- 37 दीक्षांत समारोह के स्टूडेंट्स को नहीं मिला मेडल

- 94 बैच में केवल 57 सेशन के लिए ही हुआ दीक्षांत समारोह

LUCKNOW:

लखनऊ यूनिवर्सिटी का 19 जनवरी को अपना दीक्षांत समारोह आयोजित करने जा रहा है। दीक्षांत समारोह से करीब डेढ़ मंथ पहले यूनिवर्सिटी ने अपने एक पूर्व छात्र को 44 साल बाद दीक्षांत समारोह का मेडल प्रदान किया। यह मेडल यूनिवर्सिटी ने अपने केमेस्ट्री विभाग के पूर्व प्रो। अनिल सिंह को लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद दिया है। यह कोई पहला मामला नहीं है जब यूनिवर्सिटी ने अपने चयनित स्टूडेंट्स को इतने लम्बे समय के बाद मेडल दिया है। अभी भी यूनिवर्सिटी में कई ऐसे स्टूडेंट्स है जिन्हें चयनित होने के बाद भी अभी तक उनका मेडल नहीं दिया गया है। ऐसे स्टूडेंट्स को अभी अपनी यूनिवर्सिटी से उनके मेडल मिलने का इंतजार हैं।

लखनऊ यूनिवर्सिटी में एक पूर्व स्टूडेंट्स

इनमें पहला नाम है यूनिवर्सिटी के डीपीए डिपार्टमेंट के हेड प्रो। मनोज दीक्षित है। जिन्हें साल 1986 में मा‌र्स्ट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के लिए संयुक्त रूप से टॉप के लिए चयनित किया गया था। उन्हें इसके लिए राजा रधुबर दयाल गोल्ड मेडल मिलना था। प्रो। दीक्षित के अनुसार उस साल दीक्षांत समारोह आयोजित नहीं हुआ, जिस कारण उनका मेडल उन्हें नहीं मिल सका। उन्होंने बताया कि इसके बाद साल 1988 में उनको यूनिवर्सिटी के अर्बन सेंटर में जॉब मिल गई, इसके बाद उन्होंने साल 1991 तक अपने मेडल के लिए यूनिवर्सिटी में काफी प्रयास किया पर सफलता नहीं मिली। यूनिवर्सिटी ने उन्हें केवल सर्टिफिकेट प्रदान कर काम पूरा कर लिया। प्रो। मनोज दीक्षित के अलावा यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ। ओपी राय की बेटी डॉ.प्रज्ञा पांडेय ने 1997 में यूनिवर्सिटी से एमए संस्कृत में टॉप किया। इसके लिए उन्हें उस साल होने वाले दीक्षांत समारोह चार गोल्ड मेडल व एक कैश प्राइज देने की चयनित किया गया। उस साल उन्हें राजा हरनाम सिंह सर हरकोर्ट बटलर गोल्ड मेडल, विमलापुरी गोल्ड मेडल, श्रीमती चंद्रकली पांडेय मेमोरियल गोल्ड मेडल व श्रीमती चंद्रादेवी सर राधाकृष्णनन अरुणवंशी गोल्ड मेडल के अलावा श्रीमती इंद्रानीदेवी कैश प्राइज दिया जाना है। लेकिन अभी तक यूनिवर्सिटी मेडल तो दूर अभी तक उन्हें कैश प्राइज तक नहीं दिया। वहीं यूनिवर्सिटी के सूत्रों की माने तो डॉ.निरुपम बाजपेई ने 1985 में एमकॉम एप्लाइड इक्नॉमिक्स में टॉप किया था। लेकिन उन्हें भी 21 साल बाद 2007-08 में वीसी रहे प्रो.बरार ने गोल्ड मेडल दिया था।

95 साल में 37 दीक्षांत समारोह नहीं हुए

लखनऊ यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1921 में हुआ था। तक से अब तक यूनिवर्सिटी के 94 बैच निकल चुके है। जिसमें से अब तक सिर्फ 57 दीक्षांत समारोह ही आयोजित हो पाए हैं। ऐसे में 37 दीक्षांत न होने की वजह से उन वर्षो के टॉपरों को मेडल भी नहीं दिया गया। इनकी संख्या भी सैकड़ों में है।