- कम हो गई हैं मैन एनीमल संघर्ष की घटनाएं

- जंगली के इलाकों से सटे गांव के लोगों को दी जा रही है ट्रेनिंग

LUCKNOW: पब्लिक और जंगली जानवरों में होने वाली लड़ाई में जानवर मार दिए जाते हैं। फिर टाइगर हो या लेपर्ड। ऐसे में इन जानवरों को इनसे बचाना बेहद जरूरी है। यह तभी संभव है जब गांव वालों को इसके लिए सतर्क किया जाए। ऐसे में उन्हें एक खास ट्रेनिंग की जरूरत होती है। एयरसेल के साथ डब्लूटीआई (वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के डायरेक्टर और चीफ वेटेरिनेरियन डॉ। एनवीके अशरफ का। शुक्रवार को राजधानी में एक प्रोग्राम में उन्होंने बताया कि दुधवा से हर साल एक टाइगर या फिर पैंथर बाहर आ रहा है। ऐसे में जब यह रिहायशी इलाकों में पहुंचता है तो लोग उसे मौत के घाट उतार देते हैं। जैसे इस समय एक टाइगर भी दुधवा से निकल कर कानपुर तक पहुंच गया है। इसी के चलते यह जरूरी है कि जो इलाके जंगल से सटे हैं, उनके लोगों को ट्रेनिंग दी जाए जिससे वे जानरों को मारने के बजाय उससे निपट सके। इसके लिए अब तक नौ गांव के लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। इसी के चलते अब मैन-एनीमल कॉनफिलक्ट की घटनाओं में कमी आ रही हैं। लोगा जानवरों को वापस जंगलों में भेज दे रहे हैं। इस मौके पर मौजूद एयरसेल के कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी हेड बृंदा मल्होत्रा ने बताया कि हमारी स्कीम 'सेव द टाइगर्स' पिछले दो सालों से चल रही है। इसी के चलते डब्ल्यूटीआई और यूपी फॉरेस्ट के डिपार्टमेंट में तमाम इक्यूमेंट्स दिए गए हैं। इनमें साइकिल, सर्च लाइट, जैकेट्स और दुधवा जैसे पार्क में पैट्रोलिंग के लिए यूज किए जाने वाले अन्य सामान दिए गए हैं।