मुमताज महल और शाहजहां का प्यार
अक्सर कहा जाता है कि ताजमहल प्यार की निशानी नहीं है क्योंकि मुमताज महल शाहजहां की तीसरी बीबी थीं जो उनके 14वें बच्चे को जन्म देने के बाद स्वर्गवासी हो गई। इसके बावजूद ये सच है कि शाहजहां, मुमताज से बेहद मुहब्बत करता था और उसके गम में वो एकदम टूट गया था। बताते हैं कि अपनी प्रिय पत्नी के जाने का उसे इतना अफसोस था कि उसकी मौत के चंद महीनों बाद ही उसके दाढ़ी और सर के बाल सफेद हाने लगे और वो बूढ़ा दिखने लगा।
बहुमूल्य भी है ताजमहल
अपने शानदार आर्किटेक्ट के चलते ही नहीं बल्कि अपनी लागत के चलते भी ताजमहल बेशकीमती है। इसे 1631 में अपनी पत्नी की मौत के बाद 1632 में शाहजहां ने बनवाना शुरू किया था और लगभग 22 बाद 1653 में इसका निर्माण पूरा हुआ था। इस बीच इसको बनवाने में उस समय 32 लाख रुपये का खर्च आया था जो आज के पैसों की कीमत में 1 करोड़ डॉलर के लगभग होता है।
हजारों लोगों को मिला काम
इस विश्व प्रसिद्ध इमारत का डिजाइन अहमद लाहौरी ने तैयार किया था और बनाने में हजारों मजदूरों को योगदान था। मजदूर, पत्थरतराश, चित्रकार और कैलीग्राफर सहित 20,000 लोगों ने इसके निर्माण के लिए दिनरात काम किया था। इसके अलावा विश्व भर से निर्माण सामग्री मंगवाने और ढुलाई के लिए करीब 1000 हाथियों को भी काम पर लगाया गया था।
विभिन्न सामग्रियों का हुआ प्रयोग
ताजमहल के निर्माण में तीन ओर लाल बलुआ पत्थर से बनीं उसकी रक्षा दीवारें को छोड़ कर बाकी सारी जगह सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया था। इसके लिए राजस्थान, अफगानिस्तान, तिब्बत और चीन से संगमरमर मंगाया गया। इतना ही नहीं इमारत को सजाने के लिए लाजावर्त जैसे बेशकीमती जवाहरातों और कीमती रत्नों का इस्तेमाल किया गया था।
पत्थरों पर उकेरे गए वाक्य और खुदा के नाम
ताजमहल के अंदर बाहर कई पवित्र वाक्यों और कविताओं को दीवारों और खंभों पर उकेरा गया है। इसके मुख्य गुंबद पर अल्लाह के 99 वें नामों की कैलीग्राफी की गई है, क्योंकि शाहजहां चाहता था कि उसकी चहीती बेगम मौत के बाद खुदा की पाक पनाह में रहे।
परफेक्शन का अदभुद उदाहरण
देख कर हैरानी होती है उस दौर में जब आधुनिक तकनीकी सुविधायें नहीं थीं तब भी ताजमहल के निर्माण में को टेक्निकल दोष नहीं है। इसका एक पहलु दूसरे हिस्से की पूरी तरह मिरर इमेज मालूम होता है। इसकी चारों मिनारें इस तरह से बनाई गई हैं कि अगर वो गिरें तो मुख्य इमारत को नुकसान ना पहुंचाते हुए बाहर की तरफ गिरें।
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प्यार की तरह रंग बदलता है ताज
बहुत कम लोग जानते हैं कि प्यार की तरह ताजमहल भी दिन में कई रंग बदलता है। सुबह तड़के इसका रंग प्यार की मासूमियत की तरह हल्का गुलाबी होता है तो दिन में ये उसकी पवित्रता की तरह एकदम सफेद जबकि रात को चांद की रोशनी में सोने की तरह निखरा हुआ पीला हो जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा की पूरे चांद की रात में ताज का दीदार बेहद खास होता है।
ताज पर भी हुआ था हमला
1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ताजमहल को आक्रमण भी सहना पडा़ था। आक्रमणकारियों ने इसके बहुमूल्य पत्थर और रत्न, जैसे लाजावर्त को खोद कर निकाल लिया था। जिसके बाद 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश वाइसरॉय जॉर्ज नैथैनियल कर्ज़न ने इसके पुननिर्माण की एक वृहत प्रत्यावर्तन परियोजना आरंभ की जो 1908 में पूरी हुई। उसने ताज के आंतरिक कक्ष में एक सा चिराग भी रखवाया, जो काहिरा में स्थित एक मस्जिद से मिलता जुलता है। इसी समय यहाँ के बागों को ब्रिटिश शैली में बदला गया था। वही आज तक बना हुआ है।
ये ताज से जुड़े झूठ
इस बारे में बहुत चर्चा है कि शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण के बाद इसे बनाने वाले कारीगरों के हाथ या अंगूठे कटवा दिये थे, ताकि वो ऐसी कोई दूसरी इमारत ना बना सकें। इतिहास के अनुसार वास्तव में ऐसी किसी घटना का कोई प्रमाण नहीं मिलता और ये बात एकदम गलत है। इसीतरह कहा जाता है शाहजहां एक काला ताजमहल बनवाना चाहता है ये बाद भी ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं होती।
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ताजमहल क्या तेजो महालय है
ताजमहल एक शिव मंदिर तेजो महालय और एक रातपूत महल था जिसे राजा परमार देव ने बनवाया था, ऐसा दावा लेखक पीएन ओक ने अपनी किताब में किया था। तभी से इस बारे में काफी विवाद शुरू हो गया। हालांकि ओक की इस आधार पर 2000 में की गई याचिका को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
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