- उनकी खोज और लिखी किताबें आज भी वनस्पति विज्ञान के छात्रों के लिए ज्ञान का खजाना

- जीवाश्म वनस्पतियों पर उनके काम के लिए उन्हें फादर ऑफ इंडियन पैलियोबॉटनी कहा जाता है

LUCKNOW: डॉ। बीरबल साहनी विज्ञान की दुनिया में जाना माना नाम है। उन्होंने ही लखनऊ यूनिवर्सिटी मार्ग पर स्थित बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान की स्थापना की थी। जो इंडिया ही नहीं पूरी दुनिया में अपने कार्यो के लिए फेमस है। जीवाश्म वनस्पतियों पर उनके काम के लिए उन्हें फादर ऑफ इंडियन पैलियोबॉटनी कहा जाता है। उनकी खोज और उनकी लिखी गई किताबें आज भी वनस्पति विज्ञान के छात्रों को पढ़ाई जाती हैं।

पंजाब में हुआ था जन्म

डॉ। बीरबल साहनी का जन्म क्ब् नवम्बर क्89क् को पंजाब प्रांत में हुआ था। उनके पिता प्रो। रूचिराम साहनी थे। बीरबल साहनी ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। क्9क्क् में बीएससी करने के बाद लंदन चले गए। वहां उन्होंने प्रकृति विज्ञान में बीए डिग्री ली। लंदन यूनिवर्सिटी से उन्हें बीएससी की डिग्री मिली। क्9क्ब् में लंदन विश्वविद्यालय ने डाक्टरेट की उपाधि दी। अपने पढ़ाई के दिनों में ही बीरबल साहनी हमेशा अपनी छात्रवृत्ति के दम पर आगे बढ़ते और पढ़ते रहे।

इंस्टीट्यूट की स्थापना

क्9ख्क् में बीरबल साहनी लखनऊ आए और बॉटनी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया। क्9फ्0 में डॉ। बीरबल साहनी को लखनऊ विश्वविद्यालय की कार्य समिति का आजीवन सदस्य बनाया गया। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में डॉ। बीरबल साहनी के कई शोध पत्र भी प्रकाशित हुए। क्9ब्फ् में लखनऊ विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान का एक नया विज्ञान शुरू हुआ जिसका उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने अपने पिता के नाम पर एक पुरस्कार योजना शुरू की। जो रुचिराम साहनी अनुसंधान पुरस्कार के नाम से जाना जाता था। क्9ब्9 में उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद बाद ही संस्थान को उनका नाम दे दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनके बैचमेट थे। उन्होंने ही लखनऊ में उनकी मृत्यु के बाद बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोबॉटनी की स्थापना की थी।

कई शोध किए प्रकाशित

क्9क्7 में ब्रिटिश बॉटेनिस्ट व जियोलॉजिस्ट एल्बर्ट चा‌र्ल्स सीवार्ड के साथ उनका पहला पेपर प्रकाशित हुआ जिसे रिवीजन ऑफ इंडियन गोंडवाना प्लांट्स के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद ही उन्हें क्9क्9 में उन्हें यूनिवर्सिटी आफ लंदन से डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि से नवाजा गया। उन्होंने बहुत से प्लांट्स, चट्टाने, और जीवाश्म कलेक्ट किए। उन्होंने पौधों की पहचान में बहुत समय लगाया। इसके लिए उन्होंने अपने भाई के साथ हिमालय में बहुत घूमे और बर्फ से लेकर प्लांट्स को कलेक्ट किया। दिन रात वह सिर्फ पौधों की खोज के लिए ही जीते रहे। उन्होंने एक रेड स्नो का टुकड़ा कलेक्ट किया। पता चला कि वह बहुत ही दुर्लभ स्नो हैं और प्रो। एसी सीवार्ड ने उस पर शोध किया तो पता चला कि वह रेड एल्गी के कारण ऐसा हो गया। अर्ली रिवीजन्स आफ इंडियन फासिल प्लांट्स फ्राम गोंडवाना पर उनका काम ऐसा था कि इसके कारण उन्हें बड़ी पहचान मिली।