माफी मांगती है और दोनों बच्चों की सुलह करवाती है, वो सीन जहां माँ अपने बच्चे के साथ उसकी अल्टरनेटिव सेक्सुअलिटी को समझने की कोशिश करती है. समाज बदल रहा है साथ ही फिल्में भी इस बदले हुए समाज को इन बातों पर खुल के बात करना ज़रूरी है कपूर एंड संस इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है।

नो सेट्स पर फिर भी आल सेट : इस फिल्म में भी नीरजा, पिंक और दंगल की तरह अनरीयलिस्टिक कुछ भी नहीं था. फिल्म में अनरीयलिस्टिक सेट नहीं थे, आइटम नंबर नहीं थे, नयूडिटी नहीं थी, इन शोर्ट ऐसा कुछ नहीं था जो रियल दुनिया में आप न देखते हों। फिल्म की स्टोरीटेलिंग बिलकुल ऐसी थी जैसे ये हमारे आस पास या हमारे ही घर की कहानी हो। ये फिल्म एक टिपिकल बॉलीवुड फिल्म होकर भी बाकी बॉलीवुड फिल्मों से हटकर थी। शायद यही कारण था की इसे दर्शकों ने खूब सराहा।

ज़बरदस्त पेर्फोर्मंसस : इस फिल्म में ऋषि कपूर ने अपनी उम्र से बीस साल बड़े किरदार को बखूबी निभाया। उनका निभाया किरदार उनके अब तक के सभी किरदारों से एक दम अलग था और शायद अब तक का उनका बेस्ट भी. फिल्म के बाद भी उनका किरदार आपके साथ रहता है. आज भले की पाकिस्तानी आर्टिस्टों पर विवाद चरम पे है पर ये बात कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है की फवाद ने बड़े ही बोल्ड तरीके से उस किरदार को बखूबी निभाया जिसको शायद ज़्यादातर लोगमना कर देते. अलिया तो शानदार थी पर रत्नापाठक शाह और रजत कपूर ने भी अपना किरदार पेर्फेक्ट्ली जिया.इस फिल्म की पूरी कास्ट परफेक्ट कास्ट थी।

2016 में ये रहीं बॉलीवुड की पांच बेहतरीन फिल्‍में
5- सुल्तान: पॉवरपैक्ड एंटरटेनर
इस साल बॉलीवुड के लिए बड़ा बुरा समय रहा, सिनेमाहॉल तक दर्शकों को खीच कर लाना उतना ही कठिन काम हो गया जितना की टोंड मिल्क से मक्खन निकालना. निर्माताओं ने हर ट्रिक का इस्तेमाल किया पर कुछ काम नहीं आया, दिग्गज धराशाई हो गए. ऐसे वक़्त में एक ऐसी फिल्म आई जिसने दर्शकों के दिल पर न केवल राज किया बल्कि बॉक्सऑफिस पर ऐसी बारिश की जिससे बॉक्सऑफिस पर आया अकाल चला गया। फिल्म थी ईद पर आई सुलतान

सलमान की एक अनूठी फिल्म : सलमान अपनी फॅमिली फिल्म्स के लिए जाने जाते हैं, इसलिए क्योंकि उनकी फिल्में पूरा परिवार बेझिझक देख सकता है।  इसीलिए उनकी हर फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही हित करार दे दी जाती है। सुलतान भी वैसी ही फिल्म थी। पर ये फिल्म इसलिए भी अनूठी थी क्योंकि इस फिल्म में सलमान ने पहली बार वो किया जो शायद उनसे कभी उम्मीद नहीं थी। अपनी बॉडी के लिए ख़ास पैशन रखने वाले सलमान खान इस फिल्म में अपनी बेडौल बॉडी और बढे हुए पेट के साथ नज़र आये। ये फिल्म एक परफेक्ट फिल्म नहीं थी, पर परफेक्ट एंटरटेनर ज़रूर थी। फिल्म की शुरुआत से लेकर फिल्म के अंत तक ये फिल्म आपको सीट से बाधे रखने में सक्षम थी। इस फिल्म में सलमान हरयाणवी बोलते नज़र भी आये साथ ही फिल्म का इमोशनल एंगल भी ज़बरदस्त था।

किया कुश्ती को प्रमोट : इस फिल्म ने भी वो काम बखूबी किया जो दंगल ने किया, देश से गायब होते हुए अखाड़े और कुश्ती का प्रमोशन। दंगल की तरह भले ही ये फिल्म सत्यघटना पर आधारित न हो पर विशफुल थिंकिंग को ज़रूर प्रोमोट किया। वो विश थी भारत के लिए ओलिंपिक गोल्ड मैडल. इस फिल्म ने कितने ही खिलाड़ियों के मन में मैडल की आशा को मज़बूत करदिया. रिसेंटली आमिर खान ने खुद माना की सुलतान के होने से दंगल को भी खासी मदद मिली. सुलतान ने अखाड़ा और कुश्ती के खेल को इतना पोपुलर कर दिया की जिन लोगो ने सुलतान को सराहा वो स्वतः ही दंगल को भी देखने के लिए प्रोत्साहित हो गए।

फिल्म का धाकड़ संगीत और अनूठी प्रेमकहानी : इस साल के सबसे पोपुलर संगीत में सुलतान का संगीत भी था। जग घूमेया इस साल का लव एंथम बन गया, इस फिल्म में भी भद्दापन नहीं था, इस फिल्म की प्रेमकहानी इन्स्पिरिंग थी। कैसी किसी इंसान का प्यार पाने की खातिर कुछ कर दिखाने और ज़िन्दगी में कुछ बनने की प्रेरणा लेता है। अनुष्का और सलमान की ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री बेहद अच्छी थी इसीलिए इस फिल्म ने पूरे साल बॉक्सऑफिस की नंबर एक फिल्म बन कर राज किया। यक़ीनन ये इस साल की सबसे एंटरटेनिंग फिल्म रही।

Story credit : Yohaann Bhaargava
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